क्या कोई मानेगा कि लालू यादव नीतीश कुमार के भाई समान दोस्त हैं?
पटना। क्या लालू यादव नीतीश कुमार के भाई समान दोस्त हैं? पिछले तीन साल की कड़वाहट को देख कर तो ऐसा बिल्कुल नहीं लगता। फिर क्यों नीतीश कुमार ने लालू यादव को भाई समान दोस्त बताया? क्या तेजस्वी के जोरदार हमलों से विचलित नीतीश के मुंह से अकस्मात ये बात निकल गयी? या फिर वे भरमा रहे हैं? चुनाव के दौरान नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने एक दूसरे खिलाफ जम कर आग उगला। लालू यादव भी ट्विटर के जरिये मोर्चा संभाले रहे। एक दूसरे की फजीहत में कोई कमी नहीं रही। न भाईचारा दिखा न दोस्ती दिखी। अब नीतीश कुमार लालू यादव के लिए इतनी आत्मीय बात क्यों कह रहे?
लालू
विरोध
नीतीश
की
पहचान
जेपी
आंदोलन
ने
नीतीश
कुमार
को
राजनीतिज्ञ
बनाया
तो
लालू
विरोध
ने
उन्हें
राजनीति
में
स्थापित
किया।
लालू
यादव
की
नीतियों
का
विरोध
कर
के
ही
नीतीश
ने
बिहार
में
अपना
सिक्का
जमाया।
इसलिए
वे
कभी
राजनीतिक
रूप
से
लालू
यादव
के
लिए
उदार
नहीं
हो
सकते।
जब
नीतीश
कुमार
ने
तेजस्वी
को
कहा
कि
तुम्हें
डिप्टी
सीएम
किसने
बनाया
तो
केन्द्रीय
मंत्री
गिरिराज
सिंह
ने
तंज
कसा,
इसकी
वजह
से
ही
तो
आज
आपको
परेशानी
हो
रही
है।
लालू
यादव
को
आज
भी
मलाल
है
कि
1994
में
नीतीश
क्यों
उनसे
अलग
हुए
थे।
2017
में
जब
नीतीश
ने
राजद
को
दूध
की
मक्खी
की
तरह
सरकार
से
बाहर
फेंक
दिया
तो
ये
अदावत
चरम
पर
पहुंच
गयी।
2015
में
जानी
दुश्मन
से
दोस्त
बने
लालू-नीतीश
दो
साल
भी
साथ
नहीं
चल
पाये।
राजनीतिक
पंडितों
का
कहना
है
कि
लालू
विरोध
ही
नीतीश
की
पहचान
है।
अगर
वे
इस
पहचान
से
समझौता
करते
हैं
तो
उनके
समर्थकों
में
भ्रम
पैदा
होगा
जिसका
उन्हें
नुकसान
उठाना
पड़ेगा।
एक
दूसरे
के
बारे
में
क्या
सोचते
हैं
लालू-नीतीश
?
जुलाई
2017
में
जब
नीतीश
ने
लालू
यादव
का
साथ
छोड़
कर
अचानक
भाजपा
के
साथ
सरकार
बना
ली
थी
तो
उस
वक्त
दोनों
के
अंदर
दबा
ज्वालामुखी
फूट
पड़ा
था।
तब
नीतीश
कुमार
ने
कहा
था,
लालू
यादव
जननेता
नहीं
बल्कि
जात
के
नेता
हैं।
मैं
जातीय
आधार
पर
विश्वास
नहीं
करता।
बहुत
लोग
(लालू
यादव)
दावा
करते
हैं
कि
नीतीश
को
हम
बनाये।
वे
क्या
मुझे
बनाएंगे,
मैनें
ही
1988
में
उनको
नेता
प्रतिपक्ष
बनाने
में
मदद
की
थी।
इस
बात
पर
लालू
यादव
भड़क
गये
थे।
उन्होंने
कहा
था,
नीतीश
कुमार
अगर
मास
लीडर
हैं
तो
1994
में
वे
कुर्मी
सम्मेलन
में
क्यों
गये
थे?
कुर्मी
सम्मेलन
तो
मेरे
खिलाफ
हुआ
था,
नीतीश
कुमार
जनता
दल
में
रहते
हुए
भी
उसमें
क्यों
गये
?
दोनों
के
मन
में
गांठ
2017
में
नीतीश
इस
बात
से
खफा
थे
कि
लालू
ने
उन्हें
जहर
क्यों
कहा
था।
उन्होंने
कहा
था,
बताइये
मैं
जहर
हूं
?
