घर की जमीन स्कूल को दान कर फुटपाथ पर बिता रहे हैं दिन-रात
बुजुर्ग की जुबान से इस तरह की बात सुनने के बाद सभी उसके हौसले को सलाम करने लगे तो उसकी दरियादिली की चर्चा पूरे जिले में बड़ी ही जोर-शोर पर होने लगी।
पटना। बिहार के सीतामढ़ी जिले के रहने वाले एक 50 साल के बुजुर्ग ने दरियादिली का ऐसा परिचय दिया जिसे सुन जिले के लोग उसके हौसलों को सलाम करने लगे। जिस काम के लिए गांव के रसूखदार और जमींदार लोग पीछे हट गए थे, उसे इस बुजुर्ग ने पूरा किया और अपने घर बनाने के लिए और जीवन जीने के लिए जमा की हुई जमीन को मुफ्त में स्कूल को दान कर दिया। इसके बाद अब फुटपाथ पर पति-पत्नी दिनरात गुजार रहे हैं। जमीन दान करने के बाद फुटपाथ पर रहने वाले दोनों बुजुर्ग से जब ये पूछा गया कि आपने ऐसा क्यों किया तो उन्होंने कहा कि गांव के बच्चे स्कूल जाते हैं ये देखकर हमें काफी सुकून मिलता है। बचपन में हमने स्कूल का मुंह नहीं देखा था और अब हमारी जमीन में स्कूल बना है जिसे हमारे मरने के बाद भी लोग याद रखेंगे। हमारे अपने बेटे ने तो हमें अपने हाल पर छोड़ दिया लेकिन अब हमारे मरने के बाद भी लोग हमारे नाम को याद किया करेंगे।
यही वजह है कि बुजुर्ग दंपति जमीन दान करने और फुटपाथ पर रहने की बात कह रहा है। बुजुर्ग के मुताबिक अब इस उम्र में मकान बनाने की हैसियत उनकी नहीं थी और अगर मकान नहीं बनाते तो भी झोपड़ी में ही रहते और यहां भी झोपड़ी में ही रह रहे हैं। बुजुर्ग की जुबान से इस तरह की बात सुनने के बाद सभी उसके हौसले को सलाम करने लगे तो उसकी दरियादिली की चर्चा पूरे जिले में बड़ी ही जोर-शोर पर होने लगी। आइए अब हम आपको बताते हैं उस बुजुर्ग के बारे में जिसने स्कूल के लिए अपने घर की जमीन दान कर दी।
बता दें कि बिहार के सीतामढ़ी जिले के भासर धरमपुर गांव के रहने वाले राजकिशोर गोसाई के पास ना तो अपार संपत्ति थी और ना ही शिक्षा लेकिन उसकी सोच ऐसी थी, जिसकी वजह से पूरे जिले के लोग उसे जानने लगे। गांव में बच्चों की समस्या को देखते हुए उन्होंने घर बनाने के लिए रखे ढाई कट्ठा जमीन को स्कूल में डोनेट कर दिया और उनके इस जमीन पर अब स्कूल बना दिया गया है। जिसमें गांव के लगभग चार से 500 बच्चे रोजाना पढ़ाई करते हैं। वहीं जमीन दान करने के बाद अपनी आजीविका को चलाने के लिए उन्होंने फुटपाथ का सहारा लिया और फुटपाथ पर एक झोपड़ी बनाते हुए उस में लटकना बेचना शुरु कर दिया।
राजकिशोर गोसाई के दो बेटे भी है लेकिन दोनों शरीर से कमजोर और मंदबुद्धि के हैं हालांकि दोनों अपने मां-बाप से अलग अपने परिवार के साथ रहते हैं। वहीं जब इस बात को लेकर 50 साल के राज किशोर से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि हमारे गांव में स्कूल नहीं था, जिससे बच्चे पढ़ नहीं पाते थे। जब गांव की समस्या को देखते हुए स्कूल खोलने की बात हुई तो सभी लोग जमीन देने से कतराने लगे। तभी हमने संकल्प किया कि हमारे बच्चे तो हमें छोड़कर अलग हो गए हैं। अब इस जमीन का क्या होगा और हमने गांव के बच्चों के लिए अपनी जमीन को दान कर दिया।
अब स्कूल बनने के बाद जब बच्चे पढ़ने के लिए जाते हैं तो उन्हें देखकर हमें सुकून मिलता है। हमारे पास पहले से ही 10 कट्ठा जमीन थी। जिसमें 5 कट्ठा जमीन दोनों बेटे और पत्नी के इलाज कराने में बिक गई तो बची 5 कट्ठा जमीन में ढाई कट्ठा जमीन बेटे को हिस्सा दे दिया गया। ढाई कट्ठा जमीन स्कूल के लिए डोनेट कर दिया गया। जब कभी भी लोग इस स्कूल की जमीन के बारे में चर्चा करते हैं हमारा मन काफी प्रसन्न हो जाता है। इस काम में पत्नी ने भी मेरा भरपूर सहयोग किया है।
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