बिहार में सियासत की पिच पर अगर नीतीश शेन वार्न हैं तो शाहनवाज हैं तेंदुलकर !
बिहार के सियासी पिच पर अगर नीतीश कुमार शेन वार्न हैं तो शाहनवाज हुसैन सचिन तेंदुलकर। शेन वार्न को अपनी बलखाती हुई गेंदों पर बहुत गुमान था। वे किसी बल्लेबाज को तवज्जो नहीं देते। लेकिन 1998 में जब सचिन तेंदुलकर से उनका सामना हुआ तो उनकी आंखों पर पड़ा भरम का पर्दा एकबारगी से हट गया। तब शेन वार्न की समझ में आया कि कोई तो है जो उनको जवाब दे सकता है। तो क्या बिहार की सियासी पिच पर अब वार्न- तेंदुलकर की तरह नीतीश और शाहनवाज में मुकाबला होने वाला है?
लाजवाब गुगली कैसे खेलेंग ?
शेन वार्न की गुगली का कोई जवाब नहीं। 1993 के ओल्ड ट्रैफर्ड टेस्ट में उन्होंने माइक गैटिंग को लेग स्टम्प से करीब डेढ़ फीट दूर गेंद फेंकी थी। गैटिंग ने समझा गेंद वाइड है, बाहर जाएगी। लेकिन वार्न की कलाई का जादू था कि गेंद 180 डिग्री के कोण पर घुमी और विकेट ले उड़ी। इसे 'शताब्दी की गेंद' करार दिया गया था। नीतीश कुमार भी बिहार की राजनीति के सबसे सफल नेता हैं। सातवीं बार मुख्यमंत्री बने हैं। दो साल 11 महीने और पूरा कर लेंगे तो वे बिहार में सबसे अधिक दिनों तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड बना लेंगे। नीतीश कुमार की लाजवाब गेंदबाजी (राजनीति) के सामने कोई टिक नहीं पा रहा था। भाजपा भी नहीं। तब बिहार के इस सियासी शेन वार्न की काट में सचिन तेंदुलकर की खोज शुरू हुई। अंत में भाजपा की नजर शाहनवाज हुसैन पर जा कर ठहरी। राजनीति के वंडर ब्वॉय रहे शाहनवाज हुसैन को बिहार की पिच पर उतारा गया। शाहनवाज भी सचिन की तरह बहुत कम्र में कामयाब हुए हैं। 32 साल की उम्र में कैबिनेट मिनिस्टर बन कर उन्होंने भी एक बड़ा सियासी रिकॉर्ड बनाया था। सचिन की तरह शाहनवाज हुसैन की बैटिंग (राजनीति) में भी धैर्य और आक्रमण का अद्भुत संगम है। वे सहज लगते हैं लेकिन तकनीकी रूप से बहुत मंझे हुए खिलाड़ी हैं।
आक्रमण और सुरक्षा का संगम
शाहनवाज हुसैन की बैटिंग में एग्रेशन के साथ डिफेंस का एक नमूना देखिए। 2019 के लोकसभा चुनाव में जब भागलपुर की सीट जदयू को दे दी गयी तो शाहनवाज हुसैन की उम्मीदों पर पानी फिर गया। तब उन्होंने अपनी सीट छीने जाने का आरोप नीतीश कुमार पर लगाया था। इस आरोप से नीतीश कुमार शाहनवाज हुसैन पर भड़क गये थे। नीतीश ने इसे गैरजिम्मेदाराना बयान बता कर भाजपा से सफाई तक मांगी थी। नीतीश और शाहनवाज में तनातनी हुई। नीतीश बड़े प्लेयर में शुमार हैं। नवम्बर 2020 में भाजपा के सहयोग से सातवीं बार मुख्यमंत्री बने। शाहनवाज ने नीतीश कुमार की गेंदों को सम्मान के साथ खेला। 8 जनवरी 2021 को शाहनवाज हुसैन बुके लेकर नीतीश कुमार को बधाई देने सचिवालय पहुंच गये। दोनों के हावभाव बदले हुए थे। एक अच्छे बल्लेबाज ने एक अच्छे गेंदबाज को पूरे एतमात के साथ खेला। दोनों ने मन ही मन एक दूसरे की खामियों और खूबियों को तौला। तभी ये अंदाजा हो गया था कि इस मुलाकात से मैच का रुख बदलने वाला है।
नीतीश की ढीली गेंद
नीतीश कुमार की गेंदबाजी (राजनीति) मे बहुत विविधता है। लेकिन अब उनकी वे गेंदें भी ढीली साबित हो रही हैं जो कभी लाजवाब हुआ करती थीं। इसे पिच का बदलता हुआ मिजाज समझ लें या मौसम का असर, लेकिन ऐसा हो रहा है। नीतीश कुमार ने 2020 के विधानसभा चुनाव में 11 मुस्लिम प्रत्याशी उतारे थे लेकिन सब के सब हार गये। नीतीश की गुगली बेअसर हो गयी। नीतीश की इस ढीली गेंद का अब शाहनवाज हुसैन फायदा उठाएंगे। ये सच है कि शाहनवाज भाजपा की टीम से खेल कर बहुसंख्यक मुसलमानों के नेत नहीं बन सकते। लेकिन वे नीतीश कुमार को तो काउंटर कर ही सकते हैं। ऐसा नहीं है शाहनवाज रातों रात अल्पसंख्यक राजनीति की कायावपट कर देंगे। इसमें कुछ वक्त लगेगा। सचिन ने भी 9 साल मैदान में पसीना बहाने के बाद ही वार्न को जवाब दिया था। रोम एक दिन में नहीं बनता।
बिहार में क्यों खेला जा रहा है तोड़-फोड़ की राजनीति का माइंड गेम
शाहनवाज की वो चमत्कारी पारी
शाहनवाज भी कुछ वक्त लेंगे। राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं होता। उन्होंने 70 फीसदी मुस्लिम वोटरों वाली किशनगंज सीट पर पहली बार 1998 में चुनाव लड़ा था। करीबी मुकाबले में करीब छह हजार वोटों से हार गये। 1999 में फिर खड़ा हुए। इस बार तस्लीमुद्दीन जैसे महाबली मुस्लिम नेता को 8 हजार 648 वोटों सें हरा दिया। तब तो वाजपेयी सरकार 13 महीने में गिर कर फिर खड़ा होने की कोशिश कर रही थी। न कोई हवा थी न कोई लहर। फिर भी किशनगंज के मुसलमानों ने एक कट्टर नेता को छोड़ कर एक उदार नेता को गले लगाया था। कुछ तो कारण रहा होगा। हां, फिर ऐसा नहीं हुआ। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि अब आगे कभी नहीं होगा। एक बार शाहनवाज चमत्कारी पारी खेल चुके हैं। खेल का सिद्धांत है, आखिर तक उम्मीद का दामन थामे रहिए। फर्क जरूर पड़ेगा। अब बिहार एनडीए के घरेलू मुकाबले में एक दिलचस्प जोर आजमाइश की जमीन तैयार हो रही है।