Bihar assembly elections: क्या राजनीति के उभरते मौसम विज्ञानी हैं चिराग पासवान
चिराग पासवान ने यह घोषणा कर कि लालू प्रसाद के समय जो एंटी इनम्बेन्सी थी उससे ज्यादा एंटी इनकम्बेन्सी नीतीश कुमार के समय इस वक्त है, वास्तव में बिहार विधानसभा चुनाव में आंधी-तूफान-बारिश-बाढ़ की जो चेतावनी दी है ऐसा लगता है कि उसमें नीतीश कुमार और उनकी पार्टी बह जाने वाली है। इसे एकतरफा सोच भी कह सकते हैं मगर तब तक जब तक कि चुनाव नहीं हो जाते और उसके नतीजे नहीं आ जाते। वहीं अगर चिराग पासवान की भविष्यवाणी सच निकलती है तो समझ लीजिए कि राजनीति में वे अपने पिता राम विलास पासवान जैसे मौसम विज्ञानी की तरह स्थापित हो जाएंगे। चिराग पासवान को ही श्रेय जाता है जब लोक जनशक्ति पार्टी ने लालू प्रसाद की आरजेडी का साथ छोड़कर एनडीए का दामन थामा था। राम विलास पासवान ऐसा नहीं चाहते थे लेकिन चिराग पासवान ने देश की राजनीति पढ़ ली थी। यही वजह है कि रामविलास पासवान केंद्र में मंत्री हैं और एलजेपी लगातार एनडीए का हिस्सा बनी हुई है।
मौसम विज्ञान पर चिराग पासवान की मजबूत पकड़ का सबूत
यह
मौसम
विज्ञान
पर
चिराग
पासवान
की
मजबूत
पकड़
का
ही
सबूत
है
कि
बिहार
विधानसभा
चुनाव
में
वे
एनडीए
से
बाहर
होकर
चुनाव
लड़
रहे
हैं
मगर
वास्तव
में
एनडीए
में
बने
हुए
हैं।
नरेंद्र
मोदी
की
तस्वीर
के
साथ
नीतीश
सरकार
को
बदलने
का
एलान
करना
कोई
सामान्य
बात
नहीं
है।
नरेंद्र
मोदी
के
साथ
नीतीश
की
तस्वीर
लेकर
जेडीयू
वोट
मांग
रही
है।
बीजेपी
अगर
चुप
है
तो
यह
जेडीयू
के
लिए
अभिशाप
और
एलजेपी
के
लिए
वरदान
है।
चिराग
पासवान
हर
उस
सीट
पर
चुनाव
लड़ने
जा
रहे
हैं
जहां
से
जेडीयू
लड़ेगी।
इसका
मतलब
यह
है
कि
चिराग
जेडीयू
के
115
सीटों
पर
सीधे
नीतीश
को
चुनौती
देने
जा
रहे
हैं।
जेडीयू
ने
7
सीटें
हिन्दुस्तानी
अवाम
मोर्चा
यानी
हम
को
तालमेल
में
दी
है।
चिराग
पासवान
बीजेपी
के
खिलाफ
उम्मीदवार
नहीं
उतारेंगे,
नरेंद्र
मोदी
के
गुण
गाएंगे,
केंद्र
में
एनडीए
के
कामकाज
का
डंका
बजाएंगे।
ऐसे
में
यह
एकतरफा
हो
रहा
होगा,
ऐसा
नहीं
हो
सकता।
राजनीति
में
ऐसा
होता
ही
नहीं
है।
संदेश
साफ
है
कि
बीजेपी
भी
एलजेपी
को
मदद
करेगी।
मोदी की तस्वीर के इस्तेमाल पर ठनी है रार
