यूपी में दलित वोट बैंक पर मायावती और चंद्रशेखर के बीच की रार पहुंची बिहार, पप्पू यादव और कुशवाहा के बीच नहीं हो पाया गठबंधन
पटना। उत्तर प्रदेश में बसपा सुप्रीमो मायावती और आजाद समाज पार्टी नेता व भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद रावण के बीच दलित वोट बैंक को लेकर जो राजनीतिक रस्साकसी है, उसका असर अब बिहार विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिल रहा है। एक तरफ मायावती उपेंद्र कुशवाहा और ओवैसी के साथ गठबंधन बनाकर बिहार के चुनावी मैदान में हैं तो दूसरी तरफ चंद्रशेखर रावण और पप्पू यादव के बीच गठजोड़ बना है। इसका नतीजा अब यह हुआ है कि पप्पू यादव और उपेंद्र कुशवाहा एक-दूसरे के साथ नहीं जा पाए। दोनों नेताओं ने साथ आने के लिए वार्ता भी की लेकिन बसपा की मनाही के बाद यह संभव नहीं हो पाया।
पप्पू
और
कुशवाहा
वार्ता
का
कोई
नतीजा
नहीं
निकला
रालोसपा
मुखिया
उपेंद्र
कुशवाहा
और
जाप
मुखिया
पप्पू
यादव
दो
अलग-अलग
गठबंधन
में
हैं।
रालोसपा,
बसपा,
एआईएमआईएम
समेत
छह
राजनीतिक
दलों
के
गठबंधन
का
नाम
ग्रैंड
डेमोक्रेटिक
सेक्यूलर
फ्रंट
(जीडीएसएफ)
रखा
गया
है।
उपेंद्र
कुशवाहा
को
जीडीएसएफ
का
मुख्ममंत्री
उम्मीदवार
घोषित
किया
गया
है।
भीम
आर्मी
चीफ
चंद्रशेखर
रावण
की
पार्टी
का
नाम
आजाद
समाज
पार्टी
है
जिसका
जाप,
बीएमपी
और
एसडीपीआई
के
साथ
गठबंधन
बना
है
और
इसको
प्रोग्रेसिव
डेमोक्रेटिक
एलायंस
(पीडीए)
नाम
दिया
गया
है।
पप्पू
यादव
और
उपेंद्र
कुशवाहा
अब
इन
दोनों
गठबंधन
को
एक
करने
की
कोशिश
में
लगे
हुए
थे
और
दोनों
के
बीच
कई
दौर
की
बातचीत
भी
हुई।
यूपी
में
मायावती
और
चंद्रशेखर
रावण
के
बीच
जो
राजनीतिक
प्रतिद्वंद्विता
है,
वह
दोनों
गठबंधन
के
एक
होने
में
बाधक
बन
गई।
बसपा
ने
साफ
कर
दिया
कि
पार्टी
किसी
ऐसे
गठबंधन
में
नहीं
रहेगी
जिसके
साथ
चंद्रशेखर
रावण
होंगे।
Recommended Video
बिहार
में
दलित
वोट
की
राजनीति
बिहार
की
आबादी
का
करीब
16
प्रतिशत
हिस्सा
दलित
और
महादलित
में
बंटा
हुआ
है
जो
उम्मदीवारों
की
जीत-हार
में
बड़ी
भूमिका
निभाते
रहे
हैं।
यादव,
मुसलमान
और
दलितों
के
वोट
लेकर
ही
लालू
यादव
15
साल
सत्ता
पर
काबिज
रहे।
इस
वजह
से
प्रदेश
के
दलित
नेताओं
की
धमक
केंद्र
तक
रही
है।
रामविलास
पासवान
दुसाध
जाति
के
बड़े
दलित
नेता
रहे
और
जीतन
राम
मांझी
