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Navratri: नवरात्रि के पहले दिन श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़, पढ़ें मैहर मां शारदा का इतिहास और महिमा

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सतना, 26 सितंबर। देशभर में सोमवार से शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो रही है। मां दुर्गा के 51 शक्तिपीठों में से एक मध्य प्रदेश के सतना जिले में भी स्थित है। मैहर के त्रिकूट पर्वत पर बसे इस शक्तिपीठ में हर नवरात्रि के अवसर पर मेला लगता है। इस दौरान लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। आज भी सुबह 3 बजे मां शारदा की आरती हुई, इसमें लाखों श्रद्धालु पहुंचे। जानिए मैहर में बसे मां शारदा के मंदिर का पूरा इतिहास।

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Navratri: नवरात्रि के पहले दिन श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़, पढ़ें मैहर मां शारदा का इतिहास और महिमा
हर साल शारदीय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि में मेला लगता

हर साल शारदीय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि में मेला लगता

मैहर में मां शारदा का मंदिर है, यहां प्रतिवर्ष चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि में मेला लगता है। मेले में देश-विदेश कोने कोने से मां के भक्त अपनी इच्छाएं लेकर मां शारदा के दरबार में हाजिरी लगाते हैं। मां शारदा उन देवियों में से हैं, जिन्होंने कलयुग में भी अपने भक्त आल्हा की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे अमरता का आशीर्वाद दिया था। माना जाता है कि नवरात्रि में आज भी देवी मां की पहली पूजा आल्हा उदल ही करते हैं।

कोविड-19 के कारण यहां पिछले 2 वर्षों से पूर्ण तरीके से नहीं लग सके थे, लेकिन इस बार सभी भक्तों को मां के दिव्य दर्शन करने को मिलेंगे।

त्रिकूट पर्वत की श्रेणियों में बसा है मंदिर

त्रिकूट पर्वत की श्रेणियों में बसा है मंदिर

आदि शक्ति मां शारदा देवी का मंदिर मैहर नगर के पास विंध्य पर्वत श्रेणियों के बीच त्रिकूट पर्वत पर स्थित है। मां भवानी के 51 शक्तिपीठों में से 1 इस मंदिर में मान्यता है कि यहां मां शारदा की पहली पूजा आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी। विंध्य के त्रिकूट पर्वत का नाम प्राचीन धर्म ग्रंथों में भी मिलता है। इसका उल्लेख भारत के अन्य पर्वतों के साथ ही पुराणों में भी कई बार जिक्र हुआ है।

इस कारण बना शक्तिपीठ

इस कारण बना शक्तिपीठ

मां शारदा के इस मंदिर तक जाने के लिए श्रद्धालुओं को 1063 सीढ़ियां चढ़कर जाना पड़ता है, हर दिन यहां लाखों श्रद्धालु आते हैं। मंदिर के बारे माना जाता है कि दक्ष प्रजापति की पुत्री सती भगवान शिव से शादी करना चाहती थी। लेकिन राजा दक्ष को यह इच्छा मंजूर नहीं थी, बावजूद इसके माता सती ने जिद कर भगवान शिव से शादी के बंधनों में बस गई थी।

माता सती ने या था शरीर त्याग

माता सती ने या था शरीर त्याग

माता सती और भगवान शिव के बंधन में बंधन के बाद राजा दक्ष ने एक यज्ञ करवाया, जिसमें उन्होंने ब्रह्मा, विष्णु, और इंद्र समेत अन्य देवी-देवताओं को निमंत्रण दिया। भगवान शिव को निमंत्रण नहीं दिया गया, यज्ञ स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को मंत्रण ना देने का कारण पूछा, इस पर राजा दक्ष ने भगवान शंकर को अपशब्द कह दिए। इस अपमान से दुखी होकर माता सती ने यज्ञ अग्नि कुंड में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए।

माई का हार बन गया मैहर

माई का हार बन गया मैहर

सती के देह त्याग के बारे में भगवान शंकर को पता चलते ही क्रोध में आकर उनका तीसरा नेत्र खुल गया। मान्यता है कि ब्रह्मांड की भलाई के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया। जहां भी सती के अंग गिरे वहां शक्तिपीठों का निर्माण हुआ, माना जाता है कि सतना जिले के पास माता सती का हार गिरा था, जिस कारण जगह का नाम 'माई का हार' पड़ गया। लेकिन अपभ्रंश होकर इसका नाम मैहर हो गया, इसी कारण इसे भी शक्तिपीठ माना गया।

आल्हा उदल ने ढूंढ निकाला मंदिर

आल्हा उदल ने ढूंढ निकाला मंदिर

त्रिकूट पर्वत की चोटी पर स्थित यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बन चुका है। देश-विदेश कोने कोने से पर्यटक यहां सिर्फ मां की एक झलक पाने के लिए पहुंचते हैं। मंदिर का ऐतिहासिक महत्व भी है। मान्यता है कि आल्हा उदल के नायक दो सगे भाई आल्हा और उदल मां शारदा के अनन्य उपासक थे। आल्हा-उदल ने ही सबसे पहले जंगल के बीच मां शारदा देवी के इस मंदिर ढूंढ निकाला थे।

मां ने दे दिया अमरता का वरदान

मां ने दे दिया अमरता का वरदान

मंदिर की खोज के बाद आल्हा उदल ने इस मंदिर में 12 वर्षों तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया। भक्त की तपस्या से खुश होकर मां ने आल्हा को अमरता का वरदान दे दिया। मां शारदा के मंदिर प्रांगण में फूलमती माता का मंदिर आल्हा की कुल देवी का है। आस्था है कि हर दिन ब्रह्म मुहुर्त में खुद आल्हा द्वारा मां की पूजा-अर्चना की जाती है।

आल्हा देव के अवशेष

आल्हा देव के अवशेष

मां के मंदिर की तलहटी में आज भी आल्हा देव के अवशेष हैं, उनकी खड़ाऊ और तलवार आम भक्तों के दर्शन के लिए रखी गई है। यहां पर्वत के नीचे आल्हा तालाब भी है। जिसे प्रशासन ने संरक्षित कर रखा है। सूचना बोर्ड में इस तालाब के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्त्व का जिक्र भी किया गया है, यहां आल्हा-उदल अखाड़ा भी है।

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English summary
Shardiya Navratri Devotees, History and Glory of Madhya Pradesh Maihar Maa Sharda
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