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धड़ाधड़ कट रहे जंगल, प्रदूषण और हजारों जिंदगियों पर संकट

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deforestation
भोपाल। एशिया के बड़े और घने जंगलों में शुमार रहने वाले मध्य प्रदेश में सिंगरौली जिले के 'महान जंगल' का अस्तित्व खत्म होने के कगार पर है। पेड़-पौधों से घना लगने वाला महान जंगल में धीरे-धीरे प्रदूषित ही नहीं हो रहा है। यही नहीं मंत्रालय की ओर से खनन के लिए कोयले ब्लॉक आवंटन के बाद तो स्थिति और भी बिगड़ रही है। पांच लाख घने जंगलों से अटा पड़ा जंगल में अब पेड़ धड़ा-धड़ कट रहे हैं।

तेजी से हो रहा खनन से वायुमंडल में फैले प्रदूषण ने आस-पास रहने वाले ग्रामीण समुदाय की की जीवन शैली को इतनी बुरी तरह प्रभावित कर दिया है। इसी को लेकर पर्यावरण पर काम कर रही अंतरराष्ट्रीय संस्था ग्रीन पीस के तहत महान संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने इसकी जानकारी राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक पहुंचा दी है। समिति ने मांग की है कि लगातार हो रहे वैधता की आड़ में अवैध खनन को रोका जाए। इसके लिए। समिति ने पुलिस दमन के बीच महान संघर्ष समिति ने मुख्यमंत्री से एस्सार का खनन लाइसेंस रद्द करने और ग्रामीणों के वनाधिकार की रक्षा करने की मांग की है।

हजारों लोगों की जिंदगियों पर भारी

सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि मुख्यमंत्री को तत्काल कम्पनी के खदान को रद्द करने के के लिए कदम उठाने की जरुरत है जिससे महान के प्राचीन जंगलों को लूट से बचाया जा सके। करीब 54 गांवों के 50 हजार से अधिक लोगों की जीविका को रौंदते हुए कम्पनी को खदान का लाइसेंस दिया गया है। इसी के मद्देनजर वमहान संघर्ष समिति ने मुख्यमंत्री से तत्काल इन गांवों में वनाधिकार कानून लागू करने की मांग की है।

छिन रही रोजी-रोटी

संस्था की ओर से एक रिपोर्ट प्रकाश में लाई गई है। रिपोर्ट के मुताबिक "पावर फॉर द पीपुल" नाम से एक रिपोर्ट के मुताबिक दो गांवों (अमिलिया और बुधेर) के 60 प्रतिशत लोगों के पास एक एकड़ से भी कम जमीन है। ग्रामीणों का आर्थिक स्रोत का आधार वनोपज ही है क्योंकि सिर्फ खेती से वे अपनी आर्थिक जरुरत पूरी नहीं कर पाते हैं। साथ ही 37 प्रतिशत लोगों के पास अपनी भूमी नहीं है, इनमें ज्यादातर वे गरीब लोग हैं जिन्हें सामुदायिक वनाधिकार नहीं दिया जा सका है।

'गिरफ्तारियां गलत'

इस अवैध खनन के खिलाफ आवाज उठा रहे है संस्था के पदाधिकारी व कार्यकर्ताओं को गत दिनों जबरन बिना कोई कारण बताए गिरफ्तार कर लिया गया जो गलत है। पिल्लई ने इस पर नाराजगी जताई।

- प्रिया पिल्लई, सीनियर कैंपेनर, ग्रीनपीस

एक ग्रामीण की जुबानी

हम पुलिस और प्रशासन के दबाव को झेल रहे हैं और हमारा अपराध बस इतना है कि हम लगातार अपने जंगल को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। किसी भी तरह के मुआवजा को लेने से इन्कार करने वाले गोंड ने कहा कि अब हमसे अपने जंगल का मुआवजा लेने को कहा जा रहा है लेकिन सच्चाई है कि हम जंगल से जितना लेते हैं, उसका मुआवजा देना नामुमकिन है। इसलिए राज्य सरकार को हमारे अधिकार सुनिश्चित करने होंगे। सरकार उधोगपतियों के हाथ की जागीर नहीं हो सकती।

-हरदयाल सिंह गोंड, ग्रामीण

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English summary
Protest against deforestation of Mahan Forest of Madhya Pradesh's district Singrauli.
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