क्या सुशील मोदी के चलते इतने असहज हो गए नीतीश, तारकिशोर-रेणु देवी के स्वागत के लिए भी नहीं उठे
पटना- सोमवार को पटना स्थित राजभवन के राजेंद्र सभागार में नीतीश कुमार की नई सरकार का जो शपथग्रहण समारोह हुआ, उसमें माहौल में कई बातों को लेकर असहजता स्पष्ट तौर पर महसूस की जा रही थी। इसका कारण ये था कि भाजपा के नेता इस बार नए तेवरों के साथ पहुंचे थे। पार्टी के दिग्गज केंद्रीय नेता भी नई सरकार के शपथ कार्यक्रम का गवाह बनने आए थे। जबकि, चुनाव में उम्मीदों के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाने से नीतीश कुमार और उनके दल के लोगों की बॉडी लैंग्वेज में काफी बदलाव नजर आ रहा था। समारोह में मौजूद लोगों की नजरों से कुछ भी बच पाना संभव नहीं था। इसी कड़ी में एक ऐसा वाक्या भी हुआ, जिससे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की शख्सियत को जानने वाले लोग चौंक गए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने चुनाव के दौरान मतदाताओं से जदयू की कम सीटें आने पर भी नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री बनाने का जो वादा किया था, उसने उसे निभाकर दिखाया है। लेकिन, नीतीश कुमार और उनकी पार्टी के लिए इससे थोड़ी मुश्किलें पैदा हो गई हैं। बीजेपी ने अपना वादा तो निभाया है, लेकिन पार्टी ने उन्हें करीब डेढ़ दशकों की सत्ता के दौरान जो चाल-चेहरा और चरित्र दिखाया था, उसमें वह अब नए-नए रंग भरने लगी है। सबसे पहला बदलाव सुशील मोदी के रूप में हुआ है, जिनके साथ नीतीश का ऐसा तालमेल था कि कभी-कभी यह पता लगाना मुश्किल होता था कि वह भाजपा के नेता हैं या मुख्यमंत्री के प्रवक्ता हैं। खैर, उन्होंने अपनी भड़ास कुछ हद तक ट्विटर के जरिए निकाली भी ली है। लेकिन, सीएम नीतीश कुमार के लिए अपने कैबिनेट में उन्हें भुला पाना आसान नहीं है। शायद इसी की बानगी शपथग्रहण समारोह में भी दिखाई पड़ी।
बीजेपी ने इस बार सुशील मोदी की जगह तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी के रूप में अपने दो विधायकों को नीतीश का डिप्टी बनाया है। राज्यपाल फागू चौहान ने जब मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार को सातवीं बार पद और गोपनीयता की शपथ दिलवा दी, फिर मंत्रिमंडल में वरिष्ठता के हिसाब से पहले तारकिशोर प्रसाद और उनके बाद रेणु देवी को शपथ दिलाई। लेकिन, समारोह में मौजूद लोग तब हैरान रह गए जब दोनों नए-नवेले उपमुख्यमंत्री, अपनी नियुक्ति के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास हाथ जोड़े अभिवादन के लिए पहुंचे तो सीएम अपनी सीट से उनके स्वागत के लिए खड़े भी नहीं हुए। जाने वह किस ख्याल में खोए रह गए कि उस वक्त वह सामान्य शिष्टाचार भी भूल गए।
हालांकि, इस सरकार में दो उपमुख्यमंत्रियों के अलावा दोनों सहयोगियों की ओर से पांच-पांच मंत्री बने हैं और एक-एक मंत्री दूसरे सहयोगी दलों से बनाए गए हैं। विभागों के बंटवारे में भी सीएम के फैसले पर बीजेपी की कोई खास दखलंदाजी नहीं बताई जा रही है। लेकिन, जिस तरह से गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, महाराष्ट्र के पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस जैसे नेताओं की लाइन लगी थी, उसमें बिहार के सत्ताधारी गठबंधन में बदले समीकरण का संकेत साफ महसूस किया जा सकता है; और शायद यही वजह है कि विपक्ष के तंज झेल रहे नीतीश कुमार सीटें कम होने के सदमे से उबर नहीं पा रहे हैं।
243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में एनडीए 125 सीटों की बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हुआ है, जिसमें बीजेपी को 74, जदयू को 43, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा को 4 और विकासशील इंसान पार्टी को भी 4 सीटें मिली हैं। बिहार विधानसभा में सामान्य बहुमत के लिए 122 सीटों की दरकार है। उस हिसाब से सत्ताधारी गठबंधन के पास स्पष्ट बहुमत से 3 विधायक ज्यादा हैं और एक निर्दलीय ने भी समर्थन दिया है।
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