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बिहार: चिराग पासवान ने उड़ा दी नीतीश खेमे की नींद, तीन दिन तक कराया था इंतज़ार

बिहार चुनाव को लेकर चिराग पासवान की रणनीति से एनडीए गठबंधन की मुश्किलें बढ़ गई हैं. एनडीए के समर्थकों और ख़ासकर जनता दल यूनाइटेड के समर्थकों का कहना है कि चिराग पासवान के चलते कुछ जगहों पर समीकरण प्रभावित हो रहा है.

By प्रदीप कुमार
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बिहार: चिराग पासवान ने उड़ा दी नीतीश खेमे की नींद, तीन दिन तक कराया था इंतज़ार

31 अक्टूबर, 2020 को चिराग पासवान जो महसूस कर रहे हैं, उसे ठीक-ठीक नापा नहीं जा सकता.

ये पहला मौका है जब उनके जन्मदिन पर उनके पिता मौजूद नहीं हैं, लिहाज़ा चिराग को उनकी बेइंतहा कमी खल रही है, वहीं दूसरी ओर बिहार चुनाव के पहले चरण के मिले फ़ीडबैक ने उन्हें उत्साहित कर रखा है. वे इस बात से खुश हैं कि पिता जहां भी होंगे, उन्हें देखकर खुश हो रहे होंगे.

बिहार चुनाव के पहले चरण में जिन 71 सीटों पर चुनाव हुआ है, उन जगहों से मिल रहे फ़ीडबैक के मुताबिक़ चिराग की पार्टी भले ही बहुत बड़ा करिश्मा नहीं करने जा रही हो लेकिन उनके उम्मीदवारों ने जनता दल यूनाइटेड खेमे की नींद उड़ा दी है.

इन उम्मीदवारों के प्रदर्शन के आधार पर ही चिराग पासवान दावा कर रहे हैं कि नीतीश कुमार किसी भी हाल में 10 नवंबर को बिहार के मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे, हालांकि वे यह दावा भी करते हैं कि बीजेपी-एलजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने की स्थिति में होगी.

पहले चरण में जिन 71 सीटों पर चुनाव हुए हैं, उनमें से 42 सीटों पर चिराग पासवान ने अपने उम्मीदवार उतारे थे. इनमें से 18-20 सीटों पर उनके उम्मीदवार जितने वोट जुटाने का दावा कर रहे हैं, उससे जनता दल यूनाइडेट के उम्मीदवारों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. चिराग को उम्मीद है कि आने वाले दो चरणों में भी उनके उम्मीदवार यही करने जा रहे हैं.

एनडीए के समर्थकों और ख़ासकर जनता दल यूनाइटेड के समर्थकों का कहना है कि चिराग पासवान के चलते कुछ जगहों पर समीकरण प्रभावित हो रहा है.

जनता दल यूनाइटेड के प्रवक्ता प्रगति मेहता कहते हैं कि चिराग पासवान के दावों की हक़ीक़त 10 नवंबर को सामने आ जाएगी, क्योंकि बिहार में नीतीश कुमार से बड़ा चेहरा कोई नहीं है और लोगों का भरोसा उन पर बना हुआ है.

बिहार: चिराग पासवान ने उड़ा दी नीतीश खेमे की नींद, तीन दिन तक कराया था इंतज़ार

चिराग पासवान की रणनीति

वहीं, दूसरी ओर चिराग पासवान की सारी रणनीति नीतीश कुमार की सीटों को कम से कम करने पर फोकस दिखती है.

उनकी बातों से ज़ाहिर होता है कि वे इस चुनाव को रणनीतिक स्तर पर कम और भावनात्मक स्तर पर ज़्यादा लड़ रहे हैं और उनकी इस लड़ाई के चलते ही तीन महीने पहले तक सुनिश्चित दिख रही बीजेपी-जेडीयू गठबंधन की जीत अब आसान नहीं लग रही है.

ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि वो वजहें क्या रहीं जिसके चलते चिराग़ पासवान उस स्तर तक पहुँच गए जहां से वे नीतीश कुमार के लिए ख़तरे की घंटी बन गए हैं. इसकी भूमिका कोई एक-दो महीने में नहीं बनी है.

