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बिहार विधानसभा चुनाव 2020: क्या कांग्रेस ने सन 2000 में राबड़ी सरकार बनवा कर की बड़ी गलती?

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बिहार विधानसभा चुनाव 2020: क्या कांग्रेस ने सन 2000 में राबड़ी सरकार बनवा कर की बड़ी गलती?

क्या कांग्रेस ने सन 2000 में राबड़ी देवी की सरकार बनवा कर बहुत बड़ी गलती की थी ? बिहार में कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेता और नौ बार के विधायक सदानंद सिंह का कहना है कि पार्टी की गलती की वजह से राबड़ी देवी की सरकार बन गयी थी। कांग्रेस को कई चुनाव तक इस गलती की कीमत चुकानी पड़ी। सदानंद सिंह अभी कांग्रेस विधायक दल के नेता हैं और तेवर में हैं। अब वे 20 साल बाद इस गलती की सूद समेत भरपायी चाहते हैं। सदानंद सिंह ने तेजस्वी को याद दिलाया है कि वे खुद को तकतवर न समझें। सन 2000 में राबड़ी सरकार बनाने के लिए लालू यादव जैसे नेता को कांग्रेस के सामने चिरौरी करनी पड़ी थी। सदानंद सिंह को कांग्रेस प्रभारी शक्ति सिंह के निर्देश की भी परवाह नहीं। उन्होंने गुरुवार को मोतिहारी में कहा कि अगर राजद से सम्मानजनक तालमेल नहीं हुआ तो हम अकेले भी चुनाव में जा सकते हैं। उन्होंने 2020 के चुनाव में कांग्रेस के लिए 80 सीटों की मांग पहले ही रख दी है।

क्या हुआ था 2000 में?

क्या हुआ था 2000 में?

2000 का बिहार विधानसभा बहुत खास था। एकीकृत बिहार का यह अंतिम असेम्बली इलेक्शन था। इस चुनाव के करीब आठ महीने बाद ही बिहार और झारखंड का बंटवारा हो गया था। लालू यादव अपनी नयी पार्टी राजद बनाने के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे थे। उस समय एकीकृत बिहार में विधानसभा की 324 सीटें थीं। 324 सीटों पर चुनाव हुए। बहुमत के लिए 163 का आंकड़ा चाहिए था। लेकिन किसी दल को बहुमत नहीं मिला। लालू यादव के राजद ने 293 सीटों पर चुनाव लड़ा था। उसे 124 सीटें मिलीं। कांग्रेस ने सभी 324 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसे 23 सीटें मिलीं। उस समय नीतीश कुमार की समता पार्टी और जदयू ने अगल अलग चुनाव लड़ा था। नीतीश की समता पार्टी ने 120 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें 34 पर जीत मिली थी। शरद यादव के जदयू ने 87 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे जिनमें से 21 को जीत मिली। भाजपा ने 168 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें से उसे 67 पर जीत मिली थी। 20 निर्दलीय विधायक भी जीते थे। नीतीश कुमार उस समय वाजपेयी सरकार में कृषि मंत्री थे। भाजपा के अधिक विधायक थे लेकिन उसने नीतीश के नेतृत्व में सरकार बनाने की कोशिश शुरू की। किसी के पास बहुमत का आंकड़ा नहीं था। जोड़तोड़ की राजनीति चरम पर थी। कांग्रेस ने राजद के खिलाफ चुनाव लड़ा था। जीतने वाले विधायकों में सवर्ण समुदाय के अधिक थे। वे भाजपा के समर्थन वाली सरकार के साथ जाना चाहते थे। कांग्रेस में टूट की संभावना और निर्दलियों के सहारे बहुमत जुटाने की आशा में नीतीश कुमार (समता पार्टी, जदयू और भाजपा) ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।