एलजीपी को बीजेपी की मदद का मतलब नीतीश के खिलाफ बीजेपी का खड़ा होना है। यह खुलकर नहीं होगा लेकिन अंदरखाने हो रहा है यह सबको नज़र आ रहा है। यही कारण है कि जेडीयू की नींद उड़ी हुई है। बीजेपी-एलजेपी की इस रणनीति ने नीतीश कुमार एंड टीम को भौंचक कर दिया है। अब जेडीयू मांग करने जा रही है कि बीजेपी चुनाव आयोग से कहे कि एलजेपी अपने पोस्टरों और नारों में नरेंद्र मोदी के चेहरे का इस्तेमाल ना करे। जेडीयू के इस आग्रह को टालने का मतलब होगा बीजेपी और जेडीयू के बीच मतभेद का बढ़ता चला जाना। वक्त इतना नहीं है कि एनडीए के बीच चौड़ी हुई खाई को पाटा जा सके। मतदाताओं को संदेश सीधा मिलता है। एलजेपी के तेवर से संदेशसाफ तौर पर जा रहा है कि नीतीश को उनके खिलाफ एंटी इनकंबेंसी के बीच खुद उनके सहयोगी अकेले छोड़ रहे हैं। बीजेपी भी मौसम विज्ञानी चिराग पासवान के नक्शे कदम पर अंदरखाने चलती दिख रही है।
195 सीटों पर एलजेपी-बीजेपी नंबर वन-टू
2015 के विधानसभा चुनाव में एलजेपी ने दो विधानसभा सीटें जीती थीं और उसके 36 प्रत्याशी दूसरे नंबर पर थे। कुल 42 सीटों पर एलजेपी ने चुनाव लड़ा था। वहीं, बीजेपी ने 157 सीटों पर चुनाव लड़ा था। उसे 53 सीटों पर जीत मिली थी जबकि 104 सीटों पर वह दूसरे नंबर पर रही थी। एलजीपी की जीती हुई और दूसरी नंबर की सीटों की संख्या 38 होती है और बीजेपी की 157 और दोनों को जोड़ लें तो यह संख्या हो जाती है 195. यही तथ्य चुनाव बाद बीजेपी-एलजेपी गठजोड़ की संभावना को मजबूत करती है और गैर नीतीश एनडीए सरकार की संभावना को जन्म भी देती है। कहने की जरूरत नहीं कि नीतीश कुमार के लिए यह बात सबसे ज्यादा बेचैन करने वाली है। मौसम विज्ञानी चिराग पासवान ने तेजस्वी यादव को छोटा भाई बताते हुए शुभकामना देने के भी राजनीतिक कयास लगाए जा रहे हैं। यह वह संभावना है जो एलजेपी के डीएनए में रहा है। अगर तेजस्वी यादव और उनकी पार्टी ने बीजेपी से बेहतर प्रदर्शन कर लिया जिसकी संभावना दिख रही है तो एलजेपी अपनी ताकत का भार वहां भी जमा कर सकती है। यह स्थिति बीजेपी और जेडीयू दोनों के लिए निराश करने वाली होगी। यही वजह है कि बीजेपी एनडीए के भीतर एलजेपी और जेडीयू दोनों के साथ रिश्ता बनाए हुए है। चुनाव बाद दोनों दलों के बीच का संतुलन उसके लिए जरूरी होगा।
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चुनाव नतीजे जो हों, एक बात तय लगता है कि अगर एलजेपी ने अपना प्रदर्शन सुधार लिया तो चिराग पासवान भावी सरकार में उपमुख्यमंत्री से नीचे किसी बात पर मानने वाले नहीं हैं। यही बात एलजेपी कार्यकर्ताओँ को उत्साहित कर है। नीतीश ने जो सिखाया था कि ताकत महागठबंधन से पाओ और सरकार एनडीए की बनाओ, वही बात अब नजीर बन चुकी है। एलजेपी ताकत बीजेपी के सहयोग से पाना चाहते हैं और सरकार इधर या उधर जहां संभव हो बनाना चाहते हैं। शर्त है सत्ता में उनकी सम्मानजनक भागीदारी।