चिराग के पिता रामविलास पासवान की राजनीति का शत-प्रतिशत हिस्सा केंद्र में गुजरा था और वे बिहार पर उस तरह से फ़ोकस नहीं कर पाए थे जिसकी महत्वाकांक्षा हर नेता को होती है.

पार्टी की कमान थमाने के साथ-साथ उन्होंने यह दायित्व भी चिराग को सौंपा था. बिहार की राजनीति को गंभीरता से लेते हुए नवंबर, 2019 में लोक जनशक्ति पार्टी ने एक सर्वे कराया.

सर्वे का सैंपल साइज़ महज़ 10 हज़ार था लेकिन उससे चिराग और उनकी टीम को एक आइडिया लगा कि बिहार की जनता क्या चाहती है. उस सर्वे में शामिल क़रीब 70 प्रतिशत लोगों ने नीतीश कुमार को लेकर नाराज़गी ज़ाहिर की थी.

इस सर्वे के आकलन के बाद चिराग ने यह भांप लिया कि बिहार की राजनीति में स्पेस है जिसको भरने की कोशिश होनी चाहिए और उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष स्तर के लोगों तक यह फ़ीडबैक पहुँचाया कि बिहार में नीतीश कुमार को लेकर भारी नाराज़गी है.

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में रहते हुए चिराग पासवान की टीम ने यह रणनीति बनाई कि नीतीश कुमार के ख़िलाफ़ आक्रोश को काउंटर करने के लिए उनके ख़िलाफ़ सवाल पूछे जाने चाहिए.

फ़रवरी आते-आते उन्होंने बिहार फ़र्स्ट, बिहारी फ़र्स्ट का कॉन्सेप्ट तैयार कर लिया. जिसमें बिहार के आम लोगों की ज़रूरतों को देखते हुए कई पहलूओं को शामिल किया गया.

बिहार: चिराग पासवान ने उड़ा दी नीतीश खेमे की नींद, तीन दिन तक कराया था इंतज़ार

प्रशांत किशोर से मुलाक़ात

चिराग़ इस डॉक्यूमेंट को लेकर कितने गंभीर थे, इसका अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि उन्होंने इसकी प्रति को समाज के विभिन्न तबके के हज़ारों लोगों को पढ़वाया और उनकी राय को जोड़ते हुए इसे सार्वजनिक किया गया.

चिराग़ ने इसके बाद नीतीश कुमार के सात निश्चय और दूसरे मुद्दों पर सवाल पूछना शुरू किया. उन्हें लगा कि नीतीश कुमार की तरफ़ से उनके सवालों के जवाब आएँगे लेकिन यह नहीं हुआ.

इन सब मुद्दों पर बात करने के लिए चिराग पासवान ने नीतीश कुमार से फ़रवरी, 2020 में वक़्त माँगा. तीन दिन तक वे पटना में इंतज़ार करते रहे लेकिन नीतीश कुमार के दफ़्तर से उन्हें मिलने का वक़्त नहीं मिला.

अभी बिहार चुनाव के दौरान चिराग की रणनीति के पीछे प्रशांत किशोर का दिमाग़ होने की बता कहने वाले लोगों की भी कमी नहीं है. लेकिन, यह जानना दिलचस्प है कि फ़रवरी, 2020 में नीतीश कुमार से समय नहीं मिलने के बाद चिराग पासवान की टीम आगे की रणनीति के लिए प्रशांत किशोर से भी मिली थी.

चिराग पासवान की टीम के एक सदस्य के मुताबिक़, उस बैठक में प्रशांत किशोर ने हमारे आइडिया में बहुत दिलचस्पी नहीं दिखाई थी. अगर वे साथ आ जाते तो हमारी स्थिति और भी बेहतर होती क्योंकि उनके पास एक पूरी टीम है जो इस काम को आसानी से मैनेज कर सकती थी.

यहाँ यह भी देखना होगा कि प्रशांत किशोर ने बिहार की बात का एलान मार्च, 2020 में किया था, जिससे एक महीना पहले चिराग बिहार फ़र्स्ट, बिहारी फ़र्स्ट का विजन जारी कर चुके थे.

बिहार: चिराग पासवान ने उड़ा दी नीतीश खेमे की नींद, तीन दिन तक कराया था इंतज़ार

नीतीश और पासवान में तल्खी

इस बीच में लॉकडाउन के चलते बिहार में नीतीश कुमार के तौर-तरीक़ों की खासी आलोचना हुई और उनके प्रति नाराज़गी बढ़ी.

