बिहार चुनाव: LJP अगर NDA का हिस्सा होती तो RJD-Congress को मिलती कितनी सीट,जानिए
पटना- बिहार चुनाव परिणामों के विश्लेषण से पता चलता है कि एनडीए से 'हम' और वीआईपी के साथ 'लोजपा' भी चुनाव लड़ी होती तो सत्ताधारी गठबंधन कम से कम 151 सीटें जीत सकती थी। यानि, चिराग पासवान की वजह से राजग को कम से कम 31 सीटों का नुकसान झेलनी पड़ी है। यही नहीं 30 से ज्यादा सीटों पर वोटों के विश्लेषण से पता चलता है कि इस समय 75 सीटें जीतकर जिस तरह से तेजस्वी यादव की राजद सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर कायम रही है, उसे 25 से ज्यादा सीटों का नुकसान हो सकता था। यानि, आरजेडी की सीटें 50 से भी काफी कम हो सकती थी। ये तथ्य उन कथित दावों से पूरी तरह अलग हैं कि तेजस्वी यादव अपने पिता लालू यादव के साए से बाहर निकलकर उनके परंपरागत MY समीकरण को बरकरार रखते हुए बड़े पैमाने पर हर जाति के युवा वोटरों को भी जोड़ने में सफल रहे हैं।
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इसके ठीक उलट अगर चिराग पासवान नीतीश कुमार को सत्ता से बेदखल करने की मुहिम नहीं छेड़े होते तो जेडीयू को और 25 सीटें मिल सकती थीं और 15 साल की इंकम्बेंसी के बावजूद वह 68 सीटें जीत सकता था। यही नहीं एलजेपी के चलते कांग्रेस को भी 7 सीटों पर फायदा हुआ है, नहीं तो वह इस चुनाव में 19 के बदले सिर्फ 12 सीटों पर ही सिमट सकती थी और वो सातों सीटें जदयू के खाते में जा सकती थी। वोटों के विश्लेषण से साफ जाहिर होता है कि धौरैया, दरभंगा ग्रामीण, बड़हिया, बाजपट्टी, अलौली, चकाई, एकमा, गायघाट, इस्लामपुर, जमालपुर, लौकहा, महनार, महुआ, मीनापुर, मोरवा, नाथनगर, ओबरा, साहेबपुर कमाल, समस्तीपुर, शेखपुरा, शेरघाटी, सिंघेश्वर और सूर्यगढ़ा में राजद की जीत का अंतर एलजेपी को मिले वोटों के कम है। इसी समीकरण से कांग्रेस ने चेनारी, खगड़िया, राजापाकर और महाराजगंज में जदयू को हराया।
सबसे अहम तथ्य तो ये है कि लोजपा के 25 उम्मीदवार तो वे थे जो टिकट नहीं मिलने या पार्टी की सीट एनडीए के सहयोगियों को दिए जाने की वजह से चुनाव से ठीक पहले भाजपा छोड़ चुके थे। यानि,लोजपा उम्मीदारों को जो वोट मिले हैं, उसके पीछे की ताकत को भी समझा जा सकता है, जिन्हें चिराग बार-बार भाजपा की अगुवाई वाली सरकार बनाने का सब्जबाग दिखाकर अपनी गोटी सेट कर रहे थे।
वैसे कुछ सीटें ऐसी भी हैं जहां जेडीयू की कीमत पर लोजपा को नुकसान हुआ है। मसलन, दिनारा, जगदीशपुर और रघुनाथपुर में राजद उम्मीदवारों की लोजपा से जीत का अंतर जदयू को मिले वोटों से कम थे। इसी तरह कांग्रेस कसबा सीट इसलिए जीत गई, क्योंकि एलजेपी ने हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा को तीसरे नंबर पर खिसका दिया। वीआईपी चार सीटें जीती और एक सीट पर लोजपा के चलते हार गई। लोजपा ने एक सीट पर भाजपा को भी नहीं छोड़ा। यह है भागलपुर सीट। यहां बीजेपी का उम्मीदवार कांग्रेस से सिर्फ 1,113 वोटों से हार गया। जबकि, खुद को मोदी जी का हनुमान बताने वाली चिराग की पार्टी ने दोस्ताना मुकाबले में 20,000 वोट हासिल कर लिए। इस तरह से अगर एनडीए लोजपा को साथ रख पाता तो राजद का तेज 46 सीटों पर और कांग्रेस का आंकड़ा 12 सीटों तक सिमट जाता।
वोटों के विश्लेषण से साफ हो जाता है कि पहले दौर में लोजपा की मौजूदगी और जदयू-भाजपा के बीच जमीन पर तालमेल में कमी के चलते महागठबंधन ने बाजी मार ली थी। लेकिन, अगले दोनों दौर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आक्रामक चुनाव प्रचार, नीतीश के लिए उनका खुला समर्थन, महिला वोटरों की बूथ तक पहुंच, अगड़ी जातियों की गोलबंदी, नीतीश के साइलेंट अति पिछड़ी, महादलित और महिला वोटरों के समर्थन ने जोखिम भरे खेल को एनडीए के पक्ष में मोड़ दिया।
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