मैंने
उनको
(लालू
यादव)
बहुत
बर्दाश्त
किया,
क्या
अपने
बूते
2015
में
इतनी
सीटें
जीत
गये
थे
?
दरअसर
2015
में
महागठंबधन
बनने
की
प्रक्रिया
में
बहुत
बखेड़ा
हुआ
था।
कांग्रेस
ने
तो
नीतीश
कुमार
को
नेता
मान
लिया
था
लेकिन
लालू
यादव
तैयार
नहीं
थे।
मुलायम
सिंह
यादव
के
समझाने
पर
लालू
तैयार
तो
हुए
लेकिन
उनके
मन
में
कसक
बाकी
थी।
नीतीश
को
नेता
मानने
के
बाद
लालू
यादव
ने
कहा
था,
मैं
साम्प्रदायिक
ताकतों
को
रोकने
के
लिए
जहर
का
घूंट
पीने
को
तैयार
हूं।
तब
ये
माना
गया
था
कि
जहर
शब्द
नीतीश
कुमार
के
लिए
कहा
गया
है।
इस
बात
को
नीतीश
कुमार
ने
गांठ
बांध
ली
थी।
लालू
ने
मन
से
कभी
नीतीश
को
नेता
नहीं
माना।
उन्होंने
कहा
भी
था,
मुझे
भरोसा
नहीं
था।
मैं
नहीं
चाहता
था
कि
इस
आदमी
(नीतीश
कुमार)
को
फिर
नेता
के
रूप
में
खड़ा
किया
जाये
लेकिन
मुलायम
सिंह
यादव
के
कहने
पर
मान
गया।
इस
बात
को
लेकर
दोनों
के
मन
में
आज
भी
खुंदक
है
और
शायद
ही
ये
कभी
खत्म
हो।
अगर
राजनीति
के
अचंभे
ने
फिर
कभी
दोनों
को
मिला
भी
दिया
तो
अंजाम
से
सब
वाकिफ
हैं।
लालू
के
घर
छापेमारी
के
बाद
तल्खी
7
जुलाई
2017
के
वाकये
ने
भी
दोनों
के
रिश्ते
में
कड़वाहट
घोल
दी।
उस
समय
लालू
यादव
नीतीश
सरकार
में
साझीदार
थे।
तेजस्वी
डिप्टी
सीएम
के
पद
पर
थे।
तेजप्रताप
भी
मंत्री
थे।
इस
बीच
शुक्रवार
को
तड़के
(7
जुलाई)
लालू
यादव
के
कई
ठिकानों
पर
एक
साथ
सीबीआई
की
रेड
पड़
गयी।
इस
छापामारी
के
पहले
ही
नीतीश
कुमार
गुरुवार
को
राजगीर
चले
गये
थे।
मुख्यमंत्री
सचिवालय
की
तरफ
से
ये
जानकारी
दी
गयी
कि
नीतीश
कुमार
की
तबीयत
खराब
है
इसलिए
वे
स्वास्थ्य
लाभ
के
लिए
राजगीर
गये
हैं।
तब
राजद
समर्थकों
ने
ये
आरोप
लगाया
था
कि
मुख्यमंत्री
होने
के
नाते
नीतीश
कुमार
को
इन
छापों
की
पहले
से
जानकारी
थी।
लेकिन
उन्होंने
जानबूझ
कर
पटना
छोड़
दिया
था
ताकि
कोई
उनसे
मदद
नहीं
मांगी
जा
सके।
राजद
समर्थकों
में
इस
बात
का
रोष
था
कि
सरकार
में
रहने
के
बाद
भी
फजीहत
हो
गयी।
लालू
यादव
ने
बाद
में
कहा
भी
था
कि
जब-जब
नीतीश
कुमार
बीमारी
का
बहाना
बनायें
तो
समझिए
कि
कोई
खतरनाक
काम
होने
वाला
है।
इन
दृष्टांतों
के
आधार
पर
कहा
जा
सकता
है
कि
नीतीश
कुमार
और
लालू
यादव
एक
दूसरे
पर
बिल्कुल
भरोसा
नहीं
करते।
ऐसे
में
अगर
नीतीश
कुमार,
लालू
यादव
को
भाई
समान
दोस्त
कहते
हैं,
तो
शायद
ही
कोई
इस
पर
भरोसा
करे।