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पांच महीने बाद होने जा रहे बिहार के चुनाव में मुद्दा बनेंगे 35 लाख प्रवासी मजदूर

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पांच महीने बाद होने जा रहे बिहार के चुनाव में मुद्दा बनेंगे 35 लाख प्रवासी मजदूर

'रिवर्स माइग्रेशन’ (अन्य राज्यों से बिहार लौट रहे मजदूर) बिहार की राजनीति के लिए एक युगांतकारी घटना है। 1 मई से अभी तक करीब 12 लाख मजदूर बिहार लौट चुके हैं। अगले 10 दिनों में करीब 20 लाख मजदूर बिहार लौटने वाले हैं। लौकडाउन -1 के दौरान पैदल और बसों से करीब एक लाख प्रवासी मजदूर पहले ही अपने गांव लौट चुके हैं। बिहार के मंत्री संजय झा के मुताबिक बिहार के 37 लाख लोग दूसरे राज्यों में काम करते हैं। अगर इनमें से 35 लाख श्रमिक भी बिहार लौटते हैं तो इनकी मौजूदगी बिहार की राजनीति को एक नये मुकाम पर ले जाएगी। हालांकि रिवर्स माइग्रेशन एक सामाजिक-आर्थिक मुद्दा है लेकिन उससे अधिक यह एक राजनीतिक मुद्दा है। पांच महीने बाद जब बिहार विधानसभा चुनाव होगा तो मजदूरों का यह मुद्दा जीत-हार का सबसे बड़ा कारण बनेगा। इसलिए बिहार का सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों ही इस विशाल संख्याबल को साधने में जुट गया है। मुख्यमंत्री नतीश कुमार खुद मजदूरों की सुविधाओं और उनके स्वास्थ्य का आंकलन कर हैं। मजदूरों का मुद्दा कहीं हाथ से फिसल न जाए इसलिए नीतीश ने नाराज भाजपा को खुश करने की पहल की है। दूसरी तरफ राजद के तेजस्वी यादव कोरोना संकट और प्रवासी मजदूरों के मुद्दे पर नीतीश सरकार को फेल बता रहे हैं। तेजस्वी का कहना है कि नीतीश तो प्रवासी मजदूरों को समस्या समझ कर बिहार लाना ही नहीं चाहते थे। वो तो राजद ने दबाव बनाया तब बिहार के लोग अपने घर लौट सके। उपेन्द्र कुशवाहा तो लॉकडाउन के बीच ही मजदूरों और क्वारेंटाइन सेंटरों की समस्या को लेकर धरना पर बैठ गये।

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नीतीश की रणनीति

नीतीश की रणनीति

नीतीश कुमार लॉकडाउन के शुरू में प्रवासी मजदूरों को बिहार नहीं बुलाना चाहते थे। लेकिन जब बाहर काम करने वाले लाखों मजदूर बिहार आ गये तो उन्होंने इस मौके को अवसर में बदलने का मन बना लिया। उनके लिए क्वारेंटाइन सेंटर बनाये। भोजन और इलाज की व्यवस्था की। मजदूरों का सुख- दुख जानने के लिए नीतीश कुमार अब उनसे बात भी कर रहे हैं। शुक्रवार को मुख्यमंत्री ने बिहार के दस क्वारेंटाइन सेंटर के मजदूरों से वीडियो क्रांफ्रेंसिग के जरिये बात की। तीन बाद फिर उन्होंने सोमवार को कुछ क्वारेंटाइ सेंटर का डिजिटल मुआयना किया। इस दौरान उन्होंने जमुई सेंटर के एक मजदूर से बात की। यह बातचीत बिहार के नये सामाजिक-आर्थिक -राजनीतिक परिदृश्य का एक संकेत है। इस मजदूर ने बताया कि वह अपने घर लौट कर बेहद खुश है। वह 25 साल से कोलकाता में काम करता था। लेकिन जब कोरोना संकट आया तो कोलकाता में किसी ने उसकी सुध न ली। इस बुरे वक्त में अपना बिहार ही काम आया। नीतीश ने जब इस मजदूर से दिक्कतों के बारे में पूछा तो उसने रोजगार देने की मांग रख दी। तब नीतीश ने कहा, अब यहीं रहिए, यहां बहुत काम है। सबको योग्यता और क्षमता के आधार काम मिलेगा। अब न रोजी की समस्या होगा न रोटी की।

50 लाख मजदूरों को मिलेगा काम !

50 लाख मजदूरों को मिलेगा काम !

