बिहार विधानसभा चुनाव: किसी दल ने सोशल साइट्स पर अपने दागी लड़ाकों की कुंडली डाली क्या?
बिहार में इस समय विधानसभा चुनाव का मौसम है। चुनावी बिसात पर सभी दलों ने गोटियाँ बिछानी शुरू कर दी हैं। राजनीतिक दल अपने अपने उम्मीदवारों की सूची जारी करने में जुट गए हैं। इनमें ढेर सारे योद्धा ऐसे भी हैं जिनके दामन दागी हैं, इनमें कई पर गंम्भीर आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं। क्या आपने या सोशल मीडिया के किसी सजग प्रहरी को फेसबुक, ट्विटर या किसी अन्य वेबसाइट पर विधान सभा चुनाव लड़ने वाले माननीयों की कोई ऐसी आधिकारिक सूची दिखी जिसमें उनके दल ने आपराधिक कारनामों का कोई जिक्र या ब्यौरा दिया हो? क्या किसी अखबार या टीवी में किसी राजनितिक दल ने अपने सियासी दबंगों के कारनामों की कोई सूची या इश्तहार दिया?
जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल फरवरी में राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिए बड़ा फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राजनीतिक पार्टियों को उम्मीदवारों का आपराधिक रिकॉर्ड जनता के साथ साझा करना होगा। उनका आपराधिक रिकॉर्ड अपनी वेबसाइट के अलावा फेसबुक और ट्विटर अकाउंट पर भी डालना होगा। इतना ही नहीं, पार्टियों को इस बारे में इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में भी ब्योरा देना होगा। पार्टियों को ये भी बताना होगा कि वो साफ छवि वाले नेता के बजाए दागी नेता को क्यों टिकट दे रही हैं। दागी नेता को टिकट देने के 72 घंटे के भीतर चुनाव आयोग को भी रिपोर्ट देनी होगी। यह भी बताना होगा कि उन्हें टिकट देना क्यों जरूरी था। सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया था।
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इसके बाद सितम्बर के दूसरे सप्ताह में जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बिहार और उत्तर प्रदेश सरकार से विधायकों और सांसदों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों की जानकारी मांगी थी। इसके लिए छह हफ्ते में जवाब देने को कहा गया था। यह अवधि अक्टूबर में पूरी होने को है और यह देखना रोचक होगा कि बिहार सरकार ने ऐसे लोगों की कोई सूची कोर्ट को दी या नहीं। लेकिन बिहार में राजनीतिक दलों ने अपने उम्मीदवारों की शुरूआती सूची जारी करना शुरू कर दिया है और इनमें दागी दबंग या उनके निकट रिश्तेदार भी हैं। जेडीयू ने दस वर्तमान विधायकों और एक मंत्री को टिकट नहीं दिया है। लेकिन सभी 122 उम्मीदवारों की सूची देखने के बाद ही पता चल सकेगा कि राजनितिक दल सुप्रीम कोर्ट के आदेश का कितना पालन करते हैं।
राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और जनता दल यूनाइडेट (जेडीयू) की पहली लिस्ट में अपराधियों, आरोपियों की पत्नियों और बड़े राजनेताओं के रिश्तेदारों का बोलबाला पहले की तरह देखने को मिल रहा है। बिहार चुनाव में आरजेडी ने जो 20 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी की, जबकि जेडीयू की पहली लिस्ट में केवल 115 उमीदवारों के ही नाम दिखाई दिए। आरजेडी की लिस्ट में 10 उम्मीदवार यादव हैं। इससे लगता है तेजस्वी यादव जातीय ठप्पे से बाहर नहीं