क्या नीतीश को मिलेगी लालू-राबड़ी की बहू एश्वर्या के आंसुओं से मदद?
बड़ी एंटी इनकंबेंसी झेल रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महिलाओं को रिझाने की कोशिश ताजा विधानसभा चुनाव में भी जारी रखी है। पहले ऐसी ही कोशिशों का नीतीश कुमार को फायदा मिलता रहा है। लड़कियों को शिक्षा से जोड़ना, साइकिल देना जैसी पहल उनकी ही थी और उसे खूब सराहा भी गया था। ताजा विधानसभा चुनाव में भी नीतीश कुमार ने कई ऐसी पहल की हैं जिनसे महिला वोटरों को पार्टी से जोड़े रखा जा सके या फिर इस वोट बैंक के आधार को बढ़ाया जा सके। नीतीश कुमार ने तीन पहल स्पष्ट रूप से महिला वोटरों को ध्यान में रखकर की है
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इंटर
पास
करने
पर
लड़कियों
को
25
हजार
रुपये
की
मदद
और
ग्रैजुएशन
करने
पर
50
हजार
रुपये
की
मदद।
-
दलित
वर्ग
में
अगर
बलात्कार
की
घटना
होती
है
तो
पीड़ित
परिवार
के
लिए
नौकरी
-
लालू
प्रसाद
की
बहू
एश्वर्या
को
मंच
पर
लाकर
महिला
उत्पीड़न
के
खिलाफ
लड़ने
की
प्रतिबद्धता
और
आरजेडी
की
छवि
पर
चोट।
उपरोक्त तीन बिन्दुओं में पहला नीतीश कुमार की छवि के अनुरूप है। वे ऐसा काम करते रहे हैं जिससे महिलाओं को महसूस हो कि सरकार ने उनकी मदद की है। मगर, दूसरा और तीसरा बिन्दु नीतीश कुमार के स्वभाव के अनुरूप नहीं है। ये दोनों कदम बताते हैं कि नीतीश कुमार को अपना आधार वोट बैंक खिसकता हुआ दिख रहा है जिसे वे बनाए या बचाए रखने की कोशिश कर रहे हैं। बलात्कार होने पर दलित वर्ग के परिवार के सदस्य को नौकरी के मामले में तो नीतीश बुरी तरह से घिर गये थे। जब कई तरह के सवाल होने लगे तो उन्होंने कहा कि वे कोई नयी बात नहीं कर रहे हैं। जो कानून में है उसे ही बता रहे हैं।
लालू-राबड़ी
की
बहू
को
मंच
पर
बुलाया
जाना
कोई
अप्रत्याशित
घटना
इसलिए
नहीं
है
कि
वे
परसा
में
अपने
पिता
के
लिए
वोट
मांगने
को
खड़ी
हुई।
अगर
ऐश्वर्या
जेडीयू
के
बाकी
उम्मीदवारों
के
लिए
भी
वोट
मांगती
हैं
तो
ऐसा
जरूर
माना
जाएगा
कि
एश्वर्या
का
राजनीतिक
इस्तेमाल
नीतीश
कुमार
कर
रहे
हैं।
फिर
भी
दो
बातें
ऐसी
जरूर
हुई
हैं
जो
एश्वर्या
के
राजनीतिक
इस्तेमाल
की
पुष्टि
करती
हैं।
-
एक
खुद
एश्वर्या
का
कहना
कि
नीतीश
कुमार
को
मुख्यमंत्री
बनाइए।
-
दूसरा
एश्वर्या
के
पिता
और
स्वयं
नीतीश
कुमार
का
मंच
से
यह
बताना
कि
ससुराल
में
एश्वर्या
के
साथ
अन्याय
हुआ।
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एश्वर्या के आंसू भी इसी लिहाज से चुनाव के मौसम में वोट मांगते हुए नज़र आते हैं। अगर नीतीश कुमार ने चुनाव से पहले एश्वर्या को इंसाफ दिलाने में मदद की होती, उनका साथ दिया होता तो तस्वीर बिल्कुल अलग होती। मगर, ऐसा दिखा नहीं। अब चुनाव के वक्त एश्वर्या के पिता चंद्रिका राय को टिकट देना और उनसे पुराने राजनीतिक संबंधों का जिक्र करना तक तो ठीक है मगर एश्वर्या