कांग्रेस पर थी सबकी नजर

कांग्रेस पर थी सबकी नजर

केन्द्रीय कृषि मंत्री के पद से इस्तीफा दे कर नीतीश 3 मार्च 2000 को पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे। उनकी अल्पमत की सरकार को बहुमत (163) साबित करना था। नीतीश के सीएम बनने से लालू यादव आपे से बाहर थे। उनका कहना था कि सबसे बड़ी पार्टी होने (124) के नाते उन्हें सरकार बनाने का मौका मिलना चाहिए था। अपने हाथ से सत्ता को फिसलते देख वे बेचैन हो गये। इस बीच ये चर्चा जोर पकड़ने लगी कि कांग्रेस के कुछ विधायक नीतीश के पक्ष में पाला बदलने वाले हैं। इन अटकलों से लालू विचलित हो गये। सोनिया गांधी को अध्यक्ष बने दो ही साल हुए थे। वह भाजपा के साथ जा नहीं सकती थीं। लेकिन वह यह भी नहीं कह रही थीं कि लालू के साथ जाएंगी। लालू समर्थन के लिए सोनिया के दरबार में हाजिर हुए। लालू ने मिन्नतें कर कांग्रेस का समर्थन हासिल कर लिया। कांग्रेस के विधायक कहीं टूट कर नीतीश के पाले में न चले जाएं इसलिए लालू के कहने पर सभी को पटना के एक होटल में ठहरा दिया गया। लालू कांग्रेस के विधायकों की पहरेदारी का जिम्मा अपने खासमखास और बहुबली नेता शहाबुद्दीन को सौंपा। उस समय यह आरोप लगा था कि शहाबुद्दीन के हथियाबंद लोगों ने होटल में कांग्रेस विधाय़कों को एक तरह से बंधक बना कर रखा हुआ था। तब यह आरोप भी लगा था कि उस समय लालू के स्वजातीय अधिकारी राबड़ी सरकार बनवाने के लिए पर्दे के पीछे से काम कर रहे थे। इस चुनाव में 17 वैसे बाहुबली भी जीते थे जिन्होंने जेल से चुनाव लड़ा था और सलाखों के पीछे थे। ये बाहुबली विधायक नीतीश का समर्थन कर रहे थे। लेकिन लालू यादव का ‘इंतजाम' ज्यादा कारगर रहा। कांग्रेस के विधायक नहीं टूट पाये। नीतीश एनडीए के 122, झामुमो के 12 और 12 निर्दलियों के सहारे केवल 146 तक ही आंकड़ा जुटा सके। बहुमत से वे 17 दूर रह गये। आखिरकार सात दिन बाद ही नीतीश ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।

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2000 की घटना अब क्यों याद करे रहे सदानंद?

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बिहार में लालू की वजह से ही कांग्रेस को सत्ता से बेदखल होना पड़ा था। जैसे- जैसे लालू उभरे कांग्रेस कमजोर होती चली गयी। 2000 में कांग्रेस के जो 23 विधायक जीते थे उनमें सदानंद सिंह भी एक थे। सदानंद सिंह बिहार की राजनीति के बरगद हैं। लालू हों या नीतीश, किसी की लहर का उनपर कोई फर्क नहीं पड़ता। वे भागलपुर के कहलगांव से 9 बार विधायक चुने जा चुके हैं। सन 2000 में उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व से प्रतीक्षा करने का अग्रह किया था। वे आनन-फानन में राबड़ी सरकार बनाये जाने को कांग्रेस के लिए ठीक नहीं मान रहे थे। लालू उसी वोट बैंक से जीत रहे थे जो कभी कांग्रेस का हुआ करता था। उस समय सोनिया गांधी अपने सलाहकारों पर निर्भर थीं। सोनिया के दरबार में लालू यादव की चिरौरी काम कर गयी। उन्होंने कांग्रेस के समर्थन से राबड़ी देवी की सरकार बनवा दी। निर्दलीय और झारखंड मुक्ति मोर्चा ने भी राबड़ी सरकार को समर्थन दिया। लेकिन ये तय था कि अगर कांग्रेस ने समर्थन नहीं दिया होता तो राबड़ी सरकार कभी नहीं बनती। सदानंद सिंह इसी फैसले को गलती करार दे रहे हैं। कांग्रेस राबड़ी सरकार में शामिल हुई। सदानंद सिंह बिहार विधानसभा के अध्यक्ष बने। कांग्रेस के बाकी 22 विधायक मंत्री बनाये गये। कांग्रेस सरकार का तो हिस्सा बन गयी लेकिन इसके बाद वह बिहार में लालू की मोहताज हो गयी। लालू के मेल से कांग्रेस मटियामेट हो गयी। 2005 में उसके 9 विधायक जीते तो 2010 में वह 9 से 4 पर आ गयी। मृतप्राय कांग्रेस में तब जान आयी जब 2015 में नीतीश लालू के साथ आये। नीतीश के वीटो लगाने पर ही लालू कांग्रेस को 41 सीटें देने पर राजी हुए थे। वर्ना लालू की चलती तो कांग्रेस को 25 से अधिक सीटें नहीं मिलतीं। कांग्रेस ने 41 में से 27 सीटें जीत एक बार फिर पारी को जमाने की कोशिश की। अब सदानंद सिंह 2020 में कांग्रेस के लिए 80 सीटों का दावा पेश कर दिया है। इससे राजद में खलबली मची हुई है। सदानंद सिंह ने तेजस्वी यादव को को दो टूक कह दिया है कि कांग्रेस ने 2000 में अकेले चुनाव लड़ कर अपनी ताकत दिखा दी थी। अगर राजद या लालू यादव इतने ही तकतवर थे तो फिर उन्हें कांग्रेस के दरबार में मत्था टेकने की क्या जरूरत थी ?

English summary
Bihar Assembly Elections 2020: Did Congress make a big mistake by forming Rabri government in 2000?
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