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क्या मुसलमान विधायक संस्कृत में शपथ नहीं ले सकते? फिर बिहार में इतनी चर्चा क्यों?

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बिहार: क्या मुसलमान विधायक संस्कृत में शपथ नहीं ले सकते?

कदवा (कटिहार) से कांग्रेस के विधायक चुने गये डॉ. शकील अहमद खान सुर्खियों में हैं। वजह है उनका संस्कृत में शपथ लेना। क्या एक मुसलमान संस्कृत में शपथ ले सकता है ? इस सवाल पर डॉक्टर खान उखड़ जाते हैं। वे कहते हैं, “मैंने एक क्लासिक जबान में शपथ ली। शपथ लेने के लिए पांच भाषाओं में दस्तावेज रखे हुए थे। संस्कृत में भी था। मैंने हिन्दुस्तान की क्लासिक जबान में ओथ लेने का फैसला किया। इसमें गलत क्या है। संस्कृत में बड़े बड़े महाकाव्य रचे गये हैं। एक से बढ़ कर एक किताबें लिखी गयीं हैं। पाणिनी का व्याकरण भी इसी भाषा में हैं। मैं उर्दू का भी उतना ही शैदाई हूं जितना कि इस क्लासिक जबान का। भारत अनेकता में एकता का देश है। अब लोगों को ये बात समझ में नहीं आ रही तो मैं क्या करूं ?” कौन हैं शकील अहमद खान जिन्होंने ऐसा कहने का सहस दिखाया ? शकील अहमद खान की अकेडमिक बैकग्राउंड बहुत मजबूत है। उन्होंने देश के प्रतिष्ठित जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है। वे जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष भी रहे हैं। लीक तोड़ कर चलना उनकी आदत है।

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कौन हैं शकील अहमद खान ?

कौन हैं शकील अहमद खान ?

शकील अहमद खान कटिहार जिले के काबर गांव के रहने वाले हैं। उनकी शुरुआती पढ़ाई गांव के ही स्कूल में हुई। पटना यूनिवर्सिटी से बीए करने के बाद वे आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय गये। वहां से उन्होंने एमए, एमफिल और पीएचडी का उपाधि हासिल की। अपनी पढ़ाई के दौरान वे कम्युनिस्ट थे। जेएनयू में सीपीएम के छात्र संगठन स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया में सक्रिय रहे। 1991 में उन्होंने एसएफआइ के बैनर तले जेएनयू छात्र संघ का चुनाव लड़ा और उपाध्यक्ष चुने गये। 1992 में उन्होंने फिर चुनाव लड़ा और इस बार वे छात्रसंघ के अध्यक्ष बने। पहले उपाध्याक्ष और फिर अध्यक्ष का चुनाव जीतने से वे जेएनयू कैंपस में मशहूर हो गये। लेकिन कुछ साल बाद शकील अहमद खान का वामपंथ से मोहभंग हो गया। वे 1999 में कांग्रेस में शामिल हो गये।

कम्युनिस्ट से बने कांग्रेसी

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कांग्रेस ने उनकी बौद्धिक प्रतिभा की कद्र करते हुए सीधे सचिव बना दिया। फिर वे नेहरू युवा केन्द्र संगठन में सक्रिय हो गये। यूपीए के पहले शासनकाल में उन्हें नेहरू युवा केन्द्र संगठन का महानिदेशक बनाया गया था। 2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उनको कटिहार के कदवा विधानसभा सीट से मैदान में उतारा था। चुनाव जीत कर वे पहली बार विधायक बने। 2020 में उन्होंने लगातार दूसरी जीत हासिल की। शकील अहमद खान दो टूक बोलने वाले नेता हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद उन्होंने कहा था कि कांग्रेस को महागठबंधन से अलग हो जाना चाहिए क्यों कि राजद को सिर्फ अपनी फिक्र है। पिछले साल उन्होंने नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी में जा कर सबको चौंका दिया था। तब उन्होंने कहा था, सीएम ने प्यार से बुलाया तो मैं आ गया, इसमें गलत क्या है ?

