मजबूर पिता खा रहा है दर-दर ठोकरें, बच्चे कर रहे हैं मौत का इंतजार, पढ़िए इस गरीबी की दास्तान
यदि सही समय पर इस बीमारी का इलाज कराया गया तो स्वस्थ्य होना संभव है। इस बीमारी का सही इलाज देश में मात्र दो ही जगह पर होता है। एक मेट्रो हॉस्पिटल नोएडा तो दूसरा दिल्ली में।
पटना। गरीबी एक ऐसा अभिशाप है जिसमें लोग घुट-घुट कर जीते हैं। इसी गरीबी में अगर कोई दर्दनाक जानलेवा बीमारी सामने आ जाती है तो मरने के सिवाए और कोई रास्ता नजर नहीं आता। कुछ ऐसा ही मामला बिहार के गोपालगंज में प्रकाश में आया है। जहां दो बच्चे अपनी मौत की गुहार लगा रहे हैं। बच्चों का कहना है कि हम मरना नहीं चाहते पर मजबूरी के चलते हमें इस दुनिया को छोड़कर जाना पड़ रहा है।
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बिहार के गोपालगंज जिले में मोहम्मदपुर थाना के काशी टेंगराही गांव के रहने वाले दो नाबालिक बच्चे शिवम और विवेक जानलेवा बीमारी मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से पीड़ित है। इस बीमारी ने इन दोनों बच्चों को इस तरह अपने जाल में जकड़ लिया है की ये पल-पल घुटकर मरने पर मजबूर हैं। तो बच्चों की बीमारी और लाचारी को देखकर उनके मां-बाप भी अपनी गरीबी का दुखड़ा लोगों को सुनाते हैं। लेकिन कोई भी उनकी यह कहानी नहीं सुनता। यहां तक कि सरकार भी इन गरीबों की समस्या का समाधान नहीं निकाल पाई।
आपको बता दें कि शिवम और विवेक गोपालगंज के एक मध्यम परिवार के लड़के हैं। जिसके पिता संजय मिश्र ऑटो चलाकर अपने परिवार का जीवन यापन करते हैं। ऑटो चलाने से इतना ही पैसा आता है जिससे परिवार चल सकें। उनके दोनों बच्चों को मस्कुलर डिस्ट्रॉफी नामक जानलेवा बीमारी ने अपने जाल में जकड़ लिया है। शुरुआत के दिनों में संजय के द्वारा अपने दोनों बच्चों का इलाज नजदीकी अस्पताल से लेकर दिल्ली तक सभी डॉक्टरों के पास करवाया गया। लेकिन कोई खास सुधार नहीं दिखा। बार-बार इनको इलाज के लिए दिल्ली ले जाना पिता के लिए आर्थिक तौर से नामुमकिन है।
जिले के डॉक्टरों का कहना है कि इस बीमारी का इलाज पटना नहीं बल्कि देश की राजधानी दिल्ली में संभव है। लेकिन दिल्ली के डॉक्टरों ने इलाज के लिए 20 लाख रुपए की डिमांड की है। जिसे देने में यह लोग असमर्थ है। इसके बाद अपने बच्चों के इलाज के लिए इस मजबूर पिता ने राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से गुहार लगाई पर इलाज के बजाए सिर्फ आश्वासन ही मिला। फिर इन लोगों ने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से खत के माध्यम से मदद मांगी। लेकिन इनके मदद के लिए ना तो राज्य के मुख्यमंत्री सामने आए और ना ही देश के प्रधानमंत्री।
परिवार वालों का कहना है कि इलाज के लिए आर्थिक मदद करने को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय में कई बार चिट्ठी लिखी गई लेकिन आज तक वहां से कोई भी जवाब नहीं आया है। बच्चों के पिता का कहना है कि हम लोगों से जितना हो सका बच्चों का इलाज कराया। बच्चों के इलाज के लिए ऑटो के साथ-साथ घर की जमीन भी बेच दी गई। लेकिन इसका इलाज नहीं हो पाया। अब भगवान ही शायद कोई चमत्कार करे तो हमारे दोनों बच्चे फिर से स्वस्थ्य हो सकते हैं।
वहीं इस बीमारी को लेकर डॉक्टरों का कहना है कि यह बीमारी काफी खतरनाक और जानलेवा होती है। मस्कुलर डिस्ट्रॉफी नामक बीमारी हजारों लाखों लोगों में से किसी एक को पकड़ती है। मांस-पेशियों में पकड़ने वाली इस बीमारी का इलाज सभी जगहों पर संभव भी नहीं है। अजीबो-गरीब ढंग से इस बीमारी का असर पीड़ितों पर दिखने लगता है। इस बीमारी से पीड़ित रोगियों की मांस-पेशियां सिकुड़कर सूखने लगती है। शरीर का आकार विचित्र हो जाता है। धीरे-धीरे जब यह बीमारी पूर्ण रूप से रोगियों को अपनी गिरफ्त में ले लेती है तो शरीर एक कंकाल जैसे दिखने लगता है। यदि सही समय पर इस बीमारी का इलाज कराया गया तो स्वस्थ्य होना संभव है।
इस बीमारी का सही इलाज देश में मात्र दो ही जगह पर होता है। एक मेट्रो हॉस्पिटल नोएडा तो दूसरा दिल्ली में। लेकिन मजबूर पिता की यह हैसियत नहीं है और तो और सरकार भी आश्वासन से आगे नहीं बढ़ रही।
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