मोदी से नीतीश की अतीत की नफरत बन रही उनकी राह की अब सबसे बड़ी बाधा
पटना। बिहार में अब एनडीए को नरेंद्र मोदी से चमत्कार की उम्मीद है। नरेंद्र मोदी 23 अक्टूबर से चुनाव प्रचार को गति देने पहुंच रहे हैं। मतलब ये कि पहले चरण के मतदान से ठीक पांच दिन पहले। 12 रैलियां वे करेंगे। जब चुनाव की घोषणा हुई थी तब ऐसा लग रहा था कि एनडीए के लिए कोई चुनौती नहीं है। वह आसानी से बाजी मार लेगी। इस बीच कई एक घटनाएं घटी हैं जिनसे स्थिति में बदलाव आया है। वहीं, नरेंद्र मोदी की सभाओं समेत कई एक घटनाएं ऐसी घटने वाली हैं जिस वजह से भी सूबे की सियासी फिजां में परिवर्तन होगा। एनडीए की उम्मीद आखिरकार अपने सबसे बड़े स्टार प्रचारक पर क्यों टिक गयी है? इसे भी समझना जरूरी है।
नीतीश की लोकप्रियता से तेजस्वी सिर्फ चार कदम नीचे
बिहार में सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा खुद सीएम नीतीश कुमार बन गये हैं। ऐसी एंटी इनकंबेंसी पहले कभी नहीं देखी गयी थी। कम से कम खुद नीतीश कुमार ने तो कभी नहीं देखा था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लोकप्रियता का स्तर 31 फीसदी तक गिर चुका है। तेजस्वी यादव उनसे महज 4 फीसदी पीछे 27 फीसदी पर हैं। मगर, इसका मतलब ये न समझिए कि एनडीए को कोई लीड है। झारखण्ड में रघुवर दास और हेमंत सोरेन के बीच लोकप्रियता का अंतर सर्वे एजेंसियों के मुताबिक 5 फीसदी था। फिर भी रघुवर दास चुनाव नहीं बचा सके। अपनी भी सीट हार गये। अगर नीतीश चुनाव लड़ रहे होते यह भी दोहाराया जा रहा हो सकता था। मगर, एक बात तो तय है कि सीएम के तौर पर लोकप्रियता में 4 फीसदी बढ़त का मतलब चुनाव में हार ही है।
नीतीश का तेजी से अलोकप्रिय होना चमत्कार में बाधा
नीतीश कुमार का तेजी से अलोकप्रिय होता जाना एनडीए के लिए चिंताजनक है और यही वो परिस्थिति है जिसे नरेंद्र मोदी को अपने चमत्कारिक नेतृत्व से बदलना है। क्या ऐसा कर पाना मुमकिन होगा? नरेंद्र मोदी अंतिम समय में गुजरात की फिजां बदलने में कामयाब रहे थे। कांग्रेस की सरकार वहां बनते-बनते रह गयी थी। यह मोदी का चमत्कार था। मगर, गुजरात नरेंद्र मोदी का अपना प्रदेश था। बिहार में एक अलग परिस्थिति भी है। कुछ दिलचस्प परिस्थितियों पर गौर कीजिए।
-
यह
पहला
मौका
होगा
जब
नरेंद्र
मोदी
के
साथ
नीतीश
कुमार
मंच
साझा
करेंगे।
-
कभी
मोदी
के
साथ
अपनी
तस्वीर
का
विज्ञापन
छपने
पर
भी
नीतीश
कुमार
हंगामा
बरपाया
करते
थे।
-
नरेंद्र
मोदी
को
बिहार
में
चुनाव
प्रचार
करने
से
नीतीश
कुमार
ने
हमेशा
रोक
रखा
था।
-
एनडीए
में
बीजेपी
तब
नीतीश
की
बात
मानने
को
मजबूर
हुआ
करती
थी।
-
आज
परिस्थिति
बदल
चुकी
है।
नीतीश
को
मोदी
का
हॉर्डिंग
लेकर
वोट
मांगना
पड़
रहा
है।
महंगा पड़ रहा है अतीत में नीतीश का ‘मोदी विरोध'
सवाल ये है कि नीतीश-मोदी की साझा तस्वीर को बिहार की जनता किस रूप में लेगी। यह तस्वीर ऐसे समय पर बनने जा रही है जब नीतीश कुमार के खिलाफ जबरदस्त एंटी इनकंबेंसी है। इसका सबूत सिर्फ प्री पोल सर्वे नहीं है। इसका सबूत खुद एनडीए में लोकजनशक्ति पार्टी और इसके नेता चिराग पासवान हैं। चिराग ने ‘नीतीश हटाओ'का नारा देकर खुद को एक ऐसी स्थिति में खड़ा कर लिया है जहां वे किंगमेकर की भूमिका में आ सकते हैं। चिराग पासवान एनडीए के भीतर नीतीश कुमार के खिलाफ आवाज़ बनकर उभरे हैं। बीजेपी में भी चिराग पासवान के लिए सहानुभूति है। अब आप समझ सकते हैं कि नरेंद्र मोदी के लिए बिहार में एनडीए के पक्ष में चमत्कार कर पाना कितना मुश्किल काम है। मगर, ऐसा भी नहीं है कि कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। फर्क पड़ेगा उन सीटों पर बिल्कुल पड़ेगा जहां बीजेपी और सहयोगी वीआईपी चुनाव लड़ रही हैं। वहां कार्यकर्ताओं में वे उत्साह भर सकते हैं, मुद्दों पर जोश पैदा कर सकते हैं और अपने व्यक्तित्व, केंद्र सरकार के कामकाज के साथ-साथ सपने दिखाने की क्षमता से बाजी भी पलट सकते हैं। मगर, यही काम उन सीटों पर हो पाना मुश्किल है जहां जेडीयू चुनाव लड़ रही है। जाहिर है चमत्कार दिखाने के लिए नरेंद्र मोदी के पास 110 सीटें ही हैं।
110 सीटों पर ही दिखेगा मोदी का चमत्कार!