एक और बात ये हुई कि तत्कालीन खाद्य आपूर्ति मंत्री के तौर पर रामविलास पासवान और बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश कुमार के बीच तल्खियाँ बढ़ गईं. लॉकडाउन के दौरान आम लोगों को मुफ़्त में अनाज वितरित करने के मुद्दे पर दोनों के बीच सहमति नहीं बन पा रही थी.

लेकिन अगस्त, 2020 तक चिराग अलग रास्ता ले लेंगे यह तय नहीं हो पाया था. इसी दौरान किसी इंटरव्यू में उनसे पूछ लिया गया कि बिहार का अग़ला मुख्यमंत्री कौन होगा, तो उन्होंने कहा कि बीजेपी जिसे बनाएगी, वे उनके साथ हैं.

इन बयानों से भी यह झलकने लगा था कि चिराग़ पासवान अपनी राह अलग लेने वाले हैं, वैसे भी उनकी पार्टी ने बिहार में कभी जनता दल यूनाइडेट के साथ चुनाव नहीं लड़ा था.

इसके अलावा चिराग की अपनी पार्टी का विस्तार करने की महत्वाकांक्षा ने भी जन्म ले लिया और उन्हें लगा कि उनके पास खोने को कुछ भी नहीं है. आख़िर बिहार की 2015 की विधानसभा चुनाव में उनके महज़ दो विधायक ही चुनाव जीतने में कामयाब हुए थे.

इस दौरान बिहार में एनडीए की रूपरेखा की एक मीटिंग में बिहार बीजेपी के एक प्रभावी नेता ने ये कहा कि चिराग पासवान की पार्टी के गठबंधन में शामिल होने से 20 सीटें ज़्यादा आएंगी लेकिन उनके बिना भी 160 से ज़्यादा सीटें आ जाएंगी. चिराग को यहां भी लगा कि गठबंधन के साथ रहने पर उनकी उतनी अहमियत नहीं रहेगी जितनी अकेले जाने से हो सकती है.

बिहार: चिराग पासवान ने उड़ा दी नीतीश खेमे की नींद, तीन दिन तक कराया था इंतज़ार

अकेले चुनाव लड़ने का फैसला

सीटों के बँटवारे की चर्चाओं के बीच तीन अक्टूबर को चिराग पासवान ने बिहार में अकेले चुनाव लड़ने का एलान कर दिया.

बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व की तरफ़ से कभी उन्हें यह नहीं कहा गया कि वे चुनाव में अकेले ना लड़ें. वे लगातार बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बने रहने की बात करते रहे.

बिहार के पहले चरण के चुनाव के लिए उम्मीदवारों के नामांकन की अंतिम तारीख़ 12 अक्टूबर थी, आठ अक्टूबर को राम विलास पासवान का निधन हो गया, नौ को उनका अंतिम संस्कार करने के बाद चिराग ने आख़िरी 48 घटों में उम्मीदवारों के नाम फाइनल किए. वो दुख के इन पलों में रणनीतिक तौर पर नहीं डगमगाए.

इसमें दिनारा से राजेंद्र सिंह (बीजेपी के वरिष्ठ नेता और संगठन मंत्री रहे), पालीगंज से बीजेपी की पूर्व विधायक रहीं उषा विद्यार्थी और सासाराम से रामेश्वर चौरसिया जैसे बीजेपी के बड़े नेताओं को टिकट दिया गया, जिससे यह संदेश भी लोगों तक गया है कि एलजेपी बीजेपी के साथ मिलकर जनता दल यूनाइटेड को साइडलाइन करने जा रही है.

ऐसी ही एक सीट शेखपुरा की बरबीघा भी है, जहां से महागठबंधन के उम्मीदवार कांग्रेस नेता गजानंद शाही हैं और उनकी स्थिति इस वजह से मज़बूत हो गई है क्योंकि चिराग़ पासवान ने पिछली विधानसभा सीट से बीजेपी उम्मीदवार डॉ. मधुकर को टिकट दे दिया. जिसके चलते जेडीयू उम्मीदवार सुदर्शन कुमार की मुश्किलें बढ़ गई हैं.

