बिन लालू सब सून : किस्साबाज नेता की झोली में ऐसे गिरते थे वोट
बिहार विधानसभा चुनाव में लालू यादव की गैरमौजूदगी से माहौल फीका लग रहा है। जनता की नब्ज पहचानने वाले लालू यादव की चुनावी सभाएं बहुत खास हुआ करती थीं। जनता के दिलों में जगह बनाने की उनकी अपनी निराली शैली थी। 2015 में लालू ने 33 दिनों में अकेले 252 सभाएं की थीं। अपने सम्मोहक भाषणों से वे लोगों को समझाने में कामयाब हो गये थे कि उनकी आशाएं नरेन्द्र मोदी नहीं बल्कि वे और नीतीश कुमार पूरा करेंगे। जनसंवाद की अपनी खास अदा से लालू ने वो असर पैदा किया कि नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी बेअसर हो गयी थी। नरेन्द्र मोदी ने 2015 में 26 सभाएं की थीं तो अमित शाह ने 85 रैलियों में जोर लगाया था। लेकिन इसके बाद भी भाजपा जीत नहीं पायी थी। चारा घोटला में सजायाफ्ता होने और चुनाव लड़ने से अयोग्य ठहराये जाने के बाद भी लालू ने कमाल कर दिया था। 2020 के चुनावी सीन में लालू नहीं हैं तो अब राजद को ऐसे करिश्मे से महरूम रहना पड़ेगा। चुनाव का एलान होते ही लालू ने जेल (अस्पताल) से ट्वीट कर राजद में जोश फूंकने की कोशिश की है। इस बार तो पहले की तरह चुनावी सभाएं भी नहीं होंगी। ऐसे में चुनाव प्रचार के वर्चुअल मोड में राजद कैसे और क्या करेगा ? यह भी एक बड़ा सवाल है।
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किस्साबाज लालू की झोली में ऐसे गिरे थे वोट
2015 के चुनाव प्रचार में लालू यादव ने वैशाली में एक भाषण दिया था जिसे उत्तेजक करार दिया गया था। इसके खिलाफ केस भी हुआ था। इसके अगले अगले दिन 30 सितम्बर को लालू जमुई में चुनावी सभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने भाजपा को भरम फैलाने वाली और ढोंगी पार्टी बताने के लिए एक दिलचस्प किस्सा सुनाया। लालू ने कहा, ई पाटी ने तो गणेशे जी के ठग लिया। गणेश जी के ठगे वाला पाटी से लड़ाई हऊ । हम थे उस समय अमेरिका में। राबड़ी देवी हमको फोन किया, कहां बानी ? तs हम कहनी कि अमेरिका में बानी। लालू यादव ने अपने दाहिने हाथ को कान के पास ले जाकर ऐसे मोड़ लिया जैसे कि सचमुच फोन उठा रखा हो। लालू ने आगे कहा, राबड़ी देवी से हम पूछनी, का बात बा ? तो राबड़ी देवी बोलीं, एहिजा तs घरे, घरे लोग गणेश जी के दूछ पियावता। हम पूछनी कि तेहूं पिया देले का ? तs राबड़ी देवी कहली कि हां, हमहूं पिया देहनी। लालू यादव ने भीड़ की तरफ देखा और हंस के कहा, देखे कैसे लोग बात में आ जाते हैं। देखना ई धोखा देने वाली पार्टी (भाजपा) है। होशियार रहना। जमुई झारखंड की सीमा पर बसा जिला है जहां को लोग भोजपुरी बिल्कुल नहीं समझते। लेकिन लालू यादव ने मंच पर ऐसा समां बांधा कि लोग भाषा का भेद को भूल कर उनकी बातों का आनंद लेने लगे। इस तरह लालू यादव ने 2015 में भाजपा का खेल बिगाड़ने के लिए तरह-तरह के किस्सों का सहारा लिया था।
मोदी को लालू ने ऐसे दिया था जवाब
नरेन्द्र मोदी ने 2015 में चुनाव प्रचार थमने से ठीक पहले एक भाषण में कहा था, नीतीश जी, लालू जी, सोनिया बहन, आपका हारना तय है। आपका डूबना तय है। अब आप ये बताइए कि विपक्ष का नेता कौन होगा, लालू जी का बेटा होगा या नीतीश बाबू होंगे ? तब लालू ने कहा था कौन है नरेन्द्र मोदी ? ई कहता था कि 56 ईंच का है सीना मेरा, पाकिस्तान को पटक देंगे, चीन को खदेड़ देंगे। लेकिन हम इसका सीना नापे तो बत्तीसे इंच का निकला। मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान ये सवाल उठाया था कि लालू, नीतीश और राहुल गांधी एक मंच पर साथ-साथ क्यों नहीं दिखायी पड़ते ? जब अभी इनकी पटरी नहीं बैठ रही तो चुनाव के बाद ये कैसे मिल कर काम करेंगे? तब लालू ने बिल्कुल साफगोई से जनसभा में कहा था, हम और नीतीश आपस में लड़ रहे थे। नीतीश मेरी टांग खींच रहे थे और मैं नीतीश की टांग खींच रहा था। दो पिछड़ा नेता लड़ रहे थे। हमारे नया समधी मोलायम सिंह यूपी में अलगे ठान रहे थे। मायावती अलगे थीं। बंगाल में ममता बनर्जी अलगे लड़ रहीं थीं। नरेन्द्र मोदी इस फूट का फायदा उठाये। आप लोग कहावत सुने न हैं, घर फूटे गंवार लूटे। लेकिन अब बिहार में हम और नीतीश एक साथ हैं। नरेन्द्र मोदी को उखाड़ फेंकेंगे।
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लालू यादव की साफगोई
2015 में लालू ने बिहार चुनाव को देश का चुनाव बताया था है। उन्होंने कहा था कि इस चुनाव से राजनीति का एक नया रास्ता निकलेगा। लालू ने मजाक मजाक में तभी इशारा कर दिया था कि तेजस्वी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हैं। इन्होंने कहा था, हम बारात लेके निकल पड़े हैं। हमारे बराती में नीतीश दूल्हा हैं। साथ में एगो सहबलियो (तेजस्वी) है। लेकिन बीजेपी के बरात में तs कवनो दूल्हे न हऊ। मोदी और अमित शाह के धुआंधार प्रचार के बाद भी लालू को जीत का भरोसा था। वे पिछले 10 साल से सत्ता से दूर थे। लेकिन उन्होंने अपने अनुभव से हवा का रुख भांप लिया था। जीत के बाद लालू यादव ने एक बड़ी बात कही थी। अगर वे इस बात पर कायम रहते तो नीतीश शायद आज भाजपा के साथ नहीं होते। 8 नवम्बर 2015 को लालू यादव ने कहा था, बिहार की गरीब जनता ने हमें बहुत बड़ा जनादेश दिया है। अगर हमारे अंदर किसी तरह की कोई बात (खटपट) हुई तो जनता कभी भी हम लोगों को माफ नहीं करेगी। हम लोगों को इस बात का अहसास है। लेकिन दो साल बाद ही लालू यादव इस बात को भूल गये। तेजस्वी पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप ने लालू और नीतीश के बीच ऐसी कटुता पैदा कर दी कि बिहार की राजनीति ने यू टर्न ले लिया। आज लालू चुनावी मैदान से दूर हैं लेकिन दूर बैठे वे जरूर सोच रहे होंगे 2015 का राजनीति प्रयोग आखिर दो साल में ही क्यों फेल हो गया ? अब जनता की अदालत में ही तय होगा कि कौन सही और कौन गलत है।