'क्या करते भूखे मरते', 140 KM पैदल चलकर वापस घर लौटी महिला श्रमिक का दर्द
भोपाल। कोरोना वायरस के कारण देशभर में जारी लॉकडाउन का सबसे बुरा असर प्रवासी मजदूरों पर पड़ा है। प्रवासी मजूदरों की अनगिनत ऐसी कहानियां हैं जो दिल को झकझोर देने वाली हैं। ऐसी ही एक कहानी मध्य प्रदेश के पन्ना अपने गांव लौटी श्यामबाई की है। लॉकडाउन की वजह से काम बंद हुआ और बेटे की भी नौकरी चली गई। इसके बाद श्यामबाई यूपी के कानपुर से वापस अपने गांव पन्ना के कोटा गुंजापुर लौट आईं। इस दौरान उन्हें करीब 140 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा। हालांकि, घर पहुंचने के बाद भी उनकी दुश्वारियां कम नहीं हुईं।
पति की आठ साल पहले हो गई थी मौत
पन्ना के गुंजापुर गांव में रहने वाली श्यामबाई के पति की आठ साल पहले मौत हो गई थी। इसके बाद परिवार की जिम्मेदारी उसपर आ गई। श्यामबाई के पांच बच्चे हैं। अपना और बच्चों का भरण पोषण करने के लिए श्यामबाई अपने 18 वर्षीय बेटे लोकेंद्र के साथ काम की तलाश में कानपुर गई। यहां श्यामबाई निर्माण कार्य करने लगी। इसी बीच कोरोना वायरस की वजह से 25 मार्च को देशभर में लॉकडाउन लागू हो गया। श्यामबाई का भी काम ठप हो गया। मालिक ने उसे और उसके बेटे सहित कुल पांच लोगों को आठ हजार रुपए लेकर घर वापस लौटने के लिए कहा। मालिक ने बाकी मजदूरी का 20 हजार रुपए रोक लिया।
140 किलोमीटर पैदल चलकर लौटी घर
मजबूरी में श्यामबाई अपने बेटे और तीन अन्य लोगों के साथ घर के लिए पैदल ही निकल पड़ी। रास्ते में उन्होंने एक ट्रक ड्राइवर से मदद मांगी, जिसने उन लोगों को 200 किलोमीटर के लिए 350 रुपए प्रति व्यक्ति लिए। इसके बाद सभी फिर पैदल चलते रहे। रास्ते में एक वैन ड्राइवर ने उनकी मदद की। इसके बाद सतना में बस ड्राइवर ने उनकी पन्ना पहुंचाया। इस दौरान वह करीब 140 किलोमीटर पैदल चली। यहां पहुंचने के बाद सभी का टेस्ट हुआ और ग्राम पंचायत भवन में बने सभी को 14 दिन के लिए क्वारंटाइन कर दिया गया।
'क्या करते भूखे मरते? तो घर से मंगाकर खाते थे।'
श्यामबाई के मुतबिक, उन्हें क्वारंटाइन सेंटर में खाना तक नहीं दिया जा रहा था। इसके बाद उन्होंने घर से खाना मंगवाकर खाया। श्यामबाई ने कहा, 'क्या करते भूखे मरते? तो घर से मंगाकर खाते थे।' उन्होंने बताया कि उन्हें कोई सरकारी सहायता नहीं मिली। श्यामबाई ने बताया कि बेटे लोकेंद्र ने परिवार के लिए कुछ नकदी कमाने के लिए अजीब नौकरियां कीं, क्योंकि कानपुर में कमाई गई 20,000 रुपए मजदूरी अभी तक उनके बैंक खातों में नहीं पहुंची है। श्यामबाई ने कहा, " यहां भी कोई काम या मदद नहीं मिल रही है। हमें नहीं पता कि भविष्य में क्या करेंगे।"
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