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बिहार चुनावः नीतीश क्या प्रदेश की राजनीति का चेहरा बने रहेंगे, तेजस्वी की क्या है तैयारी

बिहार चुनाव के नतीजों की घोषणा के बाद से ही नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने ख़ामोशी अख़्तियार कर ली थी. दोनों ही नतीजों के दो दिन बाद मीडिया के सामने आए.

By इक़बाल अहमद
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नीतीश कुमार
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नीतीश कुमार

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि अगली सरकार भी एनडीए की ही होगी लेकिन मुख्यमंत्री का फ़ैसला एनडीए की बैठक में होगा. उधर नेता प्रतिपक्ष और महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार रहे तेजस्वी यादव ने कहा है कि यह चुनाव बदलाव के लिए था और अगर नीतीश कुमार में ज़रा भी नैतिकता बची है तो जनता के फ़ैसले को देखते हुए उन्हें कुर्सी से हट जाना चाहिए.

बिहार चुनाव के नतीजों की घोषणा तो मंगलवार देर रात ही हो गई थी, लेकिन नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने बुधवार को पूरी तरह ख़ामोशी अख़्तियार कर रखी थी और दोनों ही मीडिया के सामने गुरुवार को आए.

गुरुवार सुबह तेजस्वी यादव ने अपने निवास पर (जो कि आधिकारिक रूप से पूर्व मुख्यमंत्री और तेजस्वी की मां राबड़ी देवी का निवास है) पहले राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नव-निर्वाचित विधायकों से मुलाक़ात की जहां उन्हें विधायक दल का नेता चुना गया, फिर उसके बाद उन्होंने महागठबंधन के नेताओं से मुलाक़ात की. मुलाक़ातों का दौर ख़त्म होने के बाद गुरुवार दोपहर वो मीडिया से बात करने के लिए बाहर आए. महागठबंधन के घटक कांग्रेस और वाम दलों के नेता भी प्रेसवार्ता में मौजूद रहे.

तेजस्वी ने कहा कि जनता ने फ़ैसला महागठबंधन के पक्ष में दिया है और चुनाव आयोग ने नतीजा, एनडीए के पक्ष में सुनाया है.

आँकड़ों पर एक नज़र

चुनाव आयोग के ज़रिए घोषित नतीजों के अनुसार 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में एनडीए को 125, महागठबंधन को 110 और बाक़ी को आठ सीटें मिली हैं. एनडीए में बीजेपी को 74 सीटें मिली, जबकि जनता दल-यू सिर्फ़ 43 सीटें ही जीत सकी. साल 2015 के चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी ने आरजेडी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और उन्हें 71 सीटें मिली थीं.

इस चुनाव में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और उसे 75 सीटें मिलीं.

दोनों गठबंधन में भले ही 15 सीटों का फ़र्क़ हो लेकिन मतों के अंतर तो और भी चौंकाने वाले हैं.

नीतीश कुमार
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चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, एनडीए और महागठबंधन के कुल मतों में सिर्फ़ 12,768 वोटों का ही अंतर है. यानी जो तीन करोड़ 14 हज़ार वोट पड़े उनमें से जीत-हार का फ़ैसला केवल 13 हज़ार मतों के अंतर से हुआ.

एनडीए के खाते में एक करोड़ 57 लाख, 1 हज़ार 226 वोट पड़े जबकि महागठबंधन के खाते में एक करोड़ 56 लाख 88 हज़ार 458 वोट पड़े. अगर इसे प्रतिशत के लिहाज़ से देखें तो एनडीए को 37.26 प्रतिशत वोट मिले, जबकि महागठबंधन को 37.23 प्रतिशत वोट. यानी, राज्य के दोनों गठबंधन को जो वोट मिले हैं उसके प्रतिशत का अंतर सिर्फ़ 0.03 फीसद का है.

कई सीटों पर हार और जीत में 100 से लेकर 500 वोटों का ही फ़र्क़ है.

तेजस्वी
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तेजस्वी

जमकर बरसे तेजस्वी

गुरुवार को प्रेस से बीतचीत के दौरान तेजस्वी ने नीतीश कुमार पर भी जमकर हमला किया.

