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भोपाल गैस त्रासदी: महिलाओं में अनकहे दर्द की कराह!

By Ians Hindi
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भोपाल। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में स्थित यूनियन कार्बाइड संयंत्र के आसपास की बस्तियों में अब भी हादसे के जख्म बरकरार हैं, हर घर से मरीज के कराहने की आवाज आसानी से सुनी जा सकती है मगर यहां की महिलाएं उस दर्द को सह रही हैं, जिसे वे बयां तक नहीं कर सकती। भोपाल में अब से 30 वर्ष पहले दो-तीन दिसंबर 1984 की रात को यूनियन कार्बाइड संयंत्र से मिथाइल आइसो सायनाइड (मिक) गैस रिसी थी, इस गैस से हजारों लोग मौत की आगोश में समा गए थे। बीमारियों की वजह से मौत का सिलसिला तो अब भी जारी है।

Bhopal Gas Tragedy

सबसे ज्यादा मरीज कैंसर, ट्यूमर के

गैस पीड़ितों में सबसे ज्यादा मरीज आंख, गुर्दे, हृदय, कैंसर, ट्यूमर, त्वचा के हैं। केंद्र सरकार के अधीन आने वाले भोपाल स्मारक अस्पताल एवं अनुसंधान केंद्र के अलावा राज्य सरकार के छह अस्पतालों में आने वाले ज्यादातर मरीज इन्हीं रोगों से संबंधित होते हैं। इनमें महिलाओं की संख्या ज्यादा होती है।

गैस पीड़ितों की बस्ती में ऐसे घरों की कमी नहीं है जहां महिलाएं बीमारियों के साथ उस दर्द को झेल रही हैं जो उन्हें अपनों को मिली बीमारियों के चलते है। वे इस दर्द को बयां नहीं करती, इसे तो सिर्फ उनके चेहरे पर छाई उदासी से पढ़ा जा सकता है। वे आंसू भी अकेले में बहा देती हैं क्योंकि वे नहीं चाहती कि उनके इस दर्द का कोई भागीदार बने।

उजड़ गई खुशहाल दुनिया

जेपी नगर में रहने वाली हाजरा बी अब लगभग 60 वर्ष की हो गई हैं, मगर गैस हादसे की रात को याद कर रो पड़ती हैं। वह कहती हैं कि उनकी तो खुशहाल दुनिया ही उस रात उजड़ गई। तीन बच्चे हैं जो बीमारी का शिकार हैं, पति भी चल बसा, एक नातिन जो सात वर्ष की है, अपंग है। उन्हें सांस की बीमारी है और आंखों के ऑपरेशन के बाद भी साफ दिखाई नहीं देता।

वह बताती हैं कि उन्हें गैस हादसे ने वह दर्द दिया है, जिसकी याद कर उनकी रूह कांप जाती है, मगर किसी से कह नहीं सकती। अकेले में रो लेतीं हैं और उस घड़ी को कोसती हैं जब यूनियन कार्बाइड के संयंत्र से गैस रिसी थी।

गैस हादसे ने शीला देवी की जिंदगी को भी जख्मों से भर दिया। वह खुद सांस की रोगी हैं और उनकी एक बेटी ज्योति तो कई बीमारियों से जूझ रही है। वह बताती है कि 45 वर्ष की ज्योति का शरीर फूल जाता है और उसे खून की कमी है। वह अस्पतालों के चक्कर लगाती रहती हैं, मगर कोई सुधार नहीं हो रहा है। वह ज्योति की शादी करना चाहती थी, मगर गैस के चलते मिली बीमारियों से वे उसका घर नहीं बसा पाई।

जिंदगियां हुईं बेरंग

भोपाल ग्रुप फॉर इन्फार्मेशन एण्ड एक्शन की सदस्य रचना ढींगरा कहती हैं कि गैस के दुष्प्रभाव ने महिलाओं को बीमारियां दी हैं मगर उसके बावजूद वे अपनी जिम्मेदारी व जवाबदारी को निभाने में पीछे नहीं रहती हैं।

भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार का कहना है कि गैस के दुष्प्रभाव ने महिलाओं को ऐसे रोग दिए हैं, जिसने उनकी जिंदगी को बेरंग कर दिया है। महिलाओं को कैंसर, सांस, ट्यूमर जैसी घातक बीमारियां हैं और उन्हें वह इलाज नहीं मिल पा रहा है जिसकी उन्हें जरुरत है। वे मरीजों का वर्गीकरण न होने पर भी चिंता जताते हैं।

सालाना 90 करोड़ का खर्च

भोपाल गैस राहत व पुनर्वास विभाग के आयुक्त आर.ए. खंडेलवाल का कहना है कि राज्य सरकार हर वर्ष गैस पीड़ितों के उपचार पर 90 करोड़ रुपये खर्च करती है। हर वर्ग के बेहतर इलाज के लिए सरकार की ओर से प्रयास किए गए हैं। केंद्र सरकार के बीएमएचआरसी में तीन लाख 86 हजार गैस पीड़ितों के स्मार्ट कार्ड बनाए जा चुके हैं। राज्य सरकार के अस्पतालों का भी कंप्यूटराईजेशन किया जा चुका है, लिहाजा मरीजों को बिना परेशानी के इलाज मिल रहा है।

खंडेलवाल बताते हैं कि राज्य सरकार के गैस पीड़ितों के अस्पतालों में प्रतिदिन लगभग चार हजार मरीज आते हैं, उनका बेहतर इलाज मुहैया कराया जाता है। सामान्य और गंभीर मरीजों को उनकी जरूरत के मुताबिक सुविधाएं इन अस्पतालों में उपलब्ध है।

भोपाल गैस हादसे ने हजारों परिवारों के जीवन को मुसीबतों से भर दिया है और इन मुसीबतों का पहाड़ अगर किसी पर टूट है तो उनमें महिलाएं कहीं ज्यादा है।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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English summary
Hundreds of women in Bhopal are still facing the pain given by Gas Tragedy. Here is the painful story of women.
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