बिहार न्यूज़ के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
Oneindia App Download

बिहार की चुनावी कहानी: नीतीश का एक बाल्टी पानी बनाम तेज प्रताप का एक लोटा पानी

Google Oneindia News

नई दिल्ली। नीतीश कुमार के 'एक बाल्टी पानी’ और तेजप्रताप यादव के एक लोटा पानी की क्या है चुनावी कहानी ? हिन्दी साहित्य में 'एक लोटा पानी’ शीर्षक से कई प्रेरक कहानियां हैं। लेकिन तेजप्रताप यादव ने एक लोटा पानी की उपमा नकारात्मक राजनीति के लिए दी। तेज प्रताप ने राजद को समुद्र और रघुवंश बाबू को एक लोट पानी बताया था। समुद्र से एक लोटा पानी निकल ही जाएगा तो क्या फर्क पड़ेगा ? तेजप्रताप को अब इस बयान की राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ रही है। नीतीश कुमार की एक बाल्टी पानी कहानी एक सुखद संस्मरण है। नीतीश कुमार ने मंगलवार को गंगा के निर्मल पानी और उसके मिठास को बताने के लिए अपने बचपन की एक कहानी सुनायी। गांव, गंगा और उसकी पवित्रता के भवनात्मक तारों को झंकृत कर नीतीश ने आमलोगों से जुड़ने की भरपूर कोशिश की। मंगलवार को प्रधानमंत्री ने नमामि गंगे परियोजना के तहत बनाये गये सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट का शुभारंभ किया था। इस मौके पर नीतीश कुमार ने मीठे पेयजल और गंगा के निर्मल पानी को लेकर अपने बचपन के अनुभव को साझा किया।

एक बाल्टी पानी और नीतीश

एक बाल्टी पानी और नीतीश

नीतीश कुमार के पिता रामलखन प्रसाद सिंह मशहूर वैद्य थे और पटना से पचास किलोमीटर दूर बख्तियारपुर में प्रैक्टिस करते थे। नीतीश कुमार का जन्म बख्तियारपुर में हुआ था। बख्तियारपुर गंगा नदी के किनारे है। नीतीश कुमार ने बचपन के दिनों को याद करते हुए कहा, 1955 में मैं स्कूल में पढ़ता था। मुझे याद है कि न तो मेरे घर के और न ही आसपास के कुएं का पानी पीने लायक था। पानी खारा निकलता था जिसको पीना मुश्किल था। स्कूल में भी पीने के पानी की समस्या थी। पूरे बख्तियारपुर में केवल एक दो कुएं ही ऐसे थे जिसका पानी साफ और मीठा था। रविवार को स्कूल में छुट्टी होती थी। इसलिए उस दिन हम सब गंगा नदी नहाने जाते थे। साथ में एक छोटी बाल्टी भी ले जाते थे। जब नहा कर लौटते थे तब बाल्टी में गंगा जी का पानी भर लेते थे। कितनी खुशी मिलती थी उस पानी को पी कर। मीठा पानी पीने का आनंद ही कुछ और होता। नीतीश कुमार ने इस संस्मरण के जरिये ये बात बतायी कि पहले गांव-देहात में साफ और मीठा पानी मिलना बहुत बड़ी बात होती थी। तब कुआं ही पानी के सबसे बड़े श्रोत हुआ करते थे। सबके घर में कुआं भी नहीं होता था। साधारण लोग दूर से पानी ढो कर घड़ों में जमा करते थे। उस जमाने में गंगा जी का पानी इतना साफ और मीठा होता था कि उसे सीधे निकाल कर पी सकते थे। लेकिन अब गंगा का पानी बहुत प्रदूषित हो गया है। ऐसे में हमारी जिम्मेवारी है कि गंगाजल को फिर कैसे पहले की तरह निर्मल बनाएं। नीतीश कुमार ने कहा, केन्द्र और बिहार सरकार मिल कर गंगा नदी को स्वच्छ बनाने का अभियान चला रही है।