उन्होंने कहा, "यह जनादेश बदलाव का है. अगर थोड़ी सी भी अंतरात्मा, नैतिकता नीतीश कुमार में बची होगी तो ये जो जोड़-तोड़ भाग गुणा करके कुर्सी पर बैठने का शौक़ है, उनको जनता के इस फ़ैसले का सम्मान करते हुए कुर्सी से हट जाना चाहिए."

पटना स्थित पत्रकार और लेखक पुष्यमित्र कहते हैं कि गुरुवार को प्रेसवार्ता के दौरान तेजस्वी काफ़ी आश्वस्त दिख रहे थे.

वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर ने भी कहा कि तेजस्वी आत्मविश्वास से भरे लग रहे थी.

पुष्यमित्र कहते हैं कि तेजस्वी ख़ुद के हाव-भाव के ज़रिए एनडीए गठबंधन के दो छोटे दल पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम माझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) को एक संदेश भी देना चाह रहे थे कि अभी तक उन्होंने पूरी तरह अपनी हार स्वीकार नहीं की है और वो सरकार बनाने की कोशिश कर रहे हैं.

बिहार चुनाव
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इस दौरान तेजस्वी ने वोटों की गिनती में हुई कथित गड़बड़ियों का भी आरोप लगाया. उनके अनुसार कई सीटों पर उनके जीते हुए उम्मीदवार को हारा हुआ बता दिया गया और एनडीए उम्मीदवारों को जीतने का सर्टिफ़िकेट दे दिया गया.

उन्होंने कहा कि पार्टी ने चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज की है और उम्मीदवारों ने भी चुनाव आयोग में शिकायत की है और पूछा है कि उन्हें लिख कर दिया जाए कि किन कारणों से उनके पोस्टल बैलट को अवैध क़रार दिया गया है.

हालाँकि, पुष्यमित्र कहते हैं कि उनके दावों में उत्साह ज़्यादा और विश्वास कम दिख रहा था. वो बताते हैं कि कुछ सीटों पर एनडीए के उम्मीदवार भी बहुत कम वोटों के अंतर से हारे हैं.

वहीं मणिकांत ठाकुर बताते हैं कि ऐसे आरोप पहले भी लगते रहे हैं.

वो कहते हैं, "ऐसा लगता है कि पोस्टल बैलट के मामले में पारदर्शिता नहीं बरती गई है. लेकिन वोटों की गिनती के दौरान रिटर्निंग ऑफ़िसर के पास इतना विवेकाधिकार होते हैं कि वो किसी ना किसी के पक्ष में उसका इस्तेमाल कर सकते हैं और इस तरह के आरोप पहले भी लगते रहे हैं."

हालांकि चुनाव आयोग ने ऐसे आरोपों को सिरे से ख़ारिज़ कर दिया है.

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तेजस्वी पर भी हुए वार

बीजेपी के नेता और उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने गुरुवार शाम दो तीन ट्वीट कर तेजस्वी पर निशाना साधा और कहा कि आरजेडी अपने समर्थकों को आगज़नी और अराजकता के लिए उकसा रही है.

हालाँकि, पुष्यमित्र कहते हैं कि महागठबंधन को यदि सड़क पर उतरना होता तो विरोध के स्वर बुधवार को ही उठते.

वहीं तेजस्वी ने प्रेसवार्ता के दौरान कहा कि वो जल्द ही धन्यवाद यात्रा निकालेंगे और जनता का शुक्रिया अदा करेंगे. उन्होंने ये भी कहा कि सरकार जनवरी तक रोज़गार और एक समान वेतन का दावा पूरा नहीं करती तो महागठबंधन सरकार के ख़िलाफ़ आंदोलन करेगा.

यानी इसका मतलब ये समझा जा सकता है कि वो विपक्ष में बैठने के लिए भी तैयार हैं.

मणिकांत ठाकुर का मानना है कि तेजस्वी 'धन्यवाद यात्रा' के ज़रिए तेजस्वी अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों का मनोबल बनाए रखना चाहते हैं.

