सातवीं बार सीएम बनने जा रहे नीतीश कुमार के सामने होंगी ये 5 मुश्किलें
पटना। बिहार में एनडीए की सरकार बनने जा रही है। रविवार को शिर्ष नेताओं के साथ हुए बैठक में नीतीश कुमार को सर्वसम्मति से एनडीए विधायक दल का नेता चुना गया। वो 7वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। राज्यपाल की तरफ से भी सरकार बनाने के लिए न्योता भेज दिया गया है और सोमवार यानी कि 16 नवंबर को शाम 4:30 बजे नीतीश कुमार का शपथग्रहण समारोह होगा। अब सवाल ये उठने लगा है कि क्या पहले की तरह नीतीश फुल ऑथोरिटी में शासन कर पाएंगे? ऐसा इसलिए क्योंकि जिन परिस्थितियों में वे मुख्यमंत्री बनेने जा रहे हैं उनकी वजह से उनके सामने कई चुनौतियां होंगी। कुछ चुनौतियां मनोवैज्ञानिक होंगी और कुछ राजनीतिक। नीतीश कुमार को पांच प्रमुख मुश्किलों से जूझना पड़ सकता है।
जूनियर पार्टनर का सीएम कैसे करेगा काम?
गठबंधन की सरकार में किसी दल की ताकत उसके संख्या बल के आधार पर आंकी जाती है। संख्या बल में नीतीश कमजोर पड़ गये हैं। इसलिए उनका आत्मविश्वास पहले की मजबूत नहीं दिख रहा। चुनाव नतीजों के बाद उन्होंने एक दिन खामोशी ओढ़े रखी। गुरुवार को बोले भी तो बहुत संभल कर। लोजपा की चोट से वे विचलित हैं। उन्होंने अपने दुख का इजहार भी किया। जदयू के 43 सीटों पर सिमट जाने से नीतीश कुमार को भाजपा के जूनियर पार्टनर के रूप में काम करना होगा। 2015 के चुनाव में भी नीतीश कुमार को राजद के जूनियर पार्टनर के रूप में सरकार बनानी पड़ी थी। शासन प्रक्रिया में लालू यादव के हस्तक्षेप से नीतीश कुमार असहज महसूस करने लगे थे। 2015 में लालू यादव ने भी नीतीश को सीएम चेहरा मान कर ही चुनाव लड़ा था। लेकिन जब राजद को 80 और जदयू 71 सीटों मिलीं तो सत्ता का स्वरूप ही बदल गया। नीतीश कुमार मुख्यमंत्री तो थे लेकिन उन्हें कई फैसलों में लालू यादव की इजाजत लेनी पड़ती थी। जब पानी सिर से ऊपर हो गया तो डेढ़ साल बाद ही नीतीश राजद को छोड़ भाजपा के साथ सरकार बना ली। 2020 में भी नीतीश जूनियर पार्टनर के रूप में सीएम बनेंगे। अगर फिर ऐसी मुश्किलें आयीं तो क्या करेंगे नीतीश?
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क्या नीतीश समझ गये जनादेश का संदेश ?
नीतीश कुमार ने जदयू के 43 पर अटकने के लिए एक तरह से जनता को ही जिम्मेवार बता दिया है। वे एंटी इनकंबेंसी फैक्टर मानने के लिए तैयार नहीं। उन्होंने गुरुवार को कहा, "अब तक हमने इतनी सेवा की है कि कुछ कहा नहीं जा सकता। समाज के हर तबके को फायदा हुआ। सेवा के बाद भी अगर लोग वोट नहीं करते हैं तो ये उनका फैसला है।" यानी नीतीश कुमार अभी तक यही समझ रहे हैं कि उन्होंने काम तो किया लेकिन जनता ने वोट नहीं दिया। नीतीश कुमार यह भी मानने के लिए तैयार नहीं कि कोरोना से निबटने में लापरवाही के कारण उनकी सीटें कम हुई हैं।
क्या ऐसा होता है कि कोई मुख्यमंत्री काम करे और उसे वोट नहीं मिले?
जनता पर दोष थोपने की बजाय उन्हें अपने शासन की नीतियों का मूल्यांकन करना चाहिए। जनता ने नीतीश को 2005, 2010, 2015 और 2019 में जो समर्थन दिया वो उनके काम के आधार पर दिया। 2020 में कुछ तो वजह रही जिससे उन्हें हार झेलनी पड़ी। हार के लिए लोजपा ही अकेली कारण नहीं है। जनता के मन मिजाज को भी समझना होगा।
भाजपा के साथ कैसा होगा रिश्ता?
