कट्टर नीतीश समर्थक होने की वजह से कभी सुशील मोदी नहीं बन पाए सीएम चेहरा?
क्या नीतीश समर्थक छवि के कारण सुशील मोदी को भाजपा में नुकसान उठाना पड़ा है ? क्या इस अवधारणा से सुशील मोदी की स्थिति पार्टी में कमजोर रही है ? ये सवाल किसी और ने नहीं बल्कि खुद नीतीश कुमार ने उठाया था। एक बार नाराज नीतीश कुमार ने सुशील कुमार मोदी के बारे में ऐसा कुछ कहा था कि जिससे इन सवालों के उछलने की नौबत आयी। नीतीश कुमार के कहने का मतलब यह था कि सुशील मोदी पर मेरे समर्थक होने का ठप्पा इतना गहरा है कि वे इससे मुक्त नहीं हो सकते। वे दबाव में रहते हैं और पार्टी में हार्डलाइनर बनने के लिए अनर्गल बयान देते हैं। बिहार की राजनीति में बहुत कम ऐसे मौके आये हैं जब नीतीश कुमार ने सुशील मोदी का उपहास किया हो। वैसे तो दोनों राम-लखन की जोड़ी के रूप मशहूर रहे हैं। लेकिन इस रिश्ते में एक मोड़ वो भी आया जब दोनों म्यान से तलवारें खींच कर एक दूसरे के सामने खड़े थे। आखिर नीतीश के मुकाबले बिहार भाजपा में आज तक कोई सीएम चेहरा क्यों नहीं बन पाया ? क्या सुशील मोदी को नीतीश समर्थक ठप्पे की कीमत चुकानी पड़ी?
कभी मीठा कभी कड़वा
2013 में नीतीश कुमार ने नरेन्द्र मोदी के सवाल पर भाजपा से नाता तोड़ लिया था। भाजपा के मंत्रियों को अपने कैबिनेट से बहुत बेइज्जती के साथ हटाया भी था। इसके पहले 2010 में नीतीश ने भोज कैंसिल कर आडवाणी समेत भाजपा के तमाम शीर्ष नेताओं का बहुत बड़ा अपमान किया था। लेकिन सत्ता कायम रखने के लिए भाजपा नेताओं ने जुबान पर ताला लगाये रखा था। 2013 में जब वे सत्ता से बेदखल कर दिये गये तो उनके दिलों में दफन गुस्सा बाहर फूट पड़ा। नीतीश की बर्बादी ही उनका मकसद बन गया। वे रोज नीतीश के खिलाफ बयान देने लगे। इस बीच फरवरी 2015 में जब नीतीश ने जीतन राम मांझी को दबाव डाल कर मुख्यमंत्री पद छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया तो सुशील मोदी ने नीतीश कुमार पर जोरदार हमला बोला। मोदी ने कहा था, नीतीश कुमार की फितरत धोखेबाजी की रही है। वे उसी के साथ धोखा करते हैं जिसने उनका उपकार किया हो। जॉर्ज फर्नांडीस ने नीतीश कुमार को राजनीति में कितना आगे बढ़ाया था लेकिन 2009 में नीतीश उसी जॉर्ज को अपमानित करने से नहीं चूके। नीतीश के कारण जॉर्ज फर्नांडीस जैसे बड़े नेता को अपने आखिरी चुनाव में शर्मनाक हार झेलनी पड़ी थी। भाजपा ने अपने अधिक विधायकों के बाद भी 2000 में नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाना मंजूर किया था। भाजपा के कारण ही नीतीश, लालू को जवाब दे पाये थे। उसी भाजपा के साथ नीतीश ने दो बार धोखा किया।
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सुशील मोदी पर नीतीश समर्थक होने का ठप्पा !
नीतीश, सुशील मोदी के रोज रोज के सियासी हमलों से खफा थे। 2015 में नीतीश को अपनी पूर्व सहयोगी भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ना था। एक साक्षात्कार में उन्हें सुशील मोदी पर भड़ास निकाने का मौका मिल गया। एक न्यूजचैनल से बातचीत में नीतीश ने कहा था, सुशील मोदी हमारे साथ काम कर चुके हैं। जब साथ थे तो क्या बोलते थे और अब क्या बोल रहे हैं। पहले वे मेरी क्षमता की तारीफ क्यों करते थे ? जब जैसा, तब तैसा बयान देना अच्छी बात नहीं। मुझे लगता है कि सुशील मोदी की पार्टी में आजकल स्थिति ठीक नहीं है। सुशील मोदी पर पहले से ठप्पा लगा है कि वे मेरे समर्थक हैं। लोग मानते हैं मेरे उनसे अच्छे संबंध हैं। इसलिए वे पार्टी में अपनी रेटिंग बढ़ाने के लिए मुझ पर ताबड़तोड़ हमले कर रहे हैं। लेकिन वे एक बात को याद रखें। पार्टी में ‘जिस नेता' को खुश करने के लिए वे ऐसा कर रहे हैं, वे सब चीज याद रखते हैं। यानी नीतीश कुमार ने संकेत किया था कि अगर सुशील मोदी पर एक बार नीतीश समर्थक होने का ठप्पा लग गया तो नरेन्द्र मोदी इस बात को भूलने वाले नहीं।
नीतीश की छाया में भाजपा
2015 में नीतीश से जंग लड़ने वाली भाजपा 2020 में अब उनके साथ है। नीतीश के बिना भाजपा का गुजारा नहीं। नीतीश को भी कोई सहारा चाहिए। सो दोनों लड़ कर भी मिल गये। महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ सरकार बनाने वाली भाजपा ने एक दिन न केवल अपना मुख्यमंत्री खोज लिया बल्कि बना भी लिया। लेकिन बिहार में ऐसा क्यों नहीं हो सका ? बिहार में भाजपा नीतीश की छत्रछाया से क्यों नहीं बाहर निकल सकी ? नरेन्द्र मोदी के युग में भाजपा ताकतवर हुई है। लेकिन इस भाजपा को भी नीतीश ने 2019 के लोकसभा चुनाव में झुकने पर मजबूर कर दिया था। नीतीश से तालमेल के लिए भाजपा को अपनी पांच जीती हुईं सीटें छोड़नी पड़ी थीं। अब देखना है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में सीट बंटवारे के लिए नीतीश कुमार क्या रुख अपनाते हैं?
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