उधर गुरुवार शाम नीतीश कुमार ने भी नतीजे आने के बाद पहली बार मीडिया से बात की. उन्होंने बुधवार को दिन भर अपने अधिकारियों और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से अपने आवास पर मुलाक़ात की. गुरुवार को उन्होंने अपने नव-निर्वाचित विधायकों से पार्टी दफ़्तर में मुलाक़ात की और फिर प्रेस को संबोधित किया.

उन्होंने कहा,"जनता ने एनडीए के पक्ष में फ़ैसला सुनाया है, इसलिए एनडीए की सरकार बनेगी, अगला मुख्यमंत्री कौन होगा इसका फ़ैसला एनडीए की बैठक में किया जाएगा"

नीतीश ने साथ ही कहा कि उन्होंने कभी भी मुख्यमंत्री बनने का दावा नहीं पेश किया.

उन्होंने बताया कि शुक्रवार को एनडीए घटक दलों से अनौपचारिक बातचीत होगी और फिर औपचारिक बैठक में मुख्यमंत्री का फ़ैसला कर लिया जाएगा.

लेकिन अगली सरकार कब तक बन जाएगी, इस बारे में उन्होंने कोई निश्चित तारीख़ नहीं बताई.

जनता दल-यू की सीटों के घटने के बारे में उन्होंने कहा, "कैसे क्या हुआ, इस पर अध्ययन किया जा रहा है. एक-एक सीट के बारे में पार्टी के लोग भी देख रहे हैं."

लोक जनशक्ति पार्टी पर क्या बोले नीतीश

लोक जनशक्ति पार्टी से हुए नुक़सान पर नीतीश ने कहा, "हम लोगों के ऊपर कोई प्रहार किया गया है तो उसके बारे में वो ही जानते हैं. इसका आकलन करना या कोई कार्रवाई करना बीजेपी का काम है. हम लोगों की कोई भूमिका नहीं है. इसका प्रभाव जेडीयू की कई सीटों पर हुआ है, बीजेपी की कुछ सीटों पर भी हुआ."

लेकिन यह पूछे जाने पर कि क्या चिराग पासवान को केंद्र में एनडीए से हटाया जाना चाहिए, उनका कहना था कि इसका फ़ैसला बीजेपी को लेना है.

प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान मैंने उनसे पूछा कि जनता ने आपको सेवा करने का मौक़ा दिया और आपने उनकी सेवा की, लेकिन अब ऐसा लगता है कि जनता आपकी सेवा नहीं लेना चाहती है क्योंकि जनता ने आपको 71 से घटाकर 43 सीटों पर ला दिया है तो फिर आप क्यों सेवा करना चाहते हैं?

इस पर उनका जवाब था,''स बार आप देखिए तो लोगों को मतदाताओं को कन्फ्यूज़ करने में सफलता मिली. कोई कन्फ़्यूज़न में कुछ कर दे तो क्या किया जाएगा, हम तो काम करने वाले आदमी हैं और हमने काम किया. हमारी कोई व्यक्तिगत चाहत नहीं है, लेकिन हम एनडीए के साथ जनता के बीच काम कर रहे हैं अगर एनडीए कोई फ़ैसला लेती है तो हम उस फ़ैसले के साथ हैं.''

पुष्यमित्र कहते हैं कि इस पूरे घटनाक्रम पर नीतीश एक नए तरीक़े से सोच रहे हैं.

उन्होंने कहा," बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने एक दिन पहले दिल्ली में बिहार की जीत का जश्न मनाया. लेकिन नीतीश कुमार ने जो बैठकें की उनमें हार की समीक्षा की गई और इसके ज़रिए वो एक संदेश देना चाहते थे.

"पूरे चुनाव प्रचार के दौरान नीतीश ने बहुत अपमान सहा है. प्रचार के दौरान और ख़ासकर नतीजे आने के बाद ऐसा लग रहा था कि नीतीश अब ख़त्म हो गए हैं और बीजेपी को भी लग रहा था कि उसने उनको पटख़नी दे दी है, लेकिन वास्तव में यह परिस्थिति नीतीश के हक़ में है और वो अपने हिसाब से इसका इस्तेमाल करना चाहते हैं."

