Nitish Kumar की सलाह की अनदेखी करना क्या नरेंद्र मोदी की बड़ी गलती तो नहीं?
पटना। क्या नीतीश कुमार की सलाह नहीं मान कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गलती की है ? क्या धड़ल्ले से बिहार पहुंच रहीं स्पेशल रेलगाड़ियां दरअसल कोरोना एक्सप्रेस हैं ? 2 मई को करीब बारह सौ मजदूर पटना (दानापुर) पहुंचे। 4 मई को केरल से करीब ढाई हजार मजदूर दो स्पेशल ट्रेनों से दानापुर पहुंचे। इसी दिन कोटा से 2400 छात्रों को लेकर दो ट्रेन बिहार के बरौनी जंक्शन पहुंचीं। एक अन्य ट्रेन से करीब एक हजार छात्र कोटा से गया पहुंचे। मंगलवार को कोटा, कर्नाटक, केरल आदि जगहों से 10 विशेष रेलगाड़ियां चल कर दानापुर पहुंचेंगी। नीतीश सरकार के मंत्री संजय कुमार झा के मुताबिक बिहार के 17 लाख लोग दूसरे राज्यों में हैं। बिहार के आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव के का कहना है कि हम चाहते हैं कि लोगों की बिहार वापसी के लिए हर रोज आठ से दस ट्रेनें चलायी जाएं। तो क्या सभी 17 लाख बिहारियों को अपने घर लाने की तैयारी है ? बिहार में जिस तेजी से कोरोना का संक्रमण फैल रहा है उसको देख कर यह फैसला घातक साबित हो सकता है। बिहार में बाहरी लोगों के आगमन के बाद ही यह बीमारी फैली है। अगर 17 लाख लोग बिहार लौट आएंगे तो कई तरह की नयी समस्याएं खड़ी हो जाएंगी। अगर बिहार में कोरोना का विस्फोट हुआ तो इसके लिए कौन जिम्मवार होगा?
बाहर से आये संक्रमण लाये
24 मार्च को जब देश में लॉकडाउन का एलान हुआ था उस समय बिहार में कोरोना के केवल तीन मरीज थे। बिहार में कोरोना का पहला मरीज वह था जो कतर से मुंगेर आया था। 7 अप्रैल तक बिहार के केवल 10 जिलों में ही कोरोना का असर था और रोगियों की संख्या महज 32 थी। इनमें से 8 ठीक भी हो गये थे। करीब एक महीने बाद बिहार की तस्वीर बिल्कुल उलट गयी। 5 मई को कोरोना संक्रमितों की संख्या 538 पहुंच गयी है। यह बीमारी 10 से 32 जिलों में फैल गयी। ऐसा क्यों हुआ ? पहले तो तबलीगी जमात के लोगों की लापरवाही से बात बिगड़ी फिर मजदूरों के घर लौटने की आपाधापी ने स्थिति को नियंत्रण से बाहर कर दिया। लॉकडाउन के बीच दिल्ली से बसों में लद कर लोग बिहार आने लगे। कुछ पैदल और ठेला से भी बिहार पहुंच गये। अगर केजरीवाल सरकार ने प्रवासी बिहारियों का ख्याल रखा होता तो ये रेलमपेल नहीं होती। 28 मार्च से 1 अप्रैल तक करीब 60 हजार लोग बिहार बिहार पहुंचे। तबलीगी जमात से जुड़े बिहार के करीब 165 लोग निजामुद्दीन मरकज में गये थे। इनमें अधिकतर लोग लौटे और बिना जांच कराये ही कई दिनों तक इधर-उधर घूमते रहे। इसकी वजह से बिहार में कोरना संक्रमण का विस्तार हुआ। अब अगर लाखों लोग बिहार में आये तो क्या स्थिति होगी ?
संकट में भी राजनीति
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 28 मार्च को कह दिया था कि अगर मजदूरों को बसों से उनके राज्यों में भेजा गया तो समस्याएं और बढ़ेंगी। फिर लॉकडाउन का मतलब ही क्या रहा जाएगा। उस समय उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने 1000 हजार बसें चला कर लोगों को घर बुलाया था। तब आरोप लगा था कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने जानबूझ कर ऐसे हालात पैदा किये थे कि मजदूर घर जाने के लिए बेचैन हो जाएं। योगी सरकार के फैसले से नीतीश कुमार पर लोगों को घर बुलाने का दबाव बढ़ गया। इस मुद्दे पर बिहार में भाजपा और जदयू के बीच तनातनी भी हुई। इस बीच 17 अप्रैल को योगी सरकार ने कोटा से छात्रों को अपने गृहराज्य लाने के लिए 300 बसें चलाने का एलान कर किया। लेकिन नीतीश कुमार ने कोटा से बिहारी छात्रों को लाने की किसी भी योजना से इंकार कर दिया। उनका कहना था कि बसों से छात्रों को बुलाने का मतलब है सुरक्षा के उपायों की अनदेखी करना। इसके बाद बिहार में इस मुद्दे पर राजनीति शुरू हो गयी। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने आरोप लगा दिया कि नीतीश को कोटा में पढ़ रहे बिहारी छात्रों की कोई चिंता नहीं है। इस मुद्दे पर भाजपा और जदयू में भी तकरार होने लगी। इस बीच केन्द्र सरकार ने सभी राज्यों को इस बात की मंजूरी दे दी कि वे बाहर में रहने वाले अपने लोगों को बसों के जरिये घर बुला सकते हैं। नीतीश ने बसों की कमी का हवाला दे कर इससे भी इंकार कर दिया।
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नीतीश को माननी पड़ी बात
नीतीश बार-बार इस बात को कहते रहे कि सोशल डिस्टेंसिंग के नियम को तोड़ कर बड़ी संख्या में लोगों को लाना खतरनाक साबित होगा। जब भाजपा के एक विधायक लॉकडाउन के नियमों को तोड़कर अपनी बेटी को कोटा से बिहार ले आये तो राजनीति और गरम हो गयी। नीतीश ने एक्शन लिया और पास जारी करने वाले अफसरों को निलंबित कर दिया। विधायक के सरकारी बॉडीगार्ड को भी सस्पेंड कर दिया गया। कोटा मसला नीतीश के गले की फांस बनने लगा। तेजस्वी ने भी पासा फेंक दिया कि अगर सरकार मंजूरी दे तो राजद अपने खर्चे पर छात्रों को कोटा से बिहार लाएगा। भाजपा के नेता भी छात्रों को कोटा से बुलाये जाने के पक्ष में आ गये। जब केन्द्र सरकार ने इसके लिए हरी झंडी दे दी तो नीतीश के सामने कोई और रास्ता नहीं बचा। अब ट्रेन से हजारों हजार मजदूर और छात्र पटना लौट रहे हैं। हड़बड़ी में जांच के नाम पर उनकी थर्मल स्ट्रीमिंग हो रही है। इस झटपट जांच का क्या फायदा ? कई बार कोरोना के लक्ष्ण 20-25 जिन के बाद प्रगट होते हैं। कोरोना की असल जांच रिपोर्ट तो दस-बारह घंटों के बाद मिलती है। इतनी बड़ी संख्या में एक साथ ये जांच भी मुश्किल है। ऐसे में अगर महामारी फैलती है तो इसके लिए कौन जिम्मेवार होगा?