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बिहार: शराबबंदी के कारण बढ़ी गांजे की खपत

बिहार में शराबबंदी के कारण अब नशेड़ियों ने गांजे को नए नशे के तौर पर अपना लिया है.

By सीटू तिवारी - बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए
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नशा मुक्ति केंद्र
Seetu tewari
नशा मुक्ति केंद्र

"जिस घर का रोल मॉडल ही बिगड़ जाएगा, तो बच्चे क्यों ना नाराज़ होंगे?" ये कहते हुए 49 साल के रामजीवन की आंखे डबडबा गई.

बिहार के एक ज़िले में छोटी सी दुकान चलाने वाले रामजीवन को साल 1990 से ही शराब पीने की लत लग गई थी. अप्रैल 2016 में जब बिहार सरकार ने शराबबंदी की तो रामजीवन कुछ दिन बड़ा बेचैन रहे.

लेकिन बाद में उन्होने गांजा लेना शुरू कर दिया.

जब्त किया हुआ गांजा
Seetu tewari
जब्त किया हुआ गांजा

पटना के एक नशामुक्ति केन्द्र में भर्ती रामजीवन ने बीबीसी से कहा, "क्या करते. शरीर डिमांड करता है. उसकी डिमांड को वक़्त पर पूरा करना पड़ता है. नहीं कीजिएगा तो आपका आत्मविश्वास डगमगाने लगता है. इसलिए हम गांजा ले लिए. बहुत आराम से पान की दुकान पर उपलब्ध है ये."

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गांजा की खेती से जुड़ी हुई ग्राफिक्स
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गांजा की खेती से जुड़ी हुई ग्राफिक्स

दरअसल बिहार में पूर्ण शराबबंदी के बाद से ही गांजा की खपत में उछाल आया है.

नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के जोनल डायरेक्टर टीएन सिंह के मुताबिक़, "गांजे की आवक और खपत दोनों बढ़ी है. गांजे के कारोबार से जुड़े लोग अब ज्यादा एक्टिव हो गए है जिसकी पुष्टि हमारे जब्ती के आंकड़े करते है."

नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो
Seetu tewari
नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो

नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के आंकड़े बताते है कि साल 2016 में 496.3 किलो गांजा जब्त हुआ था जबकि साल 2017 (सिर्फ़ फ़रवरी तक) में 6884.47 किलो गांजा जब्त हो चुका है.

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बिहार में गांजा तीन जगहों से आता है. ओडीशा के नवरंगपुर, मलकानगिरी, जयपुर, फुलगामी, ब्रह्मपुर, रामगढ़ से जो गांजा बिहार आता है जिसे आंध्रा कहा जाता है.

त्रिपुरा से जहां से आने वाले गांजे को मणिपुरी कहा जाता है. रायपुर, छत्तीसगढ़ से भी गांजा बिहार आता है.

नशामुक्ति केन्द्र
Seetu tewari
नशामुक्ति केन्द्र

दिलचस्प है कि जहां बिहार में गांजे की खपत बढ़ी है वही अफ़ीम की खेती में भी एकदम से इज़ाफा हुआ है. बीते पांच साल में अफ़ीम की खेती के नष्ट करने के आंकड़े देखे तो ये उछाल साफ़ नज़र आता है.

टीएन सिंह कहते हैं, "अफ़ीम की खपत बिहार में नहीं है बल्कि यहां से पंजाब, राजस्थान, उत्तरप्रदेश में सप्लाई होता है. हमारे लिए गांजा सबसे बड़ी चुनौती है और जो नई चुनौती उभर कर आ रही है वो है कोडिन वाले कफ सीरप."

कोडिन का इस्तेमाल दर्द और डायरिया के इलाज में किया जाता है.

पटना के दिशा नशामुक्ति केन्द्र की निदेशक राखी शर्मा भी गांजा के अलावा इस नए ख़तरे की ओर संकेत करती है.

राखी शर्मा
Seetu tewari
राखी शर्मा

वो बताती हैं, "शराब बंद होने के बाद कफ सीरप, अल्प्रेक्स, नाइट्रोसिन, वेलियम, प्राक्सीवौन टैबलेट की खपत बढ़ी है तो फोर्टवीन, मार्फिन इंजेक्शन का इस्तेमाल बेहताशा बढ़ा है. इसके अलावा गांजा तो है ही जिसे लोग ख़ासतौर पर नौजवान बच्चे सिगरेट में रोल करके पी रहे हैं. "

30 साल का मोहन दिन भर में 25 ग्राम गांजा पी लेते हैं. वो बताते हैं कि दस रुपये की गांजे की पुड़िया दुकानों पर आसानी से मिल जाती है. उसे रोजाना 25 ग्राम के लिए 180 रूपए खर्च करने पड़ते है.

शराब
PA
शराब

वो बताते हैं, "17 साल तक दारू पीते रहे. एक दिन दारू ख़त्म हो गया तो गांजा पीना शुरू कर दिया. हम तो सिर्फ़ गांजा पीते है लेकिन मेरे और दोस्त हेरोइन का नशा करने लगे है."

पुलिस से डरने के सवाल पर उन्होंने बहुत आत्मविश्वास के साथ जवाब दिया, "पुलिस पकड़ती है तो चिलम फेंक देती है. इससे ज्यादा क्या करेगी."

गांजा
Getty Images
गांजा

राखी बीते 16 साल से नशा करने वालों के बीच काम कर रही हैं.

वो कहती है, "शराब मिलनी बंद हुई तो शरीर की जरूरत को पूरा करने के लिए ये लोग नशे की दूसरी आदत ख़ासतौर पर गांजा पीने लगे हैं लेकिन गांजा और भी ज्यादा ख़तरनाक है क्योंकि इसको पीने के कुछ साल तक तो आप एकदम सामान्य व्यक्ति की तरह व्यवहार करते रहेंगे लेकिन बाद में आप मानसिक परेशानियों, हाथ पैर की गतिशीलता प्रभावित होगी, सीजोफ्रेनिया के शिकार होंगे. सरकार जल्द इस पर रोक लगाने के लिए प्रभावी कदम उठाए वर्ना आने वाले समय में बिहार का समाज मुसीबत में होगा."

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English summary
Consumption of hashish increased in Bihar due to liquor prohibition.
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