निकल पाए हैं। उनसे उम्मीद थी तेजस्वी इस छवि से बाहर निकल सभी जातियों और संप्रदाय को समान प्रतिनिधित्व देंगे। और तो और रेप के आरोपी 2 नेताओं की पत्नियों को टिकट दिया गया है। कुल मिलाकर पहली लिस्ट से तो यही पता चलता है कि तेजस्वी यादव की पार्टी सुप्रीम कोर्ट के आदेश को बहुत महत्त्व नहीं देती और माननीयों को तब तक आपराधी नहीं मानती जब तक अपराध सिद्ध न हो जाये। इधर जेडीयू उमीदवार दागी नजर नहीं आ रहे हैं लेकिन इनमें वंशवाद साफ झलक रहा है। ऐसे लगता है इस बार भी बिहार विधान सभा चुनाव में उम्मीदवारों की लिस्ट में जातिवाद वंशवाद, रिश्तेदार, आपराधिक छवि के नेताओं को बोलबाला रहेगा।
जब तक सिद्ध न हो जाये तब तक अपराधी नहीं
आपको याद होगा कि याचिका की सुनवाई के दौरान माननीयों पर आपराधिक आंकड़ों पर एक रिपोर्ट न्यायमित्र विजय हंसारिया ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रखी। जिसमें बताया गया है कि वर्तमान और पूर्व जनप्रतिनिधियों के खिलाफ विभिन्न अदालतों में फिलहाल कुल 4,442 मामले लंबित हैं। इसमें भी 2,556 आपराधिक मामले तो मौजूदा जनप्रतिनिधियों के खिलाफ लंबित हैं। जनहित याचिका दायर करने वाले अश्विनी उपाध्याय ने कोर्ट से आग्रह किया था कि मौजूदा व पूर्व जनप्रतिनिधियों के खिलाफ लंबित मामलों की सुनवाई तेज की जाए। उनका मानना है कि राजनितिक दल, 'जब तक सिद्ध न हो जाये तब तक अपराधी नहीं’ का फायदा उठा रहे हैं।
क्या कहते हैं हलफनामे
बिहार विधानसभा के 240 मौजूदा विधायकों में से 136 या 55 फीसदी विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें से 94 विधायक या 39 फीसदी पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म और बिहार इलेक्शन वाच की हाल में ही जारी एक रिपोर्ट में इसकी जानकारी दी गई है। एडीआर की रिपोर्ट में विधायकों द्वारा घोषित वित्तीय, आपराधिक, शिक्षा, लिंग और अन्य विवरण की विस्तार से जानकारी दिए गए हलफनामों के आधार पर दी गई है। बिहार के मौजूदा विधायकों में से 11 विधायकों पर हत्या के मामले चल रहे। 30 विधायकों पर हत्या के प्रयास के तहत दर्ज मामले हैं। इसके साथ ही 5 मौजूदा विधायकों ने अपने ऊपर महिलाओं के खिलाफ अत्याचार के तहत मामले दर्ज हैं। 5 मौजूदा विधायकों में से एक पर दुष्कर्म का मामला दर्ज है। इन सभी विधायकों ने अपने हलफनामे में दर्ज आपराधिक मामलों की जानकारी दी है।
लगभग हर पार्टी में आपराधिक मामले वाले सांसदों और विधायकोंकी मौजूदगी है। कुछ पार्टियों इनकी संख्या काफी ज्यादा है। तो क्या अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राजनीति में स्वच्छता अभियान चलेगा। कैसे लगेगी आपराधिक रिकॉर्ड वाले नेताओं पर लगाम। इसी साल जनवरी में चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में आपराधिक रिकॉर्ड वाले नेताओं को टिकट नहीं देने का सुझाव दिया था। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी ऐसा ही सुझाव दिया था जिसका केंद्र सरकार ने विरोध किया था। चुनाव आयोग की भूमिका दिशा निर्देश देने तक है। लेकिन दागी तो राजनितिक दलों को अच्छे लगते हैं। ऐसे में क्या आपराधिक रिकार्ड वाले दागी नेताओं चुनाव लड़ने से रोका जायेगा। ऐसा लगता तो नहीं।