43 सीटों के साथ कमज़ोर नीतीश कुमार के पास क्या हैं विकल्प?

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पुष्यमित्र के अनुसार नीतीश चाहते तो दीपावली के मौक़े पर शपथ लेकर अपने समर्थकों को दीपावली का तोहफ़ा दे सकते थे लेकिन जानबूझकर सारी प्रक्रिया में देरी कर रहे हैं.

उन्होंने कहा,"शपथ ग्रहण से पहले वो बीजेपी से अपनी सारी शर्ते मनवाएंगे. वो विधानसभा के अध्यक्ष का पद भी अपने पास रखना चाहते हैं, उसके अलावा वो चाहते हैं कि बीजेपी न केवल चिराग पासवान के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई करे बल्कि बीजेपी के जिन कुछ नेताओं ने उनके बारे में कोई बयान दिया है उनके ख़िलाफ़ भी किसी तरह की कोई कार्रवाई हो."

पुष्यमित्र कहते हैं कि अगर नीतीश एक बार फिर मुख्यमंत्री बन गए तो सत्ता का संतुलन बीजेपी के पक्ष में होगा और नीतीश यह नहीं चाहते हैं.

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बड़ा भाई बनाम छोटा भाई

लेकिन आख़िर बीजेपी 74 सीटें लाने के बाद नीतीश की सारी शर्तें क्यों मानेगी?

इसके जवाब में पुष्यमित्र कहते हैं कि पहले शिवसेना और फिर अकाली दल को खोने के बाद बीजेपी केंद्र में एक और साथी नहीं खोना चाहेगी क्योंकि इससे राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी के ख़िलाफ़ एक ग़लत संदेश जाएगा.

मणिकांत ठाकुर कहते हैं कि बीजेपी और नीतीश दोनों के मौजूदा रुख़ से तो लगता है कि फ़िलहाल एनडीए की सरकार बन जाएगी और दीपावली के बाद और छठ से पहले शपथ ग्रहण हो जाएगा.

लेकिन क्या अपनी पार्टी के सिर्फ़ 43 विधायकों के दम पर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने वाले नीतीश कुमार उसी तरह काम कर सकेंगे जिस तरह से उन्होंने 2005 से लेकर 2020 के दौरान किया?

इसका जवाब देते हुए मणिकांत ठाकुर कहते हैं,"नीतीश के पास फ़िलहाल दो विकल्प हैं. वो बीजेपी से बिना किसी मुद्दे पर अड़े बिना आराम से काम करते रहेंगे और फिर कुछ महीनों या साल के बाद केंद्र में किसी बड़े पद पर चले जाएं और बिहार में बीजेपी का मुख्यमंत्री बन जाए. या फिर नीतीश एक कड़े प्रशासक की अपनी पुरानी छवि को दोबारा बहाल करते हुए पुरे दम-ख़म के साथ मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बने रहें."

वो कहते हैं,"दूसरा विकल्प अपनाने में नीतीश के साथ फ़िलहाल यह फ़ायदा है कि बीजेपी चाहते हुए भी उनसे रिश्ता नहीं तोड़ सकती है.

"बीजेपी किसी भी हालत में नीतीश को नहीं छोड़ सकती है क्योंकि तेजस्वी यादव को चुनौती देने के लिए बीजेपी के पास फ़िलहाल कोई मज़बूत ओबीसी नेता नहीं है.

"बिहार में फ़िलहाल किसी अगड़ी जाति के किसी नेता के चेहरे पर बीजेपी राजनीति नहीं कर सकती है और अगर बीजेपी चाहे भी तो किसी ओबीसी नेता को इतनी जल्दी नहीं सामने ला सकती है जिसकी पहचान पूरे बिहार में बन जाए. ऐसा करने में उसे अभी कुछ और साल लगेंगे."

तो कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि अपने राजनीतिक जीवन के शायद सबसे मुश्किल दौर से गुज़रने के बाद भी फ़िलहाल तो बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार का दख़ल बना रहेगा, वो बिहार की राजनीति का चेहरा बने रहेंगे.

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English summary
Bihar Election 2020: Will Nitish remain the face of state politics and preparation for Tejashwi
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