लालू यादव बने RJD अध्यक्ष, 2009 में लड़े थे आखिरी बार चुनाव, दिलचस्प रहा है सियासी सफर
लालू प्रसाद यादव अध्यक्ष पद के लिए इकलौते उम्मीदवार थे, बुधवार सुबह लालू यादव ने उदय नारायण चौधरी (राष्ट्रीय मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी) और चित्तरंजन गगन (सहायक राष्ट्रीय मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी) के पास पांच सेटों में...
पटना, 28 सितंबर 2022। बिहार से लेकर देश की राजनीति में लालू यादव की एक अलग ही पहचान है। लालू प्रसाद यादव अपने बेबाक सियासत के लिए जाने जाते हैं। एक बार फिर लालू प्रसाद यादव राजद अध्यक्ष बने हैं। बुधवार को उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय अध्क्ष घोषित किया गया वहीं आगामी 11 अक्टूबर 2022 को लालू प्रसाद यादव के 12वी बार राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर चुने जाने का विधिवत ऐलान करते हुए प्रमाण पत्र दिया जाएगा।
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निर्विरोध निर्वाचित हुए लालू प्रसाद यादव
लालू प्रसाद यादव अध्यक्ष पद के लिए इकलौते उम्मीदवार थे, बुधवार सुबह लालू यादव ने उदय नारायण चौधरी (राष्ट्रीय मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी) और चित्तरंजन गगन (सहायक राष्ट्रीय मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी) के पास पांच सेटों में नामांकन पत्र दाखिल किया था। नामांकन पत्र सत्यापित करने बाद, नामांकन वापस लेने का वक्त ख़त्म होने के साथ ही राष्ट्रीय मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी ने राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष पर लालू प्रसाद को निर्विरोध निर्वाचित होने की अधिसूचना जारी की।
छात्र राजनीति से लालू ने की शुरुआत
लालू प्रसाद यादव के सियासी सफ़र की बात की जाए तो उन्होंने ने छात्र राजनीति से राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी। राज्य से लेकर केंद्र तक सियासत में अपनी एक अलग पहचान बनाई। चारा घोटाले ने लालू प्रसाद के चुनाव लड़ने पर वीराम लगा दिया। एक तरह से लालू प्रसाद यादव के सियासी सफर पर ही ब्रेक लग गया। चारा घोटाला के आरोप के बाद भी लालू प्रसाद यादव राजद सुप्रीमो बने रहे लेकिन 2009 के से वह सक्रिय से दूर हो गए।
जेपी आंदोलन से उभरे लालू प्रसाद यादव
लालू प्रसाद यादव ने छात्र राजनीति से अपने सियासी सफर की शुरुआत की। जेपी आंदोलन में शामिल होने के बाद से लालू प्रसाद यादव का सियासी कद बढ़ता चला गया। लालू प्रसाद यादव ने पटना विवि छात्रसंघ (पुसू) के महासचिव के तौर पर 1970 में लालू छात्र राजनीति शुरु की थी । 1973 में पुसू के अध्यक्ष निर्वाचित होने के बाद 1974 में भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के खिलाफ जयप्रकाश नारायण (जेपी) छात्र आंदोलन में सक्रीय भूमिका निभाई। 1977 लोक सभा चुनाव में जनता पार्टी के की टिकट पर लालू यादव ने जीत दर्ज की थी। 1980 में लोकसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव ने चुनावी दंगल में किस्मत आज़माया लेकिन वह इलेक्शन हार गए। इसके बाद वह राज्य की सियासत में सक्रिय हुए। लोकसभा में दांव आज़माने के बाद फिर उसी साल (1980) में बिहार विधानसभा चुनाव में दांव आज़माया और विधानसभा सदस्य बने। 1985 में दोबारा उन्होंने जीत दर्ज की।
1989 में विरोधी दल के नेता बने लालू प्रसाद
