चिराग, चिराग रटते-रटते भाजपा के नेता कहीं लोजपा को जिताऊ पार्टी न बना दें !
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चिराग से कट्टिस है, कट्टिस है और कट्टिस है... ये चिल्लाते- चिल्लाते भाजपा नेताओं का गला सूख गया है। चिराग को कहीं पीएम मोदी के नाम का फायदा न मिल जाए इस फिक्र में भाजपा के अब बड़े नेता भी दुबले हुए जा रहे हैं। चुनावी तैयारियों की प्रेस काफ्रेंस में भी भाजपा नेताओं का अधिकतर समय ये बताने में ही खर्च हो रहा है कि लोजपा अब हमारी दुश्मन है। जदयू के दबाव में भाजपा के अब बड़े नेता भी सफाई देते नहीं थक रहे। प्रकाश जावड़ेकर जैसे गंभीर नेता ने भी मर्यादा का ख्याल नहीं रखा। उन्होंने लोजपा को 'वोटकटवा’ पार्टी कहा है। देवेन्द्र फडणवीस, भूपेन्द्र यादव और संबित पात्रा जैसे नेता चिराग के विरोध में बयान दे रहे हैं। अगर भाजपा और जदयू की नजर में लोजपा की कोई अहमियत नहीं तो फिर इतनी चीख-पुकार क्यों मची है ? अगर लोजपा से इतना ही परहेज है तो भाजपा केन्द्र में उससे क्यों नहीं नाता तोड़ लेती ? भाजपा को तो अकेले बहुमत प्राप्त है, सरकार पर कोई असर भी नहीं पड़ेगा। लेकिन सबको मालूम है कि भाजपा ने अगर ऐसा किय़ा तो उसके क्या नतीजे होंगे ? बिहार में लोजपा का विरोध और केन्द्र में समर्थन, ये विरोधाभाषी स्थिति तो खुद भाजपा ने पैदा की है। भाजपा के इस आधे- अधूरे विरोध का चिराग जम कर फायदा उठा रहे हैं।
एनडीए को कई सीटों पर खेल बिगड़ने का डर
लोजपा को बेहैसियत बतानने वाले जदयू और भाजपा के नेता अंदर ही अंदर डरे हुए हैं। रामविलास पासवान की मौत के बाद जदयू को कई सीटों पर खेल बिगड़ने का अंदेशा पैदा हो गया है। भाजपा की भी पांच सीटें लोजपा के कारण संकट में फंसती दिख रही हैं। चिराग पासवान ने नरेन्द्र मोदी के नाम को जिस तरह से चुनावी ब्रह्मास्त्र में बदल दिया है उससे भाजपा के नेता बेचैन हैं। वे चाह कर भी चिराग को मोदी का नाम लेने से रोक नहीं पा रहे हैं। भारत के चुनावी इतिहास में आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि किसी नेता के नाम लेने और नहीं लेने पर इतना वितंडा खड़ा हुआ हो। चिराग के पैंतरे से भाजपा के नेता इतने उतावले हो गये हैं कि अब उनकी जुबान में कड़वाहट पैदा हो गयी है। अभी तक रामविलास पासवान का श्राद्ध कर्म भी नहीं हुआ है। अगर चिराग ने भाजपा नेताओं की बदजुबानी को मुद्दा बना लिया तो 2015 की तरह फिर कहीं खेल न हो जाए। 2015 में मोहन भागवत के आरक्षण पर बयान और अमित शाह के पाकिस्तान में पटाखे फूटेंगे वाले जुमले पर भाजपा की नैया बीच मझधार में डूब गयी थी।
पहले चरण में जदयू के चार मंत्री फंसे
