क्या राजद ने तेजप्रताप की पत्नी ऐश्वर्या का खोज लिया जवाब?
पटना। क्या बिहार चुनाव में लालू परिवार की आपसी लड़ाई के लिए नयी जमीन तैयार हो रही है? एक तरफ लालू के समधी चंद्रिका राय उनको हराने के लिए कमर कसे हुए हैं तो दूसरी तरफ चंद्रिका राय के बड़े भाई विधानचंद्र राय की पुत्री करिश्मा ने राजद की जीत के लिए झंडा उठा लिया है। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद राय के परिवार में अब दो विपरीत धाराएं बह रही हैं। एक भाई लालू के विरोध में हैं तो दूसरे भाई लालू के समर्थन में। चंद्रिका राय की पुत्री और लालू यादव की बहू ऐश्वर्या के भी विधानसभा चुनाव लड़ने की चर्चा है। तो क्या 2020 में ऐश्वर्या और करिश्मा का मुकाबला चुनावी राजनीति का केन्द्र बिन्दु होगा ? राजनीति में ऐसा बहुत बार हुआ है कि जब किसी स्थापित राजनीतिज्ञ को शिकस्त देने के लिए उसके सगे-संबंधी को मैदान में उतार दिया गया। लेकिन रिश्तों की चुनावी जंग में पैराशूट उम्मीदवारों की अक्सर हार हुई है।
ऐश्वर्या बनाम करिश्मा!
तेजप्रताप यादव का ऐश्वर्या से तलाक का मामला अभी कोर्ट में विचाराधीन है। ऐश्वर्या राय लालू परिवार पर मारपीट और प्रताड़ना का आरोप लगा चुकी हैं। ऐश्वर्या बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद राय की पोती हैं। क्या चुनाव को नजदीक देख कर लालू परिवार ऐश्वर्या के राजनीति असर से डर गया है ? क्या इसी डर की वजह से ही ऐश्वर्या की चचेरी बहन करिश्मा को राजद का नेता बनाया गया है ? अगर विधानसभा चुनाव में ऐश्वर्या, लालू परिवार के खिलाफ चुनावी शंखनाद करती हैं तो क्या चचेरी बहन करिश्मा से ही उनका जवाब दिया जाएगा ? पिछले साल अक्टूबर में जब ऐश्वर्या ने रोते हुए राबड़ी देवी का घर छोड़ा था उस समय पूरे देश में ये घटना चर्चा का विषय रही थी। मीडिया में यह प्रकरण छाया रहा जिससे ऐश्वर्या को व्यापक जनसहानुभूति मिली। अब जब विधानसभा चुनाव नजदीक आया लालू परिवार को ऐश्वर्या से राजनीतिक नुकसान की आशंका सताने लगी है। इस डर के निवारण के लिए ही आनन-फानन में एक महिला डेंटिस्ट (करिश्मा) को राजनीति के मैदान में उतारा गया है। करिश्मा भी पूर्व मुख्यमंत्री की पोती हैं। उनके पिता विधानचंद्र राय दारोगा प्रसाद राय के बड़े पुत्र हैं। लेकिन क्या करिश्मा दारोगा प्रसाद राय की राजनीति विरासत का प्रतिनिधित्व कर पाएंगी ? ये सवाल इस लिए क्यों कि ऐश्वर्या के पिता चंद्रिका राय ने 1980 में अपने पिता दारोगा प्रसाद राय की राजनीति विरासत संभाल ली थी। वे परसा से तीन बार विधायक चुने जा चुके हैं। क्या करिश्मा चंद्रिका राय या ऐश्वर्या राय को जवाब दे पाएंगी ?