नीतीश कुमार का अभी तक भाजपा के साथ खट्टा-मीठा रिश्ता रहा है। इस रिश्ते की परिभाषा क्या होगी, ये भी नीतीश कुमार ही तय करते रहे थे। ये तब की बात है जब वे एनडीए में सबसे बड़े दल के नेता थे। नीतीश कुमार जैसा चाहते थे भाजपा को वैसा चलना पड़ता था। उन्होंने पहले शासनकाल में भाजपा की इच्छा के खिलाफ जा कर भागलपुर दंगे की बंद फाइल फिर खोल दी थी। भाजपा को मन मसोस कर चुप रहना पड़ा था। नीतीश कुमार आज भी कहते हैं कि वे क्राइम, करप्शन और कम्यूनिलिज्म से कभी समझौता नहीं करेंगे। लेकिन तब और अब में बहुत बड़ा फर्क आ गया है।
क्या नीतीश कुमार 74 विधायकों वाली भाजपा को झुका पाएंगे?
आगे अभी कई ऐसे मुद्दे आएंगे जिस पर टकराव की संभावना है। विधानसभा चुनाव के दौरान यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कटिहार में बांग्लादेशी घुसपौठियों को निकाल बाहर करने की बात कही थी। इसके जवाब में नीतीश ने किशनगंज में कहा था कि किसी में दम नहीं कि कोई हमारे लोगों को एनआरसी के नाम पर बाहर निकाल दे। नीतीश कुमार ने इसे फालतू बात करार दिया था। वे पहले भी कह चुके हैं कि बिहार में एनआसी लागू नहीं होगा। अगर भाजपा इसे लागू करने पर अड़ गयी तो क्या होगा? मंत्रिपरिषद का गठन कैसे होगा? सरकार बनने से पहले ही दबाव की राजनीति शुरू हो गयी है। चूंकि एनडीए को बमुश्किल बहुमत मिला है। इसलिए छोटे घटक दलों की अहमियत बढ़ गयी है। चार-चार विधायकों वाली हम और वीआइपी, अपने अधिकतम हितों की पूर्ति करना चाहेगी। वीआइपी के अध्यक्ष मुकेश सहनी खुद तो चुनाव हार गये हैं लेकिन उनकी पार्टी के चार विधायक चुने गये हैं। अब यह कहा जा रहा है कि महागठबंधन की तरफ से मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम पोस्ट का ऑफर मिला है। यह चर्चा भी दबाव की राजनीति का ही एक अंग है। जीतन राम मांझी पहले ही खुद मंत्री नहीं बनने की बात कह कर माहौल बनाये हुए हैं। इसके अलावे सबसे बड़ा सवाल ये है कि 74 विधायकों वाली भाजपा कितने मंत्री पद और कौन-कौन सा विभाग लेना चाहेगी ? अगर इस बात पर जिच हुई तो किसकी चलेगी ? 125 के आंकड़े वाली सरकार में विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका बहुत निर्णायक होगी। स्पीकर का पद कौन लेगा ? भाजपा स्पीकर पद लेने के लिए अड़ी तो क्या होगा ? नीतीश के एजेंडे का क्या होगा ?नीतीश कुमार शराबबंदी को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धियों में एक मानते हैं। उनका यह भी मानना है कि शराबबंदी से खुश होकर ही महिलाएं उनके लिए वोट करती हैं। लेकिन जीतन राम मांझी ने चुनाव प्रचार को दौरान नीतीश की शराबबंदी नीति की आलोचना की थी। मांझी ने कहा था कि बिहार में शराबबंदी कानून से सिर्फ गरीबों को परेशान किया जाता है। इस कानून से किसी माफिया पर कार्रवाई नहीं होती। सरकार में आने के बाद हम शराबबंदी कानून में बदलाव के लिए सीएम से बात करेंगे। मांझी की पार्टी से कोई एक विधायक तो मंत्री जरूर बनेगा। अगर शराबबंदी कानून में संशोधन का प्रस्ताव आया तो नीतीश की साख के लिए मुश्किल होगी। इसी तरह नीतीश कुमार के सात निश्चय योजना पर भी कई सवाल उठते रहे हैं। इन चुनौतियों के बीच वे सात निश्चय पार्ट-2 कैसे लागू करेंगे ? इस बार मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार को कई मोर्चों पर जूझना होगा।