बिहार: नंदकिशोर यादव को स्पीकर ना बनाना क्या भाजपा की बड़ी भूल होगी?
भाजपा के दिग्गज नेता नंदकिशोर यादव स्पीकर की रेस में कैसे पिछड़ गये ? 16 नवम्बर को ये खबर आयी थी कि नंदकिशोर यादव स्पीकर बनाये जाएंगे। चूंकि उन्होंने मंत्री पद की शपथ नहीं ली थी इसलिए इस खबर पर भरोसा कर लिया गया। फिर चार पांच दिनों तक उनका नाम भावी स्पीकर के रूप में छाया रहा। अब कहा जा रहा है कि भाजपा की हाईलेवल कमेटी ने आखिरी वक्त में नंदकिशोर यादव का पत्ता काट कर विजय कुमार सिन्हा का नाम आगे किया था। नंदकिशोर यादव जैसे मजबूत नेता का पत्ता कैसे कट गया ? क्या भाजपा अब तपे तपाये नेताओं को दरकिनार कर रही है ? क्या बिहार में अब भाजपा ने लो प्रोफाइल नेताओं के दम पर पारी जमाने का फैसला किया है ? भाजपा ने 74 सीटें जरूर जीती हैं लेकिन उसकी मंजिल अभी दूर है। आगे का सफर आसान नहीं है। अभी तक सुशील मोदी, नंदकिशोर यादव और प्रेम कुमार जैसे बड़े प्लेयर 'डगआउट’ में खामोश बैठे हैं और मैदान का मोर्चा किसी और ने संभाल रखा है। क्या इस नीति से भाजपा को मंजिल-ए- मकसूद (122) मिल पाएगी ? कहीं ये दांव उल्टा न पड़ जाए।
नंदकिशोर यादव की अनदेखी से हैरानी
नंदकिशोर यादव की अनदेखी से सबको हैरानी हो रही है। सुशील मोदी को तो नीतीश का करीबी माना जाता रहा है लेकिन नंदकिशोर यादव के साथ ऐसी बात नहीं। माना जाता है कि वे बिहार भाजपा की आंतरिक गुटबंदी से अलग हैं। वे पिछड़े वर्ग के प्रभावशाली समुदाय से आते हैं। पटना साहिब सीट से सात बार विधायक चुने गये हैं। सदन की कार्यवाही की गंभीर समझ है। सदन के ओजस्वी वक्ता रहे हैं। स्पीकर पद के लिए वे एक उपयुक्त उम्मीदवार थे। फिर भी भाजपा ने उन्हें मौका क्यों नहीं दिया ? क्या भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इस बार य़ोग्यता से अधिक अपनी ‘पसंद' को तरजीह हे रहा है ? डिप्टी सीएम और स्पीकर पद के लिए भाजपा ने जो निर्णय लिया है उससे तो यही संकेत मिल रहा है। अगर राजनीतिक अनुभव की बात करें तो नंदकिशोर यादव, विजय कुमार सिन्हा से आगे हैं। लेकिन योग्यता पर ‘पसंद' भारी पड़ गयी।
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क्यों चूक गये नंदकिशोर ?