पहले चरण में जदयू के चार मंत्रियों की सीट लोजपा के कारण बहुकोणीय लड़ाई में फंस गयी है। जमालपुर से नीतीश सरकार के मंत्री शैलेश कुमार चुनाव लड़ रहे हैं। यहां लोजपा ने मुंगेर जिला परिषद के उपाध्यक्ष दुर्गेश कुमार सिंह को मैदान में उतारा है। करणी सेना ने दुर्गेश को समर्थन की घोषणा की है। लोजपा के ‘बिहार फर्स्ट' कार्यक्रम में युवा रुचि भी दिखा रहे हैं। इसी तरह जहानाबाद से नीतीश सरकार के वरिष्ठ मंत्री कृष्णनंदन वर्मा चुनाव लड़ रहे हैं। उनके खिलाफ लोजपा ने भाजपा की पूर्व नेता इंदु कश्यप को मैदान में उतारा है। इंदु भाजपा महिला मोर्चा की मजबूत नेता रही हैं। जहानाबाद जिले की तीनों सीटें जदयू को दिये जाने से भाजपा समर्थकों में बहुत नाराजगी है। इंदु कश्यप इस नाराजगी को भुनाने के लिए पूरा जोर लगाये हुए हैं। बक्सर जिले की राजपुर सुरक्षित सीट से नीतीश के एक और मंत्री संतोष निराला खड़े हैं। उन्हें लोजपा के निर्भय कुमार निराला चुनौती दे रहे हैं। निर्भय केसठ पंचायत के पूर्व मुखिया हैं और पिछले कुछ साल से राजपुर में बहुत सक्रिय हैं। वे गांव-गांव में रामविलास पासवन की शोकसभा आयोजित कर दलित मतदाताओं को लोजपा के पक्ष में गोलबंद कर रहे हैं। सबसे विकट स्थिति दिनारा से चुनाव लड़ रहे मंत्री जय कुमार सिंह की है। इस सीट पर भाजपा के मजबूत नेता रहे राजेन्द्र सिंह अब लोजपा से चुनाव लड़ रहे हैं। राजेन्द्र सिंह की आज भी भाजपा वोटरों में पैठ बनी हुई है। इसके अलावा जदयू के कई विधायकों की सीट भी लोजपा के कारण किंतु-परंतु में उलझ गयी है। बिहार चुनाव में सबसे बड़े चेहरे समझे जाने वाले नीतीश कुमार के सामने अचानक ऐसी स्थिति आ जाने से जदयू के नेता परेशान हो गये हैं। जदयू के दबाव पर अब भाजपा के नेताओं को चिराग के खिलाफ मोर्चाबंदी करनी पड़ी है।
चिराग का मोदीमय चेहरा
प्रकाश जावेड़कर ने लोजपा को ‘वोटकटवा' पार्टी कहा है। यानी जावड़ेकर का कहना है कि लोजपा वोट काटने के लिए चुनाव लड़ रही है, जीतने के लिए नहीं। जावड़ेकर के इस बयान से लोजपा में बहुत तीखी प्रतिक्रिया हुई है। इससे आहत लोजपा के समर्थक एकजुट होने के लिए प्रेरित हुए हैं। लोजपा से चुनाव लड़ने वाले अधिकतर नेता भाजपा और जदयू से आये हैं। इन नेताओं की अपनी व्यक्तिगत पहचान है। अगर लोजपा के कोर वोटर और प्रत्याशियों के अपने समर्थक मिल गये तो चुनावी नतीजों में बहुत फर्क आ जाएगा। वैसे भी लोजपा का पिछला वोट शेयर करीब 4 फीसदी है। 4 फीसदी वोट के हेरफेर से तो एनडीए की उम्मीदों पर पानी फिर जाएगा। चिराग पासवान अब खुद को नरेन्द्र मोदी का हनुमान बता रहे हैं। पिछले कुछ दिनों में चिराग ने एक योजनाबद्ध तरीके से खुद को सबसे बड़े मोदी समर्थक के रूप में प्रचारित किया है। रामविलास पासवान की मौत से उपजी सहानुभूति और चिराग का मोदीमय चेहरा, धीरे-धीरे एक बड़ा चुनावी फैक्टर बन रहा है। इसी बात से भाजपा और जदयू की बेचैनी बढ़ गयी है।
रामविलास पासवान के निधन से नीतीश को होगा बिहार चुनाव में बड़ा नुकसान