बिहार: मेवालाल चौधरी कौन हैं, क्या है उन पर भ्रष्टाचार का मामला
क्राइम, करप्शन और कम्युनलिज़्म के 'थ्री सी" से निपटने का दावा करने वाले नीतीश कुमार के लिए अपने ही मंत्री बने पहली चुनौती.
थ्री C यानी क्राइम, करप्शन, कम्युनलिज़्म से समझौता नहीं करने का दावा करने वाली नीतीश सरकार घिर गई है.
वजह यह है कि जेडीयू कोटे से बने शिक्षा मंत्री मेवालाल चौधरी पर सहायक प्राध्यापक और जूनियर वैज्ञानिकों की नियुक्ति में अनियमितता बरतने के आरोप हैं.
मेवालाल चौधरी सबौर (भागलपुर) स्थित बिहार कृषि विश्वविद्यालय के साल 2010-2015 तक वाइस चांसलर रहे. नियुक्ति की अनियमितता को लेकर उन पर सबौर थाने में एफ़आईआर दर्ज है और फ़िलहाल वो ज़मानत पर हैं.
लेकिन मेवालाल चौधरी इन आरोपों को सिरे से ख़ारिज करते हैं.
क्या है पूरा मामला?
पाँच अगस्त 2010 को सबौर (भागलपुर) में बिहार कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी. 9 जून 2011 को विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक और जूनियर वैज्ञानिकों के लिए नियुक्ति का विज्ञापन दिया गया था.
कुल 281 पोस्ट थी जिसमें 232 करेंट वैकेंसी, 37 बैक लॉग और 12 अन्य थीं. जिसमें कुल 161 अभ्यर्थियों की नियुक्ति हुई. लेकिन इस विज्ञापन पर 161 अभ्यर्थियों की नियुक्तियां विवादों में रहीं.
इस वैकेंसी में 80 नंबर अकादमिक रिकॉर्ड, 10 नंबर इंटरव्यू और 10 नंबर पॉवर प्वाइंट प्रेज़ेंटेशन के लिए तय किए गए थे. अभ्यर्थियों की मानें तो इंटरव्यू और पॉवर प्वांइट प्रेज़ेंटेशन में मुख्यत: गड़बड़ी हुई.
बीबीसी ने कई अभ्यर्थियों से इस संबंध में बात की.
अनामिका ऐसी ही एक अभ्यर्थी हैं. उन्होने बीबीसी से कहा, "प्लांट पैथोलॉजी में पीएचडी पूरी करने से पहले ही मुझे दो बार यंग साइंटिस्ट का अवॉर्ड मिला. मेरे 21 रिसर्च पेपर राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छपे. मेरा अकादमिक स्कोर भी बहुत अच्छा था लेकिन इंटरव्यू और पॉवर प्वाइंट में नंबर ही नहीं दिए गए, जबकि मेरा इंटरव्यू बहुत अच्छा हुआ था."
एक अन्य अभ्यर्थी ने अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर बीबीसी से बताया, "मुझे अकादमिक कॉलम में 80 में से 52 नंबर मिले. जबकि बाक़ी में महज़ दो नंबर मिले. मेरे तीन एक्सीपियरिंस लेटर एप्लीकेशन में लगे थे लेकिन बाद में मुझे जानकारी मिली कि उसे एप्लीकेशन से ही हटा दिया गया."
वहीं एक अभ्यर्थी ने कहा, "एक ही दिन में 250 लोगों का इंटरव्यू ले लिया गया. पॉवर प्वाइंट प्रेज़ेंटेशन के लिए लाई गई सीडी जमा करा ली गई. किसी तरह का पॉवर प्वाइंट प्रेज़ेंटेशन नहीं किया गया और जो हमारी जानकारी है उसके मुताबिक़ जो तीन एक्सपर्टस आए थे, उनसे ब्लैंक टेबुलेशन शीट (नंबर देने के लिए शीट) पर हस्ताक्षर करा लिए गए."
