75 विधायकों वाले तेजस्वी एक विधायक वाले चिराग की क्यों करना चाहते हैं मदद?
तेजस्वी यादव के पास जीत का आंकड़ा नहीं है फिर भी वे क्यों चिराग पासवान की मां रीना पासवान को राज्यसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाना चाहते हैं ? क्या तेजस्वी, रीना पासवान की उम्मीदवारी के जरिये भाजपा को दलित विरोधी बताने का मौका हथियाना चाहते हैं ? तेजस्वी यह दिखाना चाहते हैं कि यह सीट रामविलास पासवान की थी लेकिन अब भाजपा किसी दलित की बजाय एक वैश्य (सुशील मोदी) राज्यसभा में भेजना चाहती है। क्या इस राजनीतिक मकसद के लिए चिराग को अपनी मां की हार मंजूर होगी ? आंकड़ों के हिसाब से एनडीए प्रत्याशी सुशील मोदी का जीतना तय है। तो क्या सिर्फ क्रॉस वोटिंग की आस में रीना पासवान को उम्मीदवार बना दिया जाय ? क्या चिराग को ये मंजूर होगा कि वे तेजस्वी का अहसान भी लें और उनकी मां चुनाव भी हार जाएं ? राजनीति में हर मदद मतलब के लबादे में ढकी होती है। जैसे 2010 में लालू यादव ने रामविलास पासवान को राज्यसभा सांसद तो बना दिया था लेकिन बाद में एहसानफरामोश भी कह दिया था। क्या तेजस्वी एक तीर से दो निशाना साधने चाहते हैं? भाजपा भी एक्सोपोज हो जाए और तेजस्वी भी अहसानों तले दबे रहें?
ये नजदीकियां
पिछले कुछ में दिनों से तेजस्वी यादव और चिराग पासवान के बीच नजदीकियां बढ़ती दिख रही हैं। राजनीतिक जरूरतें एक दूसरे को करीब ला रही हैं। राज्यसभा चुनाव के लिए प्रस्ताव भी एक राजनीति जरूरत है। चुनाव के नतीजों के पहले 9 नवम्बर को तेजस्वी का जन्मदिन था। चिराग पासवान ने जन्मदिन की बधाई दी तो तेजस्वी ने लिखा धन्यवाद भाई। चिराग और तेजस्वी ने एक दूसरे के प्रति जो आत्मीयता दिखायी है वह एक राजनीतिक संकेत भी है। लेकिन 75 विधायकों वाले तेजस्वी एक विधायक वाले चिराग से दोस्ती क्यों करना चाहते हैं ? तेजस्वी के हाथ में जीत आते-आते फिसल गयी। इसलिए वे हारने के बाबजूद अभी भी अपने लिए संभावनाएं तलाश रहे हैं। वे हर एक मौके को इसलिए आजमा चाहने चाहते हैं कि शायद कहीं बात बन जाए। पांच का ही तो पंच लगाना है। पांच विधायक इधर से उधर और काम तमाम। लेकिन ये काम आसान नहीं है क्यों कि एनडीए पूरी तरह एकजुट है। तेजस्वी दलित मुद्दे उभार कर इस एकता को तोड़ना चाहते हैं।
राजनीति में मदद या एहसान !
2020 के चुनाव में चिराग पासवान को सिर्फ एक सीट मिली है। सबसे अधिक विधायकों वाले राजद ने उन्हें राज्यसभा चुनाव के लिए समर्थन देने का ऑफर दिया है। 2009 के लोकसभा चुनाव में लालू यादव और रामविलास पासवान एकसाथ थे। रामविलास पासवान खुद चुनाव हार गये और उनकी पार्टी का खाता तक नहीं खुला था। उस समय लोजपा के 10 विधायक थे और राजद के 54 विधायक। रामविलास पासवान अपने बूते राज्यसभा सांसद नहीं बन सकते थे। तब लालू यादव ने इनायत की और रामविलास पासवान को अपने वोटों से राज्यसभा में भेजने का फैसला किया। 2010 के राज्यसभा चुनाव में रामविलास पासवान लालू यादव की मदद से जीत गये। लेकिन 2013 में पासवान और लालू यादव के बीच खटपट शुरू हो गयी। रामविलास 2014 के लोकसभा चुनाव में अपने लिए सम्मानजनक सीटें चाहते थे। इसलिए वे एक साल पहले ही इसके लिए राजद और कांग्रेस से बात करने लगे। इस बीच अक्टूबर 2013 में लालू यादव को चारा घोटाला में सजा सुना दी गयी। लालू यादव को जेल जाना पड़ा।
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राजनीति एहसान की क्या है परिणति?
रामविलास पासवान ने खुद ये बात बतायी थी कि जब वे लालू यादव से जेल में मिलने गये तो उनकी हालत देख कर वे रो पड़े थे। सीटों के लेकर पासवान ने लालू यादव के सामने आपनी मांगें रख दीं। यहां तक कि कांग्रेस को भी इसके बारे में बताया। लेकिन किसी ने रामविलास पासवान को तवज्जो नहीं दी। कहा जाने लगा कि लोजपा की हैसियत क्या है ? दो तीन से अधिक सीटें नहीं मिलेंगी। उस वक्त चिराग पासवान ने ही अपने पिता को लालू यादव का साथ छोड़ कर नरेन्द्र मोदी के साथ जाने की सलाह दी थी। जब रामविलास ने अपनी पार्टी के सम्मान के लिए एनडीए के साथ जाने का एलान किया तो लालू यादव ने उन्हें एहसानफरामोश कह दिया था। लालू यादव ने कहा था, जब कुछ सहारा नहीं था तो हमने उनको सांसद बनाया था। लेकिन सत्ता के लिए उन्होंने भाजपा से हाथ मिला लिया। राजद का एहसान भी याद नहीं रखा। दस साल बाद एक बार फिर कमजोर लोजपा को मजबूत राजद ने मदद के लिए हाथ बढ़ाया है, क्या होगा अंजाम?
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