Buta Singh: जब शहाबु्द्दीन को हथकड़ी पहनाने वाले एसपी को हटाना राज्यपाल को भारी पड़ गया
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Buta Singh: बूटा सिंह 2004 में बिहार के राज्यपाल बने थे। उस समय केन्द्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी। बिहार में राबड़ी देवी मुख्यमंत्री थीं। राजद के समर्थन से चल रही मनमोहन सरकार में लालू यादव रेल मंत्री थे। फरवरी 2005 के बिहार विधानसभा चुनाव में किसी दल को बहुमत नहीं मिला। उस समय लालू यादव को डर था कि कहीं नीतीश रामविलास पासवान की मदद से सरकार ना बना लें। इसलिए उन्होंने बिहार में राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए मनमोहन सरकार पर दबाव बढ़ा दिया। जब तय समय में किसी गठबंधन या दल ने सरकार बनाने का दावा पेश नही किया तो केन्द्र के इशारे पर तत्कालीन राज्यपाल बूटा सिंह ने राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर दी। 7 मार्च 2005 को बिहार में राष्ट्रपति शासन लग गया। राष्ट्रपति शासन लगते ही राज्यपाल बूटा सिंह की प्रशासन में अहम भूमिका हो गयी। इस बीच मई 2005 में बिहार के मुख्य सचिव का पद रिक्त हो गया। उस समय पंजाब के ही रहने वाले जीएस कंग बिहार के वरिष्ठ आइएएस अधिकारी थे। कंग एक सख्त और ईमानदार अफसर थे। लेकिन बूटा सिंह ने कुछ और सोच कर उन्हें मुख्य सचिव बनाया था। उनकी सोच थी कि दो पंजाबी मिल कर मनमाफिक बिहार का शासन चलाएंगे। लेकिन जो हुआ उसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी।
बूटा सिंह से जुड़े विवाद की पृष्ठभूमि
तत्कालीन रेल मंत्री लालू यादव को उम्मीद थी कि राष्ट्रपति शासन में उनके अनुकूल काम होगा। लेकिन कुछ कड़क अफसर जब खुली हवा में सांस लेने लगे तो उन्होंने कानून के अनुपालन में सख्ती का फैसला किया। अप्रैल 2005 में सीके अनिल सीवान के डीएम थे और एसपी थे रत्न संजय कटियार। दोनों नियम-कायदे को लेकर बहुत कठोर थे। उन्होंने तेजाब हत्याकांड को लेकर शहाबुद्दीन के प्रतापपुर स्थित घर पर छापेमारी की। शहाबुद्दीन उस समय राजद के सांसद थे। इस छापेमारी में पुलिस ने शहाबुद्दीन के घर से पाकिस्तान में बनी एके-47 राइफल बरामद की थी। शेर और हिरण के खाल भी मिले था। बड़ी मात्रा में जेवरात और सेना में इस्तेमाल होने वाले कई उपकरण भी मिले थे। (बाद में इन्हीं सबूतों के कारण शहाबुद्दीन पर कानूनी शिंकजा कसा था) इस छापेमारी से बिहार में हड़कंप मच गया। लालू यादव इस कार्रवाई से बहुत नाराज हो गये।
जब राज्यपाल बूटा सिंह से भिड़े मुख्य सचिव
राष्ट्रपति शासन लागू होने से कई प्रशासनिक शक्तियां राज्यपाल बूटा सिंह के हाथों में आ गयीं थीं। लेकिन बड़े फैसलों को लागू करने से पहले मुख्य सचिव से सलाह जरुरी थी। इस बीच 29 जुलाई 2005 को राज्यपाल बूटा सिंह ने बिहार के 17 आइपीएस अफसरों का तबादला कर दिया। इनमें सीवान के एसपी रत्न संजय का भी नाम था। इस तबादले के बाद आरोप लगने लगा कि लालू यादव के इशारे पर रत्न संजय को हटाया गया है, क्यों कि उन्होंने बाहुबली सांसद शहाबुद्दीन के खिलाफ कार्रवाई करने का साहस दिखाया था। बूटा सिंह ने इस तबादले के संबंध में तत्कालीन मुख्य सचिव जीएस कांग से कोई सलाह नहीं ली थी। यहां तक कि इसके बारे में कुछ बताया भी नहीं था। नियमों को दरकिनार कर मनमाना तबादला आदेश जारी किये जाने पर कंग राज्यपाल बूटा सिंह से नाराज हो गये। विरोध जताने के लिए जी एस कंग ने ऑफिस जाना छोड़ दिया।
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कंग की नाराजगी
बिहार के मुख्य सचिव नाराजगी की वजह से ऑफिस नहीं आ रहे हैं. इस बात से हंगामा मच गया। रत्न संजय को सीवान के एसपी पद से हटाने में पक्षपात की सब जगह चर्चा होने लगी। भाजपा और जदयू ने इस मुद्दे को खूब उछाला। एक ईमानदार अफसर को हटाये जाने से बूटा सिंह कठघरे में घिर गये। केन्द्र सरकार की बदनामी होने लगी। बूटा सिंह ने जीएस कंग को मनाने की बहुत कोशिशें की। लेकिन कंग अड़ गये कि जब तक तबादला आदेश रद्द नहीं होगा वे ऑफिस नहीं जाएंगे। विवाद बढ़ता गया।
प्रोटोकॉल तोड़ कर मिलने गये मुख्य सचिव से
केन्द्र सरकार की फजीहत जब बढ़ने लगी तो बूटा सिंह को फरमान मिला कि वे किसी तरह जीएस कंग को काम पर बुलाएं। एक दिन मजबूर बूटा सिंह राज्यपाल का प्रोटोकॉल तोड़ कर खुद जी एस कंग के सरकारी आवास पर पहुंच गये। राज्यपाल राज्य का प्रथम नागरिक होता है। संवैधानिक रूप से वह राज्य का प्रधान भी होता है। ऐसे में किसी राज्यपाल का मुख्य सचिव के घर जाना बहुत चौंकाने वाला था। लेकिन राजनीतिक दबाव के कारण बूटा सिंह ने कंग को मनाने के लिए यह भी किया। उन्होंने कंग से काम पर लौटने की गुजारिश की। पंजाबी होने का हवाला दे कर उन्होंने सहयोग की अपील की। लेकिन कंग टस से मस नहीं हुए। वे अपनी की शर्त पर डटे रहे। बूटा सिंह को निराश लौटना पड़ा। इस नाराजगी के बीच जी एस कंग लंबी छुट्टी पर चले गये। अब केन्द्र सरकार दबाव में आ गयी। तत्कालीन गृह मंत्री शिवराज पाटिल ने बूटा सिंह को दिल्ली बुलाया। कंग के मसले पर गौर किया गया। अब केन्द्र सरकार धमकी पर उतर आयी। कंग को कहा गया कि अगर वे काम पर नहीं लौटते हैं तो नया मुख्य सचिव नियुक्त कर लिया जाएगा। लेकिन केन्द्र की धमकी के आगे भी वे नहीं झुके। वे काम पर नहीं लौटे। कुछ दिनों के बाद बिहार में मध्यवधि चुनाव की घोषणा हुई। परिस्थितियां बदलीं तो कंग ने ऑफिस ज्वाइन कर लिया। जीएस कंग ने अपनी ईमानदारी और साहस से बूटा सिंह और केन्द्र सरकार के पक्षपात को उजागर कर दिया था।