गुप्तेश्वर पांडे के जूनियर रहे पूर्व डीजी को जदयू ने दिया टिकट, सियासी रेस में कैसे पीछे रह गए पूर्व डीजीपी?
पटना। बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले एक्टर सुशांत सिंह राजपूत केस में बयानों के लिए चर्चित रहे पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे टिकट की उम्मीद में जदयू में शामिल हुए थे। गुप्तेश्वर पांडे बक्सर सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन जब जदयू की लिस्ट जारी हुई तो उसमें पूर्व डीजीपी का नाम कहीं नहीं था। आस पर पानी फिरने के बाद अब जदयू नेता गुप्तेश्वर पांडे ने दर्द बयां करते हुए फेसबुक पोस्ट पर लिखा कि सबको उम्मीद थी कि सेवामुक्त होने के बाद मैं चुनाव लड़ूंगा लेकिन मैं इस बार बिहार विधानसभा चुनाव नहीं लड़ रहा। बक्सर की जनता से गुप्तेश्वर पांडे ने अपील की कि वे प्यार और आशीर्वाद बनाए रखें। जदयू ने भले ही हाईप्रोफाईल पूर्व डीजीपी को टिकट न दिया हो लेकिन पार्टी ने पूर्व डीजी सुनील कुमार को गोपालगंज जिले की भोरे विधानसभा की सुरक्षित सीट से टिकट दिया है। सुनील कुमार पुलिस महकमे में गुप्तेश्वर पांडे के मातहत रह चुके हैं लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव में टिकट पाने की रेस में वे आगे निकल गए। वैसे तो बक्सर सीट इस बार भाजपा के खाते में है लेकिन पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे का टिकट क्यों काटा गया इसको लेकर राजनीतिक गलियारों में खूब चर्चा है।
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पूर्व
डीजी
टिकट
की
दौर
में
निकले
पूर्व
डीजीपी
से
आगे
पूर्व
आईपीएस
अफसर
और
डीजी
रैंक
से
सेवानिवृत
हुए
दलित
अफसर
सुनील
कुमार
1987
बैच
के
थे।
पूर्व
डीजीपी
गुप्तेश्वर
पांडे
की
तरह
ही
पूर्व
डीजी
सुनील
कुमार
की
गिनती
मुख्यमंत्री
नीतीश
कुमार
के
करीबी
अफसरों
में
होती
है।
जदयू
नेता
लल्लन
सिंह
ने
सुनील
कुमार
को
अगस्त
के
आखिरी
सप्ताह
में
पार्टी
की
सदस्यता
दिलाई
थी।
सुनील
कुमार
के
भाई
अनिल
कुमार
भोरे
विधानसभा
सीट
से
कांग्रेस
विधायक
हैं।
इस
बार
महागठबंधन
में
सीट
बंटवारे
में
यह
सीट
भाकपा
माले
के
खाते
में
चली
गई
जिसके
बाद
अनिल
कुमार
इस
बार
चुनाव
नहीं
लड़
रहे
हैं।
जदयू
ने
उनके
भाई
सुनील
कुमार
को
इस
सुरक्षित
सीट
से
टिकट
दिया
है।
रिटायरमेंट
के
ठीक
बाद
सुनील
कुमार
का
सियासी
सफर
तो
टिकट
मिलने
के
साथ
शुरू
हो
गया
लेकिन
उनके
सीनियर
अफसर
रहे
गुप्तेश्वर
पांडे
सियासी
दौर
में
उनसे
पीछे
रह
गए।
भाजपा
के
सिंबल
पर
भी
चुनाव
लड़ना
नसीब
न
हुआ
एक्टर
सुशांत
सिंह
राजपूत
केस
में
मुख्यमंत्री
नीतीश
कुमार
पर
टिप्पणी
को
लेकर
रिया
चक्रवर्ती
को
औकात
बताने
वाले
तत्कालीन
डीजीपी
गुप्तेश्वर
पांडे
के
बयान
के
बाद
से
ही
यह
कयास
लगने
लगे
थे
कि
वह
राजनीति
में
आकर
चुनाव
लड़ने
की
तैयारी
में
लगे
हुए
हैं।
वीआरएस
लेने
से
लेकर
मुख्यमंत्री
नीतीश
कुमार
से
मुलाकात
के
बाद
तक
भी
पार्टी
में
शामिल
होने
या
चुनाव
लड़ने
की
बात
से
गुप्तेश्वर
पांडे
इनकार
करते
रहे।
फिर
खबर
आई
कि
उन्होंने
जदयू
ज्वाइन
कर
लिया
है
और
टिकट
की
उम्मीद
लगाए
हुए
हैं।
वे
सहयोगी
पार्टी
भाजपा
के
सिंबल
पर
भी
चुनाव
लड़
सकते
थे
लेकिन
बक्सर
से
गुप्तेश्वर
पांडे
को
टिकट
क्यों
नहीं
मिल
पाया
इस
पर
एक
चर्चा
यह
भी
है
कि
प्रदेश
के
उप
मुख्यमंत्री
सुशील
कुमार
मोदी
और
बक्सर
सांसद
अश्विनी
चौबे
ऐसा
नहीं
चाहते
थे।
महाराष्ट्र
के
गृहमंत्री
अनिल
देशमुख
ने
भी
बताई
वजह
एक्टर
की
मौत
मामले
में
शिवसेना-एनसीपी
की
सरकार
और
महाराष्ट्र
पुलिस
पर
हमलावर
रहे
पूर्व
डीजीपी
गुप्तेश्वर
पांडे
दोनों
पार्टियों
के
निशाने
पर
आ
गए।
महाराष्ट्र
के
गृहमंत्री
अनिल
देशमुख
ने
पूर्व
डीजीपी
के
टिकट
कटने
पर
कहा
कि
यह
जदयू
का
मामला
है,
हमने
तो
बस
इतना
पूछा
था
कि
क्या
भाजपा
नेता
और
बिहार
चुनाव
प्रभारी
देवेंद्र
फडणवीस
गुप्तेश्वर
पांडे
के
लिए
चुनाव
प्रचार
करेंगे
जिन्होंने
महाराष्ट्र
को
बदनाम
किया।
हो
सकता
है
कि
इसी
सवाल
से
डरकर
गुप्तेश्वर
पांडे
को
टिकट
न
दिया
गया
हो।
वैसे
गुप्तेश्वर
पांडे
टिकट
न
मिलने
के
बाद
अपने
दर्द
को
सहला
रहे
हैं
और
उन्होंने
बयान
दिया
है
कि
राजनीति
में
कभी-कभी
ऐसा
होता
है
कि
जैसा
आप
सोचते
हैं,
वैसा
नहीं
होता।
गुप्तेश्वर
पांडे
2009
में
भी
बक्सर
सीट
से
चुनाव
लड़ने
के
मकसद
से
वीआरएस
के
लिए
आवेदन
दिया
था
लेकिन
तब
उनके
आवेदन
को
स्वीकार
नहीं
किया
गया
था।
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