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क्या मुसलमान संस्कृत बोल या पढ़ नहीं सकता ?

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कांग्रेस विधायक शकील अहमद खान के संस्कृत में शपथ लेने के बाद कोई इसकी तारीफ कर रहा है, तो इसे पब्लिसिटी स्टंट करार दे रहा है। कुछ लोगों ने इस पर सवाल भी उठाया है ? क्या मुसलमान संस्कृत पढ़ या पढ़ा नहीं सकता ? पिछले साल ही ये सवाल बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में बहुत जोरशोर से उठा था। 2019 में बीएचयू के संस्कृत विद्य़ा धर्म विज्ञान विभाग में फिरोज खान असिस्टेंट प्रोफेसर बन कर आये थे। यूजीसी के नियमानुसार उनकी नियुक्ति हुई थी। उन्हें संस्कृत में रिसर्च के लिए यूजीसी से फेलोशिप भी मिल रही थी। जब फिरोज खान संस्कृत पढ़ाने के लिए बीएचयू पहुंचे तो उनका विरोध शुरू हो गया। धरना प्रदर्शन का तांता लग गया। छात्रों के एक गुट का कहना था कि धर्म विज्ञान विभाग में एक गैरहिन्दू की नियुक्ति कैसे हो सकती है ? बीएचयू प्रशासन मे फिरोज खान की नियुक्ति को नियमानुसार बता कर विरोध को खारिज कर दिया।

कई मुसलमान हैं संस्कृत के विद्वान

कई मुसलमान हैं संस्कृत के विद्वान

राजस्थान के रहने वाले फिरोज खान ने इस विरोध पर कहा था, मेरे पिता संस्कृत में शास्त्री थे। उनकी बहुत प्रतिष्ठा थी। अपने पिता से प्रभावित हो कर ही मैंने संस्कृत पढ़ने का निर्णय लिया था। स्कूल में लेकर कॉलेज तक मुझे संस्कृत पढ़ने में कोई दिक्कत नहीं हुई। यूजीसी की परीक्षा पास की। मुझे फेलोशिप मिली। कहीं मेरे संस्कृत पढ़ने का विरोध नहीं हुआ। तो अब इसे पढ़ाने पर क्यों हंगामा खड़ा किया जा रहा है ? क्या ज्ञान को जाति और धर्म के दायरे में बांधना उचित है ? अगर आज महामना मदन मोहन मालवीय जी होते तो ऐसा बिल्कुल नहीं होने देते। पीएचडी होल्डर शकील अहमद खान ने अगर संस्कृत भाषा में विधायकी की शपथ ली तो इसमें हायतौबा मचाने जैसी क्या बात है ? देश में कई ऐसे मुसलमान हैं जो संस्कृत भाषा के विद्वान रहे हैं। इनमें महाराष्ट्र के गुलाम दस्तगीर विराजदार का नाम सबसे खास है। उनके घर में कुरान है तो गीता, रामायण उपनिषद,और वेद-पुराण भी हैं। वे विश्व संस्कृत प्रतिष्ठान के महासचिव रहे हैं। जब वे धाराप्रवाह संस्कृत बोलते हैं तो लोग दांतों तले उंगली दबा लेते हैं। पिछले साल उन्होंने महाराष्ट्र की स्कूलों में पढ़ायी जाने वाली संस्कृत की किताबों की रुपरेखा तैयार की थी। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रोफेसर नसरीन संस्कृत की प्रकांड विद्वान रही हैं। इस महिला प्रोफेसर से पढ़े कई छात्र आज अलग अलग विश्वविद्यलयों में संस्कृत पढ़ा रहे हैं। ये फेहरिस्त बहुत लंबी है। कदवा के कांग्रेस विधायक शकील अहमद खान भी एक उच्च शिक्षित व्यक्ति हैं। इसलिए उन्होंने संस्कृत भाषा की विशिष्टता को रेखांकित किया।

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English summary
Can Muslim MLAs not take oath in Sanskrit? Then why so much discussion in Bihar?
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