गजानंद शाही के मुताबिक इस बार महागठबंधन का वोट बैंक काफी एकजुट हो कर वोट कर रहा है, यही वजह है कि नीतीश कुमार की विदाई तय है.

इस पहलू पर राष्ट्रीय जनता दल के प्रवक्ता मनोज झा कहते हैं, "बिहार का चुनाव दुनिया का इकलौता ऐसा चुनाव होगा जहां एक पार्टी चार-चार गठबंधनों का हिस्सा है. बीजेपी ने खूबसूरत बिसात बिछाई है. 'प्रत्यक्ष' तौर पर नीतीश कुमार जी के साथ है वहीं, अप्रत्यक्ष गठबंधन चिराग पासवान की पार्टी के साथ है. इसके अलावा अदृश्य तौर पर ओवैसी जी के गठबंधन और पप्पू यादव के गठबंधन के साथ हैं."

जनता दल यूनाइटेड के प्रवक्ता प्रगति मेहता के मुताबिक़ भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने लगातार कहा कि बिहार में बीजेपी जेडीयू के साथ लड़ रही है, ख़ुद प्रधानमंत्री अपनी सभाओं में कह रहे हैं कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनेंगे. बीजेपी-जेडीयू गठबंधन को लेकर कोई उलझन नहीं है और लोक जनशक्ति पार्टी की स्थिति वोट कटवा जैसी पार्टी से ज़्यादा नहीं है.

चिराग की बढ़ती लोकप्रियता

दरभंगा के बेनीपुर के एक युवा के मुताबिक़ नीतीश कुमार को चिराग़ पासवान के चलते नुक़सान हो रहा है. वहीं, हाजीपुर में रामविलास पासवान के समर्थक का कहना है कि चिराग पासवान को एनडीए के साथ रहना चाहिए था.

वहीं, सोनपुर के डाक बंगला मैदान में तेजस्वी यादव को सुनने आए एक युवा ने कहा कि चिराग को तेजस्वी के साथ आ जाना चाहिए.

लेकिन, चिराग की मौजूदा रणनीति इसलिए ज़्यादा मुफ़ीद दिख रही है क्योंकि अगर वे कम से कम 15-20 सीट ले आते हैं तो उनके बिना कोई सरकार नहीं बन पाएगी. लेकिन, चिराग इन दिनों इस बात पर ज़्यादा तरजीह दे रहे हैं कि उनका कौन-सा उम्मीदवार नीतीश कुमार के लिए मुसीबत का सबब बन रहा है.

इस लड़ाई में उनका एक फ़ायदा तो यह हुआ है कि बिहार फ़र्स्ट की बात कह कर वे बिहार के युवाओं के बीच जगह बनाने में कामयाब हुए हैं, यही वजह है कि उनकी सभाओं में ठीक-ठाक भीड़ आ रही है.

इतना ही नहीं उन्होंने एक झटके में 143 विधानसभा सीटों पर पार्टी का ढाँचा, संगठन और उम्मीदवार खड़े कर लिये हैं. अब उनकी नज़र विधानसभा सीटों से ज़्यादा वोट प्रतिशत बढ़ाने की है, इसमें वो कामयाब होते दिख रहे हैं.

दरअसल, चिराग जिस रणनीति के ज़रिए मैदान में उतरे हैं, उससे उनका अपना और बीजेपी का फ़ायदा तो दिख रहा है लेकिन, जेडीयू का नुक़सान तय है. यही वजह है कि जब तीन अक्टूबर को उन्होंने अलग चुनाव लड़ने की घोषणा की तो नीतीश कैंप की ओर से उन्हें एक दिन में दर्जनों बार फ़ोन किए गए.

लेकिन, तेजस्वी यादव की सभा में उमड़ती भीड़ ने बीजेपी को आशंकित किया है कि कहीं चिराग के चलते गठबंधन का इतना नुक़सान ना हो जाए जिससे सरकार के गठन में ही मुश्किलें आ जाएं. ऐसी सूरत में भी चिराग पासवान अपनी अहमियत साबित कर देंगे कि उनके पास एक ट्रांसफर होने लायक वोटबैंक है.

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English summary
Bihar assembly elections 2020: Chirag Paswan blew Nitish camp, waited for three days
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