आरटीआई और इंक्वायरी रिपोर्ट
अभ्यर्थियों ने जो आरोप लगाए उसे इस मामले में सूचना के अधिकार से मिली जानकारी और पटना हाई कोर्ट के पूर्व जज, सैय्यद मोहम्मद महफ़ूज़ आलम की इंक्वायरी रिपोर्ट भी पुख़्ता करती है.
इस मामले में एक अभ्यर्थी राकेश कुमार ने सूचना के अधिकार के तहत दिसंबर 2012 में सूचना माँगी थी, लेकिन सूचना देने में विश्वविद्यालय प्रशासन लगातार टालमटोल करता रहा. 2015 में लंबे पत्राचार के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने जो सूचना दी, उससे ये मालूम हुआ कि इंटरव्यू और पॉवर प्वाइंट प्रेजेंटेशन में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां हुई हैं.
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जून 2016 में तत्कालीन राज्यपाल रामनाथ कोविंद ने आनंद सिंह, मिथिलेश कुमार सिंह, बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी और हम नेता जीतन राम मांझी की शिकायत पर एक जाँच कमेटी बनाई थी.
20 नवंबर 2016 को जस्टिस महफ़ूज़ आलम ने जाँच रिपोर्ट जमा की थी. बीबीसी के पास ये रिपोर्ट है जिसमें साफ़ लिखा है कि नियुक्ति में बड़े पैमाने पर मेवालाल चौधरी ने अनियमितता की है और उनके ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई की अनुशंसा की जाती है.
रिपोर्ट में कई अभ्यर्थियों ने ज़िक्र करते हुए लिखा है कि मौखिक परीक्षा में नंबर दिए गए, उसमें ओवरराइटिंग की गई. विश्वविद्यालय प्रत्येक एक्सपर्ट की अलग शीट या पैड जिसमें मार्क्स दिए गए, उसे भी इंक्वायरी बोर्ड के सामने प्रस्तुत करने में असफल रही.
जस्टिस महफ़ूज़ आलम की रिपोर्ट से और भी कई दिलचस्प जानकारियां सामने आईं हैं. जैसे कि जिन छात्रों के अकादमिक रिकॉर्ड बहुत अच्छे है उनको इंटरव्यू और पॉवर प्वाइंट प्रेज़ेंटेशन में 20 नंबर में से महज़ 0.2 नंबर मिले हैं.
जाँच रिपोर्ट में कुल 14 ऐसे अभ्यर्थियों के नाम हैं जिनका अकादमिक स्कोर बहुत कम है लेकिन उन्हे इंटरव्यू और प्रेज़ेंटेशन में 20 नंबर मिले हैं. वहीं 20 ऐसे अभ्यर्थियों की लिस्ट है जिन्हें अच्छे अकादमिक स्कोर (80 में 51.88 से लेकर 59.40) के बावजूद इंटरव्यू और प्रेज़ेंटेशन में 0.1 से 4 नंबर तक मिले हैं.
पढ़ने में फिसड्डी लेकिन इंटरव्यू में पूरे नंबर मिले
दिलचस्प है कि जिन छात्रों के अकादमिक रिकॉर्ड बहुत अच्छे हैं उनको इंटरव्यू और पॉवर प्वाइंट प्रेज़ेंटेशन में 20 नंबर में से महज़ 0.2 नंबर मिले हैं.
उदाहरण के लिए बिपिन बिहारी सिंह (असफल अभ्यर्थी) नाम के कैंडिडेट का अकादमिक स्कोर 80 में से 59.40 था लेकिन उन्हें 20 में से महज़ 0.2 नंबर मिला. लेकिन वहीं राकेश पासवान नाम के अभ्यर्थी (जो चयनित हुए) जिनका अकादमिक स्कोर 80 में से 28.72 था लेकिन उन्हें इंटरव्यू और प्रेज़ेंटेशन की बात करें तो 20 में से 20 नंबर मिले.