नंदकिशोर यादव क्यों चूक गये ? तो इसके जवाब में कहा जा रहा है कि जातीय समीकरण उनके खिलाफ चला गया। पिछड़ी और अति पिछड़ी जाति के एक-एक विधायक को डिप्टी सीएम का पद मिल गया तो स्पीकर का पद भी पिछड़ी जाति को कैसे दिया जाय ? इसलिए सवर्ण समुदाय को खुश करने के लिए विजय कुमार सिन्हा को आगे लाया गया। यहां फिर यह सवाल खड़ा होता है कि क्या किसी योग्य व्यक्ति को इसलिए कोई पद नहीं मिल सकता क्यों कि वह किसी अमुक जाति का है ? अगर जातियों के आधार पर ही उत्तरदायित्व तय होंगे तो फिर विकास का ढिंढोरा पीटना बेकार है। याद कीजिए नंदकिशोर यादव का वो ऐतिहासिक भाषण जो उन्होंने जून 2013 को बिहार विधानसभा में दिया था। कहा जाता है भाजपा के किसी नेता ने आज तक नीतीश कुमार पर ऐसा तार्किक हमला नहीं किया है। अगर भाजपा को एनडीए में प्रभुत्व ही बनाना था तो नंदकिशोर यादव एक सुटेबल कैंडिडेट थे। कैसे ? तो इसकी बानगी देखिए।
नंदकिशोर का ऐतिहासिक भाषण
नीतीश कुमार ने 16 जून 2013 को भाजपा से नाता तोड़ लिया था। इससे उनकी सरकार अल्पमत में आ गयी थी। लेकिन उन्होंने चार निर्दलीय और कांग्रेस के चार विधायकों के समर्थन से बहुमत का प्रबंध कर लिया था। नीतीश कुमार ने बहुमत दर्शाने के लिए विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव पेश किया था। 19 जून 2013 को विश्वास प्रस्ताव पर चर्चा शुरू हुई। उस समय नंदकिशोर यादव विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष थे। विपक्ष के नेता ही हैसियत से प्रस्ताव के विरोध में बोलने के लिए वे खड़े हुए। उन्होंने कहा, नीतीश जी ! मैं कड़वी बात कहूंगा, आपको गुस्सा आएगा, लेकिन मैं डरने वाला नहीं, क्यों कि केवल मैं ही ये बात बोल सकता हूं। इस भाषण में नंदकिशोर यादव ने कहा था, नीतीश जी 2010 में आप एनडीए के अध्यक्ष थे और मैं संयोजक। बहुमत मिला तो आपने एनडीए विधायक दल के नेता के रूप में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। अगर आपको भाजपा से परहेज था तो पहले इस्तीफा देते, फिर जदयू विधायक दल का नेता बनते और मुख्यमंत्री बनने का दावा करते। लेकिन आपने ऐसा नहीं किया। भाजपा से गठबंधन तोड़ने पर जदयू के कई विधायक खफा थे। आपको डर था कि अगर विधायक दल के नेता का चुनाव में हार हो जाएगी। इसलिए आपने जुगाड़ तकनीक से सरकार बचाने की सोची। क्या यही आपका सिद्दांत है ? उनका नाम (नरेन्द्र मोदी) तो बस बहाना है, आप तो 2009 से ही अकेले शासन करने की बात सोच रहे थे। आज वो आपने कर के दिखा दिया।
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एक साथ कई लोगों से पंगा क्यों ?
स्पीकर का पद दलीय सीमा से परे होता है। वह किसी दल का विधायक तो होता है लेकिन उसे तटस्थ माना जता है। सदन के संचालन में कई बार स्पीकर को अपने अनुभव और य़ोग्यता से स्थितियों को संभालना होता है। इसलिए यह पद किसी अनुभवी नेता को दिया जाता रहा है। विजय कुमार सिन्हा लखीसराय से चार बार विधायक चुने जा चुके हैं। वे भी इस दायित्व को निभा सकते हैं। लेकिन नंदकिशोर यादव जैसे नेता का नाम उभर कर विलुप्त हो जाना, खटक रहा है। सुशील मोदी, नंदकिशोर यादव, प्रेम कुमार, राम नारायण मंडल, विनोद नारायण झा जैसे नेताओं की अनदेखी, असंतोष का बीजारोपण कर सकती है। फिलहाल इन्होंने खामोशी ओढ़ रखी है लेकिन अंदर का उबलता हुआ लावा अगर फूट पड़ा तो सपनों का महल तैयार होने से पहले जमींदोज हो जाएगा। अगर आप एक साथ कई मजबूत लोगों से पंगा लेंगे तो क्या हस्र होगा ?
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