एक लोटा पानी का महत्व

एक लोटा पानी का महत्व

तेज प्रताप ने एक लोटा पानी की उपमा रघुवंश बाबू को बेहैसियत बताने के लिए दी थी। यह सच है कि संगठन बड़ा होता है और उसकी तुलना में व्यक्ति छोटा। लेकिन राजनीति में कई बार एक अकेला आदमी भी संगठन पर भारी पड़ जाता है। उसके अलग होने से दल अर्श से फर्श पर आ जाता है। सबसे सटीक उदाहरण नीतीश कुमार का है। एक जमाने में नीतीश कुमार, लालू यादव की छत्रछाया में राजनीति करते थे। लालू नेता थे तो नीतीश उनके अनुगामी। लालू यादव की हर तरफ जयकार थी। लेकिन लालू यादव के अहंकार के कारण नीतीश ने उनका साथ छोड़ दिया । कभी लालू यादव ने भी कहा था, हमारी बिल्ली और हमीं से म्याऊं। लेकिन एक अकेले नीतीश कुमार ने लालू के मजबूत राजनीतिक किले को ढाह दिया। 1994 में नीतीश, यानी एक लोटा पानी, के निकलने का परिणाम लालू ने देख लिया। नीतीश ने 10 साल में ही लालू यादव की सत्ता उखाड़ फेंकी। 2015 में राजद को फिर सत्ता मिली तो नीतीश के सहयोग से। लेकिन जब नीतीश से अनबन हुई तो दो साल बाद ही सत्ता दुर्लभ हो गयी। एक अकेले वीपी सिंह ने जब कांग्रेस छोड़ी तो चमत्कारी जीत हासिल करने वाले राजीव गांधी की भी कुर्सी चली गयी। इसलिए राजनीति में समुद्र और एक लोटा पानी का अहंकारपूर्ण बयान नुकसान का कारण बन जाता है।

लालू-नीतीश कैसे बने प्रतिष्ठित नेता ?

लालू-नीतीश कैसे बने प्रतिष्ठित नेता ?

सामान्य घर से आने वाले लालू-नीतीश आखिर कैसे बने इतने प्रतिष्ठित नेता ? उन्होंने राजनीति में स्थापित होने के लिए संघर्ष किया। मेहनत की। वरिष्ठ नेताओं का सम्मान और अनुशरण किया। लालू और नीतीश दोनों जेपी आंदोलन की उपज हैं। बाद में लालू ने राजनीति में आगे बढ़ने के लिए देवीलाल का सहारा लिया। उनका विश्वास अर्जित किया। फिर एक दिन मुख्यमंत्री भी बने। उसी तरह नीतीश कुमार जॉर्ज फर्नांडीस के जरिये अटल बिहारी वाजपेयी के सम्पर्क में आये। अपने व्यवहार और काबिलियत से उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवी को प्रभावित किया। इसी दौरान नीतीश कुमार को भाजपा में अरुण जेटली जैसे विद्वान मित्र भी मिले। जेटली भी छात्र आंदोलन की ही देन थे। नीतीश कुमार उस समय समता पार्टी और फिर बाद में जदयू की राजनाति कर रहे थे। लेकिन उन्होंने भाजपा में भी प्रिय नेताओं की ऐसी जमात खड़ी कर ली कि उनके मुख्यमंत्री बनने का रास्त खुल गया। यानी राजनीति लक्ष्य की पूर्ति के लिए सद्भाव एक अनिवार्य गुण है। इसलिए राजद के ‘नौजवान' नेताओं के लिए यही वो मुनासिब समय है कि वे ‘रघुवंश नीति' को आत्मसात करें।

ये भी पढ़ें- बिहारः RJD ने प्रेस रिलीज जारी कर नीतीश कुमार से पूछे 18 सवाल, देश में सबसे अधिक बेरोजगारी बिहार में क्यों है?ये भी पढ़ें- बिहारः RJD ने प्रेस रिलीज जारी कर नीतीश कुमार से पूछे 18 सवाल, देश में सबसे अधिक बेरोजगारी बिहार में क्यों है?

Comments
English summary
bihar assembly elections 2020
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X