मोदी कैबिनेट में शामिल हुए अश्विनी चौबे, जानिए उनका राजनीतिक सफर
आइए जानते हैं अश्विनी चौबे के राजनीतिक जीवन के बारे में कुछ खास बातें....
पटना। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंत्रिमंडल का विस्तार करते हुए कैबिनेट में बिहार के नेता अश्विनी चौबे को भी जगह दी है, जो बक्सर से लोकसभा सांसद हैं। वे बिहार सरकार में पूर्व स्वास्थ्य मंत्री भी रह चुके हैं। आइए जानते हैं इनके राजनीतिक जीवन के बारे में कुछ खास बातें...
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जेपी आंदोलन से राजनीति की शुरुआत
वर्ष 1970 में जब जेपी आंदोलन चल रहा था तब अश्विनी चौबे ने अपनी सक्रिय भूमिका निभाई थी और आपातकालीन स्थिति में गिरफ्तार हो कर जेल भी गये थे। जे पी आंदोलन में जेल से बाहर निकलने के बाद उन्होंने राजनीति में अपनी धमाकेदार एंट्री की और उनके द्वारा किए गए कुछ राजनीतिक कारनामों को जनता अब तक भूल नहीं है। सबसे पहले इन्होंने ही शौचालय बनाने के लिए लोगों को जागरूक किया था और 'घर घर में हो शौचालय का निर्माण, तभी होगा लाडली बिटिया का कन्यादान' का नारा दिया था।
केदारनाथ त्रासदी पर किताब
महादलित इलाकों में 11 हजार शौचालय बनाने में भी लोगों को आर्थिक मदद की थी। अश्विनी चौबे वर्ष 2014 में हुए आम चुनाव में 16वीं लोकसभा के लिए चुने गए थे और उर्जा पर संसद की प्राक्क्लन एवं स्थायी समिति के सदस्य हैं, साथ ही वह केंद्रीय रेशम बोर्ड के सदस्य हैं। वर्ष 2013 में केदारनाथ में आई भयानक त्रासदी में उन्होंने पूरे परिवार के साथ बाढ़ का सामना किया था और पीड़ित लोगों की मदद की थी। साथ ही इस भयानक त्रासदी पर एक किताब भी लिखा था जिसका नाम 'केदारनाथ त्रासदी' आया था जो काफी चर्चित रहा।
भागलपुर निवासी हैं अश्विनी चौबे
अश्विनी चौबे बिहार के भागलपुर के दरियापुर के रहने वाले हैं जो प्राणिविज्ञान में बीएससी (ऑनर्स) पढ़ाई पूरी की है तथा योग में विशेष रुचि भी रखते हैं। लगातार वह बिहार विधानसभा के पांचवी बार सदस्य रहे। वर्ष 1995 से 2014 तक बिहार विधानसभा के सदस्य रहने के बाद वह लोकसभा चुनाव लड़े जहां जीत हासिल की। फिलहाल वह बक्सर से लोकसभा सांसद है। अश्विनी चौबे बिहार सरकार में कई महत्वपूर्ण विभाग में बतौर मंत्री के तौर पर अपना योगदान दे चुके हैं। 8 साल तक बिहार सरकार के मंत्री रहने वाले अश्विनी चौबे स्वास्थ्य, शहरी विकास और जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी सहित अहम विभागों का सफल नेतृत्व किया है।
आप अब आपको बताते हैं अश्विनी चौबे के संघर्ष की कहानी। सबसे पहले पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने अपना राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। वर्ष 1974 से 1987 तक वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे। तो इससे पहले भी वह छात्र राजनीति में सक्रिय थे तथा 1967 - 68 में बिहार सरकार के खिलाफ हुए छात्र आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था।
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