इस बीच बिहार सरकार ने 50 लाख मजदूरों के लिए रोजगार सृजन का लक्ष्य निर्धारित किया है। इससे करीब 35 लाख प्रवासी मजदूरों और यहां पहले से मौजूद लोगों को काम करने का मौका मिलेगा। लॉकडाउन के दौरान अभी तक 2 करोड़ 17 लाख मानव दिवस का सृजन किया गया है। 3 लाख 91 हजार योजनाएं शुरू की गयीं हैं। बिहार में कितने तरह के काम हैं और इनकी कितनी संख्या है, इसकी जानकारी उद्योग विभाग के पोर्टल पर दी जाएगी। अगर नीतीश ने मजदूरों को बिहार में ही कमाने-खाने का मौका मुहैया करा दिया तो उनकी कुर्सी और कई सालों के लिए सलामत हो जाएगी। लेकिन यह काम आसान नहीं है। नीतीश को बहुत मेहनत करनी होगी।

भाजपा से तालमेल

भाजपा से तालमेल

बिहार भाजपा के अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल ने इस महीने के शुरू में प्रवासी मजदूरों के मसले पर नीतीश सरकार की आलोचना की थी। अपने फेसबुक पोस्ट में डॉ. जायसवाल ने कहा था कि बिहार सरकार के अधिकारी मजदूरों को वापस लाने में मुस्तैदी नहीं दिखा रहे। राज्य सरकार के रवैये से नाराज लोग सोशल मीडिया पर नाखुशी जाहिर कर रहे हैं। इस मामले में बिहार सरकार को योगी सरकार से सीख लेनी चाहिए। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की इस टिप्पणी से जदयू के नेता भड़क गये। जदयू ने कहा कि कोरोना संकट से निबटने में बिहार के सीएम ने यूपी और पंजाब के सीए से बेहतर काम किये हैं। फिर तो भाजपा-जदयू में आरोप प्रत्यारोप शुरू हो गया। दोनों सहयोगी दलों के झगड़े में राजद भी मजे लेने लगा। राजद ने कहा कि नीतीश को भाजपा अध्यक्ष के सवालों का जवाब देना चाहिए। नीतीश को महसूस हुआ कि भाजपा से झगड़े में मजदूरों का हाथ आया मौका कहीं निकल न जाए, इसलिए उन्होंने भाजपा को खुश करने के लिए एक बड़ा फैसला लिया। स्वास्थ्य विभाग भाजपा कोटे के मंत्री मंगल पांडेय के पास है। इस विभाग के प्रधानसचिव संजय कुमार की मंत्री मंगल पांडेय से बिल्कुल नहीं पटती थी। संजय कुमार नीतीश के प्रिय अफसर माने जाते हैं। कोरोना संकट के समय भी स्वास्थ्य मंत्री और प्रधान सचिव में तनातनी जारी रही। भाजपा कोटे के मंत्री परेशान थे। नीतीश ने 20 मई को स्वास्थ्य् विभाग के प्रधान सचिन का तबादला कर भाजपा की शिकायत दूर कर दी। कोरोना महासंकट के बीच नीतीश का यह फैसला चर्चा का विषय है।

तेजस्वी और कुशवाहा की चाल

तेजस्वी और कुशवाहा की चाल

प्रवासी मजदूरों के मुद्दे को राजद भी अपने हक में इस्तेमाल करना चाहता है। बिहार लौट रहे मजदूरों को राजद ने अब अपनी पार्टी से जोडने का फैसला किया है। इसके लिए राजद के नेताओं को जिलों और गांवों में सक्रिय कर दिया गया है। अगर राजद 35 लाख में से आधे मजदूरों को भी अपना सदस्य बना लेगा तो वह चुनावी राजनीति में कोई भी कमाल कर सकता है। राजद के इस सधी हुई चाल ने नीतीश कुमार की चिंता बढ़ा दी है। इतना ही नहीं तेजस्वी नीतीश को घेरने के लिए उनके ही नारे को इस्तेमाल कर रहे हैं। लॉकडाउन-1 के समय जब योगी सरकार ने मजदूरों और छात्रों को वापस लाने के लिए हजारों बस चलाने का निर्णय लिया था तब नीतीश ने इसका विरोध किया था। तब नीतीश ने कहा था, जो जहां हैं, वहीं रहें। लॉकडाउन के बीच सोशल डिस्टेंसिंग को तोड़कर मजदूरों को लाये जाने से बिहार में समस्या बढ़ेगी अब तेजस्वी ने नीतीश के इस कथन को उनके खिलाफ हथियार बना लिया है। तेजस्वी, प्रवासी मजदूरों को यह बता रहे हैं कि उनके दबाव के कारण ही नीतीश मजदूरों को बुलाने के लिए राजी हुए थे। दूसरी तरफ राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के प्रमुख उपेन्द्र कुशवाहा भी बहती गंगा में हाथ धोने से पीछे नहीं हैं। लॉकडाउन कानून को तोड़ कर उन्होंने बुधवार को पटना में प्रवासी मजदूरों की हिमायत में धरना दिया। कुशवाहा का आरोप है कि बिहार सरकार ने लाखों मजदूरों को क्वारेंटिन सेटर में रख तो लिया लेकिन उनकी हालत बेहद खराब है। मजदूरों की संख्या के हिसाब से एक तो क्वारेंटाइन सेंटर कम हैं और जो हैं वे बदइंताजमी का शिकार हैं। राज्य सरकार राहत मुहैया कराने में नाकाम है।

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English summary
35 lakh migrant laborers are an issue in Bihar elections to be held after five months
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