बख्तियार खिलजी ने 800 साल पहले जिसे उजाड़ा, उसे आबाद करने का नीतीश ने किया दावा
800 साल पहले बिहार के जिस विख्यात ज्ञान मंदिर को नष्ट कर दिया गया था उसकी पुनर्स्थापना नीतीश कुमार ने की। ऐसा उन्होंने खुद कहा है। नीतीश कुमार के सहयोग से प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को अब नये परिवेश में ढाल कर दोबारा जिंदा किया है। प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहर के पास 446 एकड़ के रकबे में एक नया और भव्य अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय बना है। इस नये विश्वविद्यालय का नाम भी नालंदा विश्वविद्यालय ही रखा गया है। यह नया विश्वविद्यालय नये विचारों की खोज, प्रयोग और शोध को बढ़ावा देने के लिए संचालित है जिससे दुनिया के 17 देश जुड़े हुए हैं। बिहार के ज्ञान गौरव को लौटाने की यह बहुत बड़ी कोशिश है। इस सपने को साकार करने में नीतीश कुमार की बड़ी भूमिका है। नीतीश चाहते हैं कि बिहार विधानसभा के चुनाव के समय उनकी इस कोशिश की चर्चा हो। मिशन 2020 को पूरा करने के लिए नीतीश कार्यकर्ताओं के साथ लगातार वर्चुअल मीटिंग कर रहे हैं। गुरुवार को ऐसी ही एक मीटिंग में वे जदयू कार्यकर्ताओं से मुखातिब थे। उन्होंने कहा, जिस बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को उजाड़ा, उसे मैंने फिर आबाद कर दिया।
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800 साल पुराने धब्बे को धोया
नीतीश कुमार के मुताबिक उन्होंने 800 साल पुराने धब्बे को धोया है। 1199 में कुतुबुद्दीन एबक के सिपहसालार बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया था और विशाल पुस्ताकालय में आग लगा दी थी। अब इसके खंडहर ही शेष हैं जो बिहार के प्राचीन गौरव की याद दिलाते हैं। इस ऐतिहासिक संदर्भ को याद कर नीतीश ने कहा, "कुछ इतिहासकारों का मत है कि बख्तियार खिलजी ने बख्तियारपुर में रह कर ही प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय को जलाया था। कुदरत ने उसी बख्तियारपुर में मुझे पैदा किया। मैने उस ऐतिहासिक यूनिवर्सिटी को फिर बसा दिया।" नीतीश का जन्म नालंदा जिले के कल्याण बीघा गांव में हुआ है। नीतीश के पिता रामलखन सिंह मशहूर वैद्य थे जो बख्तियारपुर में प्रैक्टिस करते थे। नीतीश की हाईस्कूल तक की पढ़ाई बख्तियापुर में ही हुई है। इस तरह का नीतीश का प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय से एक जन्मजात सरोकार रहा है। जब वे मुख्यमंत्री बने तो अपने दिल में सोये अरमानों को मूर्त रूप दिया।
प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय
प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय आधुनिक पटना से 88 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में राजगीर के पास अवस्थित था। मौजूदा बड़गांव में इसके अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं। यह एक विशाल बौद्ध महाविहार था जो शिक्षा का अंतर्राष्ट्रीय केन्द्र था। गुप्त वंश के शासक कुमार गुप्त ने पांचवी शताब्दी में इसकी स्थापना की थी। कुमार गुप्त 450 से 470 ईस्वी तक मगध के सम्राट थे। यह विश्वविद्यालय करीब आठ सौ साल तक ज्ञान की मशाल जलाता रहा। नालंदा को, तक्षशिला के बाद दुनिया का दूसरा सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय माना जाता है। यह दुनिया का पहला पूर्णत: आवासीय विश्वविद्यालय था। यह जानकर सुखद आश्चर्य होता है कि करीब पंद्रह सौ साल पहले इस यूनिवर्सिटी में एडमिशन के लिए इंट्रेस टेस्ट लिया जाता था। यह परीक्षा तीन चरण में होती थी। ज्ञान, अनुशासन और संस्कार की परीक्षा पास करने पर ही दाखिला मिलता था। इसकी पढ़ाई का दुनिया में ऐसा नाम था कि जापान, चीन, इंडोनेशिया, फारस, तुर्की, कोरिया के युवा यहां नामांकन के लिए आते थे। इस विश्वविद्यालय में छात्रों की संख्या दस हजार तो शिक्षकों की संख्या दो हजार सात सौ थी। इसका पुस्तकालय इतना विशाल था कि उसमें 90 लाख पांडुलिपियां रखी हुईं थीं। यह पुस्तकालय नौमंजिला था। इस विश्वविद्यालय को 200 गांव दान में मिले हुए थे जिनकी उपज से इसका खर्च चलता था। छात्रों को भोजन, वस्त्र और आवास की मुफ्त सुविधा थी। 1199 में कुतुबुद्दीन एबक के सेनापति बख्तियार खिलजी ने बिहार विजय के बाद इस विश्वविद्यालय को तोड़फोड़ कर नष्ट कर दिया था। पुस्तकालय में आग लगा दी थी। वहां इतनी किताबें थीं कि करीब छह महीने तक आग बुझ नहीं पायी थी।
खिलजी से नीतीश तक
2003 में डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम भारत के राष्ट्रपति थे। नीतीश उस समय वाजपेयी सरकार में रेल मंत्री थे। 2003 में डॉ. कलाम हरनौत में रेल कोच फैक्ट्री का उद्घाटन करने आये थे। साथ में नीतीश कुमार भी थे। हरनौत से नालंदा के खंडहर की दूरी 33 किमोमीटर है। डॉ. कलाम वैज्ञानिक और शिक्षा अनुरागी थे। उन्होंने नीतीश कुमार से भारत के इस प्राचीन विश्वविद्यालय के बारे में बात की। नीतीश की दबी इच्छाओं को जैसे पंख लग गये। इसके बाद नीतीश ने इसकी पुनर्स्थापना के बारे में गंभीरता से सोचना शुरू किया। 2005 में नीतीश बिहार के मुख्यमंत्री बने। 28 मार्च 2006 को राष्ट्रपति डॉ. कलाम ने बिहार विधानमंडल के संयुक्त सत्र को संबोधित किया था। इस संबोधन में उन्होंने प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को फिर शुरू करने का प्रस्ताव दिया था। इसके बाद नीतीश कुमार ने इस विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए केन्द्र सरकार से अनुरोध किया। बिहार सरकार ने इसके निर्माण के लिए प्राचीन खंडहर के पास ही राजगीर में 446 एकड़ जमीन दी। 2010 में संसद ने इसके निर्माण की मंजूरी दे दी। इस विश्वविद्यालय का स्वरूप अंतर्राष्ट्रीय है जिसमें 17 देश सहयोग कर रहे हैं। डॉ. कलाम इसके पहले विजिटर (सर्वोच्च प्रशासक) बने तो नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन इसके पहले वाइस चांसलर बने थे। 2014 से इसमें पढ़ाई शुरू हो गयी है। अब यहां फिर भूटान, चीन, सिंगापुर, कोरिया, जापान से पढ़ने के लिए छात्र आने लगे हैं।