बीजेपी और जेडीयू में चुनावी तालमेल के समय सीटें इस आधार पर भी बंटी थी कि सामने मुकाबले में कौन है। आरजेडी से टकराने में दोनों ही पार्टियां बचने का विकल्प देख रही थीं। 110 सीटों में बीजेपी 59 सीटों पर कांग्रेस और वामदलों से भिड़ रही है जबकि जेडीयू 38 सीटों पर। सोच यह रही है कि महागठबंधन में गैर आरजेडी दलों को हराना अधिक आसान है। किसी हद तक यह सही भी है। मगर, बदली हुई परिस्थिति में यह बात सिर्फ बीजेपी पर लागू होती है। नरेंद्र मोदी निश्चित रूप से इन 59 सीटों में बड़ा फर्क ला दे सकते हैं। मगर, जेडीयू की हालत तो गैर आरजेडी सीटों पर और अधिक पतली होने वाली है। यहां तक मोदी का चमत्कार पहुंचना मुश्किल लगता है। तेजस्वी यादव ने निश्चित रूप से महागठबंधन को मजबूत शक्ल दिया है और वोटों को महागठबंधन बनाम एनडीए में बांटने में सफलता हासिल की है। यही कारण है कि आरजेडी चुनाव मैदान में मजबूत होकर उभरी है। वामदल भी उत्साह में हैं कि उनका आंकड़ा सुधरने वाला है। वहीं, कांग्रेस भी एंटी नीतीश भावना से फायदा लेने की उम्मीद कर रही है। मगर, बीजेपी का मानना है कि कांग्रेस उसके लिए आसान शिकार है। 59 सीटों में ज्यादातर सीटें कांग्रेस की हैं। इसलिए जब बीजेपी बनाम कांग्रेस होगा तो नरेंद्र मोदी की सभाएं एनडीए के लिए चमत्कार कर दिखलाएंगी।
डैमेज कंट्रोल कैसे करेंगे मोदी-नीतीश?
नरेंद्र मोदी भी अगर अपनी सभा से नीतीश कुमार दूर कर लें या खुद नीतीश कुमार उनकी सभा से दूर रहें तो यह एनडीए के हक में होगा। इससे नीतीश का भी डैमेज कंट्रोल होगा। वह उस फजीहत से बच जाएंगे जिसमें उन्हें याद दिलाया जाएगा कि आपने मोदी के भेजे रिलीफ फंड को लौटा दिया था, मोदी के पीएम उम्मीदवार बनने पर एनडीए से गठबंधन तोड़ लिया था और मोदी के पीएम बनने पर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। अब क्या कुर्सी के लिए उन सारी बातों को वे भूल गये हैं? कम से कम मुसलमानों के प्रभाव वाले इलाकों में जहां से जेडीयू की सीटें हैं ये सवाल बहुत अहम होने वाले हैं। इन सीटों पर मोदी-नीतीश की साझा तस्वीर कतई फायदा पहुंचाने का काम जेडीयू को नहीं करेगी। नरेंद्र मोदी के चमत्कार पर नज़र लगाने वाले फैक्टर खुद एनडीए में ही हैं। ऐसे में नज़र उतारेंगे कैसे नरेंद्र मोदी- यह बिहार के लोगों के लिए जिज्ञासा का विषय बना हुआ है।
Bihar elections 2020: क्यों चिराग के लिए मुश्किल है नीतीश के 'अभेद्य किले' को तोड़ना