बिहार विधानसभा चुनाव 2020: जदयू ने बताई लोजपा को उसकी हैसियत
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जदयू-लोजपा की लड़ाई में अब बड़े योद्धाओं ने मोर्चा संभाल लिया है। लोजपा की तरफ से रामविलास पासवान तो जदयू की की तरफ से केसी त्यागी मैदान में उतर चुके हैं। आमने-सामने की जंग शुरू है। रामविलास पासवान ने अक्टूबर- नवम्बर में बिहार चुनाव कराये जाने का विरोध किया तो जदयू के केसी त्यागी ने कहा कि हम कोरोना के मानक संचालन प्रक्रिया का पालन करते हुए चुनाव के लिए तैयार हैं। लोजपा के गठबंधन से अलग होने की अटकलों पर केसी त्यागी ने कहा कि लोजपा कभी जदयू के साथ नहीं रही। लोजपा ने 2005, 2010 और 2015 में जदयू के खिलाफ चुनाव लड़ा था। जदयू का गठबंधन केवल भाजपा से है और हम दोनों एक दूसरे को समझते हैं। एक दूसरे का सम्मान करते हैं। भाजपा जब नीतीश कुमार के नेतृत्व में आगे बढ़ने के लिए तैयार है तो लोजपा के विरोध का क्या मतलब है। लोजपा के विरोध से गठबंधन कमजोर हो रहा है और हम इसको स्वीकार नहीं कर सकते।
लोजपा को गठबंधन कमजोर करने की इजाजत नहीं
37 साल के चिराग पासवान लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। उन्होंने मंगलवार को नीतीश कुमार पर सीधा हमला बोला था। चिराग ने कहा था कि जल, जीवन, हरियाली कार्यक्रम को जदयू ने अपना कार्यक्रम बना लिया है। यह कार्यक्रम एनडीए का नहीं। इसलिए बिहार में विकास के लिए सत्तारूढ़ एनडीए का एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम (सीएमपी) बनना चाहिए। सीएमपी के आधार पर ही बिहार में काम होना चाहिए। चिराग पासवान के इस बयान पर केसी त्यागी ने जवाबी वार में देर नहीं की। त्यागी ने एक तरह से लोजपा को उसकी हैसियत बतायी है। उन्होंने कहा कि लोजपा केन्द्र की सरकार में शामिल है। जदयू एनडीए में है लेकिन वह केन्द्र सरकार से बाहर है। केन्द्र में तो कोई न्यूनतम साझा कार्यक्रम नहीं है फिर भी लोजपा के नेता केन्द्रीय मंत्री के रूप में कार्य कर रहे हैं। लोजपा ने तो कभी केन्द्र में सीएमपी बनाने की मांग नहीं की। फिर वह बिहार में क्यों इसकी मांग उठा रही है ? लोजपा यह सवाल उठा कर बिहार में एनडीए समर्थकों के बीच गलतफहमी पैदा करना चाहती है जो बिल्कुल अनुचित है।
जदयू ने लोजपा को हैसियत बतायी
चिराग पासवान ने दो दिन पहले एक साक्षात्कार में कहा था कि अगर बिहार में तीन पार्टियां (भाजपा, जदयू, लोजपा) मिल कर चुनाव लड़ती हैं तो चुनाव का एजेंडा भी तीनों का होगा। अगर तीनों की सरकार बनती है तो यह कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के आधार पर चलेगी। अगर ये बातें अभी तय नहीं हुईं तो चुनाव के बाद तय नहीं होंगी। वैसे लोजपा हर स्थिति के लिए तैयार है। वह अकेले सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार है। केसी त्यागी ने इस मुद्दे पर भी चिराग को जवाब दिया है। त्यागी ने लोजपा को एक तरह से खारिज करते हुए कहा कि बिहार चुनाव में दो ही मेन प्लेयर हैं- भाजपा और जदयू। हम दोनों दल कोरोना मानक संचालन प्रक्रिया (सेटैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) का पालन करते हुए चुनाव के लिए तैयार हैं। चुनाव आयोग के दिशा निर्देश का पूरी तरह पालन किया जाएगा। अगर 2015 को छोड़ दें तो जदयू 20 साल से भाजपा के साथ बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ रहा है। जदयू का कभी लोजपा के साथ सीधा तालमेल नहीं रहा। लोजपा 2005 से लेकर 2015 तक लगातार तीन बार जदयू के खिलाफ चुनाव लड़ चुकी है। भाजपा हमारी स्वभाविक साझीदार है लोजपा नहीं। जुलाई 2017 में जब बिहार की राजनीतिक परिस्थियां बदलीं तो जदयू के साथ भाजपा-लोजपा का गठबंधन बन गया। त्यागी ने भाजपा को तो तरजीह दी लेकिन लोजपा को बिल्कुल भाव नहीं दिया।
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क्या अलग रास्ता तलाश रहे चिराग ?
क्या लोजपा की इतनी राजनीतिक ताकत है कि वह सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ सके ? पिछले महीने चिराग पासवान ने एसेम्बली इलेक्शन में 94 सीटों पर चुनाव लड़ने के संकेत दिये थे। संसदीय बोर्ड की बैठक में इसका फैसला भी लिया गया था। अब चिराग 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं। अभी तक लोजपा ने बिहार में कभी भी सभी सीटों पर चुनाव नहीं लड़ा है। राम विलास पासवान ने जनता दल यूनाइटेड से अलग होकर सन 2000 में लोक जनशक्ति पार्टी की स्थापना की थी। फरवरी 2005 में जब बिहार विधानसभा का चुनाव हुआ तो रामविलास ने राजद और कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था। यह चुनाव रामविलास पासवान के लिए आज भी सबसे यादगार है। फिर इसके बाद लोजपा आज तक ऐसा प्रदर्शन नहीं कर पायी। फरवरी 2005 के विधानसभा चुनाव में लोजपा को 29 सीटें मिलीं थीं। रामविलास की शर्त के कारण उस समय कोई बहुमत नहीं जुटा पाया। इसलिए सरकार नहीं बन पायी। अक्टूबर 2005 में फिर चुनाव हुआ। फरवरी की जीत से रामविलास पासवान इतने उत्साहित थे कि उन्होंने अक्टूबर 2005 के चुनाव में 203 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिये। उन्होंने अकेले चुनाव लड़ा था। लोजपा औंधे मुंह नीचे गिरी। 203 में से उसके सिर्फ 10 उम्मीदवार ही जीत सके। 2010 के चुनाव में लोजपा ने राजद के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा। इस बार नतीजे और खराब रहे। उसे केवल तीन सीटें मिलीं। उसे सात सीटों का नुकासान हुआ। 2015 में लोजपा ने भाजपा के नेतृत्व में एनडीए की छतरी में चुनाव लड़ा। भाजपा ने उसे 243 में से 40 सीटें दी। लोजपा के लिए नतीजे और खराब हुए। उसे केवल दो सीटों पर विजय मिली। वह तीन से दो पर आ गयी। अगर लोजपा बिहार में सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ती है तो उसके अंजाम का अंदाजा लगाया जा सकता है।