को ससुराल में हुई तकलीफ का जिक्र कर वोट मांगने से उनकी विश्वसनीयता मजबूत नहीं होती। खुद एश्वर्या ऐसा करती हैं तो यह उनका अधिकार है और इसका फायदा भी उन्हें मिलेगा। मगर, नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री रहते अगर एश्वर्या के साथ नाइंसाफी हुई और अब तक नीतीश कुछ न कर सके, तो आगे वो क्या इंसाफ दिलाएंगे- यह सवाल जरूर मतदाताओं के मन में उठेगा। जाहिर है पैन बिहार लेवल पर इसका फायदा नीतीश कुमार को मिलेगा, ऐसा कतई नहीं लगता।
एक बात महत्वपूर्ण है कि बिहार विधानसभा चुनाव में महिलाओं की भागीदारी लगातार बढ़ती चली गयी है। अब महिलाओं का वोट लगभग पुरुषों के बराबर पहुंच चुका है। 2015 के चुनाव में जितने वोट पड़े थे उनमें महिलाओं की हिस्सेदारी 49.61 प्रतिशत थी। 2010 में 47.74 प्रतिशत और अक्टूबर 2005 में 44..99 प्रतिशत थी।
विधानसभा चुनाव में 2005 के मुकाबले 5 प्रतिशत से ज्यादा महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ चुकी है। इसमें भी नीतीश फैक्टर देखा जा सकता है। मगर, अहम सवाल यह है कि क्या ताजा चुनाव में यह ट्रेंड दिखेगा? अगर यह ट्रेंड दिखता है तो क्या नीतीश कुमार के कारण दिखेगा? अगर नीतीश की वजह से महिलाओं की हिस्सेदारी का प्रतिशत और अधिक बढ़ता है तो निश्चित रूप से फायदा उन्हें ही मिलना है।
2005 के बाद महिलाएं जिस तरीके से नीतीश राज में सुरक्षित महसूस कर रही थीं उस स्थिति में बीते एक दशक में बदलाव आया है। 2018-19 के एनसीआरबी के आंकड़ों से पता चलता है कि महिलाओं के विरुद्ध अपराध में सबसे ज्यादा 50 फीसदी अपहरण, 20 फीसदी दहेज मामले, 12 फीसदी बलात्कार और 6 फीसदी दहेज हत्या के मामले हैं। एनसीआरबी के आंकड़े के मुताबिक बिहार उन राज्यों में है जहां घरेलू हिंसा की दर सबसे ज्यादा है। 15-49 साल की उम्र की महिलाओँ में घरेलू हिंसा का राष्ट्रीय औसत 33 फीसदी है जबकि बिहार में इस आयु वर्ग में 45 फीसदी महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हैं। यह बात और भी बुरी है कि केवल 13 प्रतिशत महिलाओं ने ही मदद की गुहार लगायी है। इससे पता चलता है कि नीतीश राज में महिलाओं की स्थिति बदतर हुई है।
वास्तव में 15 साल के शासन में महिलाओं के लिए जो स्थिति शुरुआती दौर में बदली थी वह बाद में फिर बिगड़ती चली गयी है। इसलिए महिलाओं का आकर्षण नीतीश कुमार के साथ बना हुआ है, ऐसा दावे के साथ नहीं कहा जा सकता। मगर, महिलाएं उनसे दूर हुई हैं इसका पता भी चुनाव नतीजों से ही पता चलेगा। मगर, महिला वोटरों को लुभाने के लिए जो बेचैनी लीक से हटकर नीतीश कुमार दिखा रहे हैं उससे पता चलता है कि खुद उन्हें ही इस बात का विश्वास हो चला है कि महिला वोटरों का आकर्षण उनके साथ पहले जैसा नहीं रहा। ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि क्या ऐश्वर्या के आंसू नीतीश को वोट दिला पाएंगे?