नीतीश कुमार के साथ अगली सरकार, बिहार भाजपा में नई सोशल इंजीनियरिंग की शुरुआत
पटना- बिहार में भाजपा इस बार बढ़ी हुई ताकत के साथ अपने पुराने सहयोगी नीतीश कुमार के साथ नई शुरुआत कर रही है। इसमें भाजपा के लिए राष्ट्रीय मुद्दे की प्राथमिकताएं तो बरकरार ही रहेंगी और नीतीश फिलहाल उसके बहुमूल्य साथी बने रहेंगे। खासकर इसलिए भी क्योंकि दो पारंपरिक सहयोगियों शिवसेना और शिरोमणि अकाली दल का साथ छूट चुका है। नीतीश कुमार की जेडीयू एक व्यक्ति केंद्रित पार्टी तो है, लेकिन उनके बाद इस दल के भविष्य को लेकर कई तरह की आशंकाएं हैं। उन्होंने लालू, मुलायम, ममता, ठाकरे, बादल, मुफ्ती, अब्दुल्ला या इन जैसे तमाम नेताओं की व्यक्ति आधारित पार्टियों की तरह अपने परिवार के किसी सदस्य को राजनीतिक वारिस के तौर पर तैयार नहीं किया है। इसलिए, भाजपा ने अगले चुनावों के लिए अभी से सोशल इंजीनियरिंग पर काम करना शुरू कर दिया है, जिसमें नीतीश कुमार का वोटर बेस भी शामिल है; और आने वाले दिनों में विरोधियों की ओर से अगड़ों की पार्टी कही जाने वाली पार्टी में और भी कई बदलाव देखने को मिल सकते हैं।
भाजपा को इस बात का पूरा इल्म है कि इस चुनाव में उम्मीद से खराब प्रदर्शन के बावजूद नीतीश कुमार गैर-यादव पिछड़ों, अति-पिछड़ों और महादलितों के बीच एक प्रभावशाली फोर्स रहे हैं। जेडीयू के विधायको की संख्या कम हुई है तो यह भी तय है कि नीतीश कुमार के कैबिनेट में आने वाले कुछ समय में जदयू से कहीं ज्यादा मंत्री बीजेपी के कोटे से बनने वाले हैं। उसने यूपी की तरह दो-दो उपमुख्यमंत्रियों का फॉर्मूला देकर अपना इरादा पहले ही जाहिर कर दिया है। विधानमंडल दल के नेता और उप नेता के पदों पर वैश्य और अति-पिछड़े समाज को प्रतिनिधित्व दिया गया है। तारकिशोर प्रसाद कलवार जो बिहार में पिछड़ी जाति का हिस्सा हैं तो रेणु देवी नोनिया समाज यानि अति-पिछड़ी जाति की हैं।
एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा है कि, 'सभी राजनीतिक दल की यह ड्यूटी है कि लोगों तक पहुंचे और बीजेपी ठीक वही कर रही है जो कोई भी राजनीतिक पार्टी करना चाहती है। विपक्ष के लोग यह कहते थे कि बीजेपी सिर्फ अगड़ी जातियों के वोटर तक सीमित है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस नजरिए को बदल दिया है। अब, हम लोग इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं और यह दोनों नियुक्तियां पार्टी के वोटरों और सामाजिक आधार में बदलाव की स्वीकृति है।'
पार्टी नेता ने कहा है कि, 'यह साफ है कि महिलाओं ने एनडीए के समर्थन में और उसके फैसलों के पक्ष में वोट दिया है। बीजेपी की जीत में महिलाओं का समर्थन बहुत ही महत्वपूर्ण है और उनके पास कम से कम 50% सोशल और वोटर बेस है। इनकी अहमियत को प्रधानमंत्री ने भी माना है, जिन्हें उन्होंने बीजेपी का साइलेंट वोटर बताया है।'
भाजपा के हाथों में पिछली सरकार के मुकाबले ज्यादा बेहतर विभाग आने की संभावना है, क्योंकि जदयू के 8 मंत्री चुनाव हार चुके हैं। संभावना है कि इनमें अगड़ों के सामाजिक समीकरण का ख्याल तो रखा ही जाएगा, अति-पिछड़ों और महादलितों को भी कैबिनेट में पार्टी के चेहरे के तौर पर ज्यादा से ज्यादा पेश किया जाएगा। रेणु देवी का नाम उपमुख्यमंत्री के तौर पर आगे करके पार्टी ने नीतीश कुमार के वोट बैंक, यानि अति-पिछड़े और महिला को एक साथ साधने की कवायद शुरू की है। लेकिन, पार्टी की सोसल इंजीनियरिंग यहीं खत्म नहीं होने वाली। जिस तरह पार्टी प्रदेश नेतृत्व के मसले पर हरियाणा, यूपी, त्रिपुरा और असम जैसे राज्यों में चौंका चुकी है वैसे ही बिहार से भी इस तरह के चौंकाने वाली खबरें मिलती रहने वाली हैं।
मसलन, नीतीश कुमार ने पिछले दो दशकों में खुद को गैर-यादव पिछड़ों के सर्वमान्य नेता के तौर पर पेश किया है। लेकिन, बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग यादवों के बिना पूरी होने वाली नहीं है। केंद्रीय गृहराज्य मंत्री नित्यानंद राय के रूप में देखें तो प्रदेश में पार्टी ने यादव नेताओं को पहले से ही प्रमोट करना शुरू कर दिया है। राजद भले ही बिहार में खुद को यादवों की एकमात्र पार्टी माने, लेकिन बीजेपी का लक्ष्य यादवों को भी अपने साथ जोड़ने का है। भाजपा के एक सूत्र ने ईटी को बताया है कि 'बीजेपी के हिंदुत्व का एजेंडा और राष्ट्रवाद बिना यादवों को बड़ा रोल दिए अधूरा है।'
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