मुसहर
जाति
के
नेता
हैं।
दुसाध
और
मुसहर
मिलकर
बिहार
में
कुल
दलित
आबादी
के
करीब
50
प्रतिशत
हैं
इसलिए
भाजपा
नीत
एनडीए
में
लोजपा
और
हम
पार्टी
का
विधानसभा
चुनाव
को
देखते
हुए
बहुत
महत्व
है।
पिछला
चुनाव
जदयू
और
राजद
ने
साथ
मिलकर
लड़ा
था।
इस
बार
दलित
वोटों
को
लेकर
काफी
मारामारी
है।
मुख्यमंत्री
नीतीश
कुमार
ने
हाल
में
दलितों
की
हत्या
होने
पर
परिजन
को
सरकारी
नौकरी
देने
तक
का
ऐलान
कर
दिया,
साथ
ही
पार्टी
के
नेताओं
को
दलितों
तक
सरकार
के
किए
कामों
को
पहुंचाने
को
कहा
है।
राजद
भी
कब्जे
से
छिटके
दलित
वोट
बैंक
को
थामने
के
लिए
प्रयासरत
है।
ऐसे
में
पप्पू
यादव
और
उपेंद्र
कुशवाहा
ने
भी
दलित
वोट
के
लिए
यूपी
के
चंद्रेशखर
रावण
और
मायवाती
का
साथ
लिया
है।
लेकिन
उत्तर
प्रदेश
में
मायावती
और
चंद्रशेखर
के
बीच
के
छत्तीस
के
आंकड़े
ने
पप्पू
यादव
और
उपेंद्र
कुशवाहा
के
बड़े
मंसूबे
पर
पानी
फेर
दिया।
यूपी
में
मायावती
और
चंद्रशेखर
के
बीच
क्यों
है
तनातनी?
भीम
आर्मी
संगठन
के
मुखिया
चंद्रशेखर
रावण
2017
के
मई
में
शब्बीरपुर
हिंसा
के
खिलाफ
दलितों
के
हिंसक
विरोध
प्रदर्शन
के
बाद
लाइमलाइट
में
आए
थे।
इस
मामले
में
एनएसए
के
तहत
गिरफ्तार
चंद्रशेखर
रावण
को
15
महीने
जेल
में
रहना
पड़ा
था।
इसके
बाद
चंद्रशेखर
उत्तर
प्रदेश
में
दलितों
के
उभरते
हुए
नेता
के
तौर
पर
तेजी
से
आगे
बढ़े
और
युवाओं
के
बीच
उनकी
लोकप्रियता
बढ़ती
चली
गई।
दलित
वोट
बैंक
की
वजह
से
यूपी
में
मुख्यमंत्री
की
कुर्सी
तक
पहुंच
चुकी
बसपा
चीफ
मायावती
के
लिए
चंद्रशेखर
खतरा
बन
गए।
चंद्रशेखर
के
खिलाफ
मायावती
के
बयानों
में
तल्खी
हमेशा
रही
है।
2019
के
संसदीय
चुनाव
के
दौरान
मायावती,
चंद्रशेखर
रावण
को
भाजपा
का
गुप्तचर
तक
बता
चुकी
हैं।
हाल
में
हाथरस
में
दलित
लड़की
से
साथ
हुई
वारदात
के
बाद
चंद्रशेखर
रावण
जहां
पीड़िता
के
गांव
में
डटे
रहे
वहीं
मायावती
ट्वीट
करती
रहीं।
इस
बारे
में
बसपा
के
एक
वरिष्ठ
नेता
ने
कहा
कि
दलितों
की
नई
पीढ़ी
सत्ता
में
भागीदारी
चाहती
हैं
और
इस
वजह
से
भीम
आर्मी
चीफ
चंद्रशेखर
रावण
यूपी
की
दलित
राजनीति
में
जगह
बना
रहे
हैं।
मायावती
के
ट्वीट
को
तो
दलित
देखते
भी
नहीं
होंगे।
भीम
आर्मी
दलितों
के
लिए
बसपा
का
विकल्प
बन
रही
है।
बिहार चुनाव: मुखिया नंबर एक के साथ माफिया की पत्नी को भी RJD उतारेगा चुनावी मैदान में