1989 में पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद विपक्ष के दिग्गज नेताओं किनारा करते हुए विधानसभा में विरोधी दल के नेता बने। छपरा संसदीय क्षेत्र से उन्होंने उसी साल लोकसभा में किस्मत आज़माई और कामयाब भी हुए। 1989 के भागलपुर दंगे के बाद कांग्रेस का वोट बैंक यादव समुदाय का ध्रुवीकरण हुआ। यादवों के नेता के तौर पर लालु प्रसाद बने। इसके साथ ही मुसलमानों को भी उन्हें सपोर्ट मिला। फिरा वीपी सिंह के साथ मिलकर लालू प्रसाद यादव मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने की मांग को बुलंद किया।
धर्मनिरपेक्ष नेता के तौर पर उभरे लालू
लालू प्रसाद यादव 1990 में बिहार के मुख्यमंत्री बने। राम रथयात्रा के दौरान समस्तीपुर में 23 सितंबर 1990 को लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कराकर, खुद को धर्मनिरपेक्ष नेता के तौर पर पेश किया। जिसके बाद लालू यादव को अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली। पिछड़े समाज को सियासत में हिस्सा दिलाने लालू यादव की अहम भूमिका रही। इसके साथ ही मंडल आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद प्रदेश में अगड़े-पिछड़े की सियासत चरम पर पहुंची। उसके बाद सवर्ण विरोधी के रूप में लालू यादव की अलग पहचान बनी। 1995 में भारी बहुमत चुनाव जीतने के बाद लालू यादव दोबारा मुख्यमंत्री बने। शरद यादव से जुलाई 1997 में मतभेद होने की वजह से उन्होंने जनता दल से किनार करते हुए राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया।
2000 में अल्पमत में आई राजद
1998 में केंद्र में भाजपा की सरकार आई, इसके बाद साल 2000 में बिहार की सियासी फ़िज़ा बदली,राजद अल्पमत में आ गई। नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन बाद सात दिनों में इस्तीफ़ा दे दिया। इसके बाद राबड़ी देवी बिहार की मुख्यमंत्री बनी। लालू प्रसाद के दोबारा सत्ता में जैसे ही आए कि उनका चारा घोटाला उजागर होने लगा। कोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने जांच करते हुए 1997 में उनके खिलाफ आरोप-पत्र दायर किया। फिर लालू प्रसाद यादव को मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा, लालू यादव जेल जाने से पहले राबड़ी देवी को सत्ता सौंपी।
नीतीश कुमार बने मुख्यमंत्री
राजद 2005 में चुनाव हार गई, इसके बाद नीतीश कुमार ने फिर से बिहार के सत्ता की बागडोर संभाली। राज्य की सियासत से तो लालू प्रसाद यादव सत्ता दूर हो गए थे लेकिन 2004 में यूपीए-वन सरकार में लालू प्रसाद यादव रेल रेल मंत्री बने। राजद के चार सांसद 2009 में लोकसभा चुनाव में निर्वाचित जिसकी वजह से उनकी पार्टी को केंद्र में जगह नहीं मिली। लालू प्रसाद यादव आखिरि बार 2009 में संसदीय सियासी पारी खेली।
3 अक्टूबर 2013 में चारो घोटाला का आरोप सिद्ध
लालू प्रसाद यादव ने परिसीमन लागू होने के बाद पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र एवं छपरा संसदीय क्षेत्र से नामांकन दाखिल किया। रंजन यादव ने पाटलिपुत्र संसदीय सीट पर लालू प्रसाद को चुनाव में हरा दिया। वहीं छपरा संसदीय क्षेत्र से लालू यादव ने जीत दर्ज की। सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने 3 अक्टूबर 2013 को लालू प्रसाद यादव को 5 साल की कैद और 25 लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई। इसके बाद से ही उनके सियासी सफर पर ब्रेक लगा लेकिन सियासत में आज भी दबदबा क़ायम है।
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