जाँच रिपोर्ट में कुल 15 ऐसे अभ्यर्थियों के नाम हैं जिनका अकादमिक स्कोर बहुत कम है लेकिन उन्हे इंटरव्यू और प्रेज़ेंटेशन में 20 नंबर मिले हैं. इन 15 में सिर्फ़ एक अभ्यर्थी हैं जिन्हें 17 अंक मिले हैं. वहीं 20 ऐसे अभ्यर्थियों की लिस्ट है जिन्हें अच्छे अकादमिक स्कोर (80 में 51.88 से लेकर 59.40) के बावजूद इंटरव्यू और प्रेज़ेंटेशन में 0.1 से 4 नंबर तक मिले हैं.
सारे आरोप निराधार: मेवालाल
मेवालाल ने 1980 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से पीएचडी की है.
चुनावी शपथ पत्र में अपने ख़िलाफ़ लंबित आपराधिक मामलों की जानकारी दी है. जिसके मुताबिक़ उनके ख़िलाफ़ सबौर थाने में एफ़आईआर दर्ज है.
वाइस चांसलर (2010-15) रहते हुए भवन निर्माण और नियुक्ति में अनियमितता को लेकर उन पर आईपीसी की धारा 409, 420, 467, 468, 471 और 120(बी) के तहत मामला (केस नं 35/2017) दर्ज है.
2015 में रिटायर होने के बाद मेवालाल चौधरी राजनीति में आए. वो तारापुर से दूसरी बार विधायक चुने गए. लेकिन साल 2017 में नियुक्ति अनियमितता को लेकर सबौर थाने में मामला दर्ज होने पर जेडीयू ने उन्हें निलंबित कर दिया था.
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मेवालाल चौधरी से पहले तारापुर से उनकी पत्नी नीता चौधरी विधायक थीं. नीता चौधरी की मौत मई 2019 में घर में गैस रिसाव से हो गई थी.
पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ कुमार दास ने इस मामले की जाँच एसआईटी से कराने की माँग की है.
इस पूरे मामले में मेवालाल चौधरी ने बीबीसी से कहा, "मुझ पर लगे सारे आरोप निराधार हैं. हम कोई चार्जशीटेड नहीं हैं. बाक़ी मामला कोर्ट में है तो फ़ैसले का इंतज़ार करना चाहिए. आदरणीय लालू जी तो ख़ुद भ्रष्टाचार में लिप्त हैं. उनको और तेजस्वी यादव को हम पर आरोप लगाने से पहले ख़ुद को देखना चाहिए."
वहीं उन्होंने पूर्व आईपीएस अमिताभ दास की माँग पर टिप्पणी करते हुए कहा, "उनको हम लीगल नोटिस भेज रहे हैं. अगर उनकी पत्नी को लेकर कोई ऐसी भावनात्मक टिप्पणी करता तो उन्हें कैसा महसूस होता?"
बीजेपी ने पूरे मामले से झाड़ा पल्ला
इस मामले में राजनीति भी गहरा गई है. राजद जहां इस मसले को लेकर जेडीयू और बीजेपी दोनों पर हमलावर है. वहीं बीजेपी इस मामले में पल्ला झाड़ती दिख रही है.
राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने सुशील मोदी की मेवालाल चौधरी को गिरफ़्तार करने की माँग से संबंधित ख़बर का स्क्रीनशॉट ट्विटर पर शेयर करते हुए लिखा है, "नीतीश ने तो नियुक्ति घोटाला करने वाले मेवालाल को मंत्री बनाकर अपनी प्राथमिकता बता दिया. वहीं भाजपाई कल तक मेवालाल को खोज रहे थे आज मेवा मिलने पर धारण किए हुए हैं."
वहीं बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने कहा, "किसी तरह का भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. मुझे विश्वास है कि हमारे एनडीए के मंत्री बिहार के सामने उदाहरण पेश करेंगे."
नीतीश कुमार की इस मामले में अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है लेकिन इतना तो साफ़ है कि नीतीश के लिए इस बार सरकार चलाना बहुत कठिन डगर साबित होने वाली है.