लालू-राबड़ी के घर CBI छापेमारी पर क्या बोले नीतीश कुमार ? जानिए
पटना, 22 मई: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रविवार को अपने राजनीतिक विरोधी लालू यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी के ठिकानों पर हाल में हुई सीबीआई छापेमारी पर किए गए सवाल को टाल दिया है। जदयू नेता से पत्रकारों ने छापेमारी की कार्रवाई को बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी राजद की ओर से 'राजनीति से प्रेरित' बताए जाने पर सवाल किया तो नीतीश ने उसका सीधा उत्तर नहीं दिया। बिहार में नीतीश कुमार की सरकार में बीजेपी भी शामिल है और प्रदेश में उसके विधायकों की संख्या जेडीयू से काफी अधिक है।

मुझे कोई जानकारी नहीं है-नीतीश कुमार
बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने रविवार को पटना में लालू-राबड़ी के ठिकानों पर हुई छापेमारी को लेकर पत्रकारों के सवाल के जवाब में कहा कि 'मुझे कोई जानकारी नहीं है, न ही कुछ कहना है। जो लोग इस मामले में शामिल हैं, वही टिप्पणी कर सकते हैं।' जबकि आरजेडी ने आरोप लगाया है कि सीबीआई की छापेमारी केंद्र में सत्ताधारी 'बीजेपी के राजनीतिक नेतृत्व के निर्देशों' पर की गई है।
बीजेपी पर एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगा रहा है राजद
राजद के कई नेताओं ने आरोप लगाया है कि सीबीआई की हालिया कार्रवाई नीतीश कुमार को चेतावनी देने के लिए की गई है, जो हाल ही में इफ्तार पार्टी में शामिल होने के लिए राबड़ी देवी के आवास पर गए थे और जब जेडीयू के दफ्तर में यह कार्यक्रम आयोजित किया गया था तो नीतीश तेजस्वी यादव की कार तक चलकर गए थे। पटना में जेडीयू दफ्तर के पास ही स्थित राजद कार्यालय पर एक पोस्टर भी लगाया गया था, जिसमें नरेंद्र मोदी सरकार पर केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाया गया था।
नीतीश को डराने के लिए कार्रवाई- आरजेडी
पोस्टर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक स्केच बनाई गई थी, जिनके हाथों में पिंजरे में बंद तोता था, जिसे सीबीआई बताया गया था। वहीं एक गिद्ध को प्रवर्तन निदेशालय के रूप में दिखाया गया था। साथ ही तेजस्वी और नीतीश की एक छोटी तस्वीर भी लगाई गई थी, जिसके ऊपर लिखा था 'दोनों मिलकर जाति आधारित जनगणना करेंगे।'
पोस्टर आरजेडी के प्रदेश महासचिव भाई अरुण की ओर से प्रकाशित किया गया था, जिन्होंने कहा, 'सीबीआई की कार्रवाई निश्चित तौर पर राजनीतिक हथकंडा है। बीजेपी को डर है कि नीतीश कुमार एक बार फिर एनडीए को धोखा दे देंगे, इसलिए उन्हें चेतावनी दी जा रही है कि उनका भी वही हाल होगा जो लालू जी का हुआ है।'
तीन दशकों से ज्यादातर वक्त एनडीए में रहे हैं नीतीश
1990 के दशक के मध्य से ही नीतीश कुमार भाजपा के सहयोगी रहे हैं। 2005 में उनकी ही अगुवाई में बिहार में एनडीए ने राबड़ी देवी को सत्ता से हटा दिया था। 2013 में जब बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी को पीएम उम्मीदवार बनाने का रास्ता साफ किया तो उन्होंने राजनीतिक गुलाटी मारी और एनडीए से बाहर हो गए। 2015 में उन्होंने अपने राजनीतिक दुश्मन लालू यादव से समझौता कर लिया और महागठबंधन को विधानसभा चुनाव में बड़ी सफलता मिली।
उसी दौरान जब उनकी अगुवाई वाली सरकार में लालू-राबड़ी के छोटे बेटे तेजस्वी उपमुख्यमंत्री थे, तब उनपर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे और ईडी ने कार्रवाई शुरू की तो नीतीश फिर आरजेडी से अलग हो गए और बीजेपी के सहयोग से 2017 में सरकार बना ली। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में एकबार फिर एनडीए ने उनकी अगुवाई में बाजी मारी, लेकिन इस बार जेडीयू, बीजेपी की जूनियर पार्टनर बन गई।