जगजीवन राम की पुत्री बनाम पौत्री
जगजीवन राम भारत के सबसे बड़े दलित नेताओं में एक थे। वे भारत के उपप्रधानमंत्री भी रहे। उनकी उपलब्धियों की फेहरिस्त बहुत लंबी है। जगजीवन राम का राजनीतिक उत्तराधिकार उनकी पुत्री मीरा कुमार को मिला। जगजीवन राम के पुत्र सुरेश राम की पुत्री मेधावी कीर्ति ने मीरा कुमार से इस राजनीति विरासत को छीनने की कई बार कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हुईं। मेधावी कीर्ति ने राजनीति में आने के लिए कोई संघर्ष नहीं किया था। वे फुलटाइम पॉलिटिशियन भी नहीं थीं। उन्होंने सिर्फ जगजीवन राम के नाम पर राजनीति में पैर जमाने की कोशिश की जिसे जनता ने नकार दिया। मेधावी कीर्ति को पारिवारिक विवाद ने भी जगजीवन राम का वारिश नहीं बनने दिया। सुरेश राम ने अपने पिता की मर्जी के खिलाफ दिल्ली की कमल कुमारी से शादी की थी। बाद में सुरेश राम का कमल कुमारी से तलाक हो गया। सुरेश राम और कमल कुमारी की बेटी मेधावी कीर्ति को पारिवारिक सम्पत्ति के लिए केस मुकदमा लड़ना पड़ा। 1996 में मेधावी कीर्ति चुनाव लड़ने के लिए अपने दादा के चुनाव क्षेत्र सासाराम में आयीं थी। उन्होंने कांग्रेस जे (जगजीवन) के उम्मीदवार के रूप में चुनाव भी लड़ा था लेकिन करारी हार हुई थी। जनता ने मीरा कुमार में ही जगजीवन राम की छवि देखी थी। 2004 के लोकसभा चुनाव में मीरा कुमार को सासाराम में हराने के लिए मेधावी ने भाजपा उम्मीदवार का प्रचार किया था। इसके बावजूद मीरा कुमार को जीत मिली। 2014 के लोकसभा चुनाव में मायावती ने मेधावी को बसपा उम्मीदवार बना कर सासाराम में उतारा फिर भी वे जीत नहीं पायीं। मेधावी के पति आइएएस अधिकारी हैं। इतना कुछ भी होते हुए सासाराम की जनता ने उन्हें स्वीकार नहीं किया। यानी चुनावी राजनीति में जीत केवल रिश्तों के आधार पर नहीं मिलती।
पिता की विरासत के लिए जब दो भाई टकराये
टेकलाल महतो झारखंड के लोकप्रिय नेता थे। उनका मजबूत जनाधार था। झारखंड मुक्ति मोर्चा के वे बड़े नेता था। वे मांडू विधानसभा क्षेत्र से कई बार विधायक चुने गये। गिरिडीह से सांसद भी चुने गये। जब टेकलाल महतो की मौत हो गयी तो उनके बड़े बेटे राम प्रकाश भाई पटेल और छोटे भाई जय प्रकाश भाई पटल के बीच राजनीतिक विरासत संभालने की जंग शुरू हो गयी। उत्तराधिकार की इस लड़ाई में जनता ने छोटे भाई जयप्रकाश भाई पटेल का साथ दिया। जयप्रकाश मांडू से विधायक चुने जाते रहे। जब कि बड़े भाई राम प्रकाश को चुनावी अखाड़े में हार मिलती रही। 2015 के चुनाव में जयप्रकाश झामुमो के टिकट पर मांडू से विधायक चुने गये थे। दिसम्बर 2019 के विधानसभा चुनाव में झामुमो ने मांडू विधानसभा से जयप्रकाश का टिकट काट कर उनके बड़े भाई रामप्रकाश को उम्मीदवार बना दिया था। तब जयप्रकाश ने झामुमो छोड़ कर भाजपा का दामन थाम लिया। चुनाव हुआ तो जनता ने एक बाऱ फिर जयप्रकाश को अपना समर्थन दिया। यानी किसी नेता की विरासत कौन संभालेगा ? इस मामले में जनता की अपनी अलग सोच होती है। वह अपने हिसाब से फैसला सुनाती है।
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