ओवैसी और कांग्रेस के कारण तेजस्वी नहीं बन पाये मुख्यमंत्री!
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क्या मुस्लिम वोटरों का अब राजद से मोहभंग हो गया ? 2020 के चुनावी नतीजे तो इसका जवाब हां मे दे रहे हैं। दरभंगा और सीमांचल की 34 सीटों पर मुस्लिम वोटरों की संख्या निर्णायक है। दरभंगा क्षेत्र की 10 में से 9 सीटों पर एनडीए को जीत मिली। सीमांचल में असदुद्दीन ओवैसी की एआइएमआइएम ने पांच सीटें जीत कर राजद को करारी चोट दी। इतना ही नहीं ओवैसी के कारण महागठबंधन को सीमांचल में 11 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा। यानी ओवैसी के कारण महागठबंधन को 15 सीटों से हाथ धोना पड़ा। महागठबंधन सिर्फ 12 सीटों से बहुमत का आंकड़ा चूक गया। यानी कहा जा सकता है कि तेजस्वी अगर मुख्यमंत्री नहीं बने तो इसमें सबसे बड़ी भूमिका असदुद्दीन ओवैसी की रही। इन 15 से 12 सीटें अगर महागठबंधन को मिल गयीं होतीं तो आज तेजस्वी कुर्सी पर होते। मतलब ओवैसी की वजह से ओठों तक आते-आते तेजस्वी के चाय का प्याला छलक गया।
दरभंगा में मुस्लिम वोटरों ने मुंह फेरा
दरभंगा जिले 10 विधानसभा सीटों में से एनडीए का 9 पर जीतना राजनीति के बदलते हुए समीकरण का संकेत है। मुस्लिम वोटरों ने इस बार राजद या कांग्रेस से दूरी बना ली। राजद के सबसे बड़े मुस्लिम चेहरे अब्दुल बारी सिद्दीकी केवटी में भाजपा के मुरारी मोहन झा से हार गये। इस मुस्लिम बहुल सीट पर मुरारी मोहन को 76 हजार से अधिक वोट मिले। सिद्दीकी जैसे मजबूत नेता करीब पांच हजार वोटों से हार गये। इसी तरह जाले सीट पर कांग्रेस ने अलीगढ़ विश्वविद्यालय के छात्र नेता मस्कूर रहमानी को उम्मीदवार बना कर मुस्लिम मतों के ध्रुवीकरण की कोशिश की थी। जिन्ना की तस्वीर को लेकर मस्कूर विवादों में रहे थे। इसके बाद भी मस्कूर को भाजपा के जीवेश कुमार ने करीब 21 हजार वोटों से हरा दिया। इसी तरह दरभंगा क्षेत्र के हायाघाट सीट पर लालू के हनुमान कहे जाने वाले भोला यादव को भाजपा के रामचंद्र साह ने करीब 11 हजार वोटों से हरा दिया था। इन दोनों सीटों पर मुस्लिम वोटरों की तादात अच्छी खासी है। यहां तक कि वीआइपी ने गौड़ाबोराम और अलीनगर की सीट राजद को जीतने नहीं दिया। दरभंगा क्षेत्र में मुसलमानों ने महागठबंधन को समर्थन नहीं दिया।
ओवैसी सीमांचल के नये रहनुमा
सीमांचल में मुस्लिम वोटरों ने अब अपना नया रहनुमा खोज लिया है। हैदराबाद के असदुद्दीन ओवैसी ने सीमांचल में पांच सीटों जीत कर मजबूती से पांव जमा लिया है। ओवैसी की पार्टी एआइएमआइएम ने किशनगंज की विनिंग सीट तो गंवा दी लेकिन जोकीहाट, बहादुरगंज, कोचाधामन वायसी और अमौर में जीत हासिल कर सबको चौंका दिया। जोकीहाट राजद की जीती हुई सीट थी। इस सीट पर पहले तस्लीमुद्दीन के बड़े बेटे सरफराज आलम विधायक थे। सीमांचल के दिग्गज नेता और सांसद तस्लीमुद्दीन के निधन के बाद 2015 में अररिया लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ था। इस उपचुनाव में राजद के टिकट पर सरफराज सांसद चुने गये थे। सांसद बने के बाद सरफराज को विधायक पद से इस्तीफा देना पड़ा। जोकीहाट सीट पर उपचुनाव हुआ तो तस्लीमुद्दीन के छोटे बेटे शाहनवाज आलाम राजद के विधायक चुने गये। 2020 के विधानसभा चुनाव में राजद ने शाहनवाज का टिकट काट कर सरफराज को उम्मीदवार बना दिया। ओवैसी ने इसका फायदा उठाया और शाहनवाज आलम को जोकीहाट से अपना उम्मीदवार बना दिया। जोकीहाट के मुस्लिम वोटरों ने राजद के सरफराज को दरकिनार कर ओवैसी के शाहनवाज को जीत का सेहरा पहना दिया। यानी इस सीट से फैसला हो गया कि अब सीमांचल के मुसलमान ओवैसी के साथ हैं। राजद के साथ नहीं। पूर्णिया के अमौर सीट पर कांग्रेस के बहुत मजबूत नेता अब्दुल जलील मस्तान चुनाव लड़ रहे थे। वे मौजूदा विधायक तो थे ही इस सीट पर छह बार जीत चुके थे। लेकिन मुस्लिम वोटरों ने इस बार उन्हें आसमान से जमीन पर गिरा दिया। इस सीट पर ओवैसी के अख्तरुल ईमान ने करीब 55 फीसदी वोट हासिल ये कर बता दिया कि अब सियासी बयार किस दिशा में बहने वाली है। कांग्रेस के मस्तान को सिर्फ 11 फीसदी वोट मिले और उन्हें अपनी सीट गंवानी पड़ी।
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मुस्लिम वोटों में ओवैसी की सेंध
असदुद्दीन ओवैसी ने सीमांचल में 19 सीटों पर उम्मीदवार दिये थे। बहादुरपुर सीट पर ओवैसी की पार्टी के अंजार नईमी को 47 फीसदी वोट मिले और उनकी शानदार जीत हुई। इस सीट पर कांग्रेस के तौसीफ आलम को केवल 10 फीसदी वोट मिले। तौसीफ सीटिंग विधायक थे फिर भी मुस्लिम वोटरों ने उनसे नजर फेर लिया और औवैसी की झोली वोटों से भर दी। इससे समझा जा सकता है कि ओवैसी ने किसी तरह मुस्लिम वोटरों पर अपनी पकड़ बनायी है। तेजस्वी के सीएम नहीं बनने की एक वजह कांग्रेस का खराब स्ट्राइक रेट भी है। कांग्रेस ने 70 सीटों पर लड़ कर केवल 19 जीती। यह प्रदर्शन तो 2015 से खराब है। 2015 में कांग्रेस ने 41 सीटों पर लड़ कर 24 जीती थी। इसलिए माना जा रहा है कि अगर राजद 144 की बजाय 160-170 पर लड़ता तो महागठबंधन को बहुमत मिल गया होता। राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने इस बात को स्वीकार किया है कि ओवैसी के कारण उनका नम्बर गेम खराब हो गया।