मध्य प्रदेश उपचुनाव 2020 : पूर्व MLA पारुल साहू कांग्रेस में शामिल, 10 दिन में 2 नेताओं ने छोड़ी BJP
भोपाल। मध्य प्रदेश उपचुनाव 2020 को लेकर राजनीतिक पार्टियों में शह-मात का खेल चल रहा है। कांग्रेस ने भाजपा को फिर झटका दिया है। महज दस दिन में ही दो बड़े नेताओं ने कमल का साथ छोड़कर कांग्रेस का हाथ थामा है। शुक्रवार को पूर्व विधायक पारुल साहू ने भी कांग्रेस ज्वाइन कर ली। इससे दस दिन पहले भाजपा नेता सतीश सिंह सिकरवार अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस में शामिल हुए थे।
फिर आमने-सामने हो सकते हैं पारुल-गोविंद सिंह
बता दें कि मध्य प्रदेश की 28 सीटों पर उपचुनाव होने हैं। प्रत्याशियों के नाम फिलहाल तय नहीं हुए हैं, मगर राजनीतिक के जानकारों के हवाले से खबर है कि मध्य प्रदेश उपचुनाव 2020 में सागर जिले की सुरखी विधानसभा सीट पर पूर्व विधायक पारुल साहू और शिवराज सिंह चौहान की सरकार में ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक परिवहन मंत्री गोविंद सिंह राजपूत एक बार फिर आमने-सामने हो सकते हैं।
जब पारुल ने गोविंद को हराया
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2013 में भी पारुल साहू और गोविंद सिंह राजपूत चुनाव मैदान में थे। फर्क बस इतना था कि तब पारुल भाजपा और गोविंद सिंह राजपूत कांग्रेस प्रत्याशी थे और अब अनुमान लगाया जा रहा है कि पारुल कांग्रेस और गोविंद सिंह भाजपा की टिकट पर एक-दूसरे सामने चुनाव लड़ सकते हैं। वर्ष 2013 के चुनाव में पारुल ने जीत दर्ज की थी।
एक दिन पहले की थी कमलनाथ से मुलाकात
बता दें कि पारुल साहू ने गुरुवार को मध्य प्रदेश कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष व पूर्व सीएम कमलनाथ से मुलाकात की थी। तभी यह अनुमान लगाया जाने लगा था कि पारुल किसी भी वक्त कांग्रेस में शामिल हो सकती हैं। शुक्रवार को पारुल ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया। कमलनाथ ने ग्वालियर जाने से पहले उनको कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में पार्टी की सदस्यता दिलाई।
पारुल साहू का राजनीतिक सफर
वर्ष 2020 में भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुईं पारुल साहू वर्ष 2013 में पहली बार विधायक बनी थीं। तब इन्हें 59 हजार 513 वोट मिले थे जबकि कांग्रेस प्रत्याशी गोविंद सिंह राजपूत 59 372 वोट प्राप्त कर सके थे। फिर मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2018 में पार्टी ने पारुल साहू का टिकट काट लिया था। उस समय यह चर्चा भी उड़ी कि पार्टी इन्हें लोकसभा चुनाव 2019 के मैदान में उतारना चाहती है, मगर फिर इन्हें लोकसभा चुनाव में भी टिकट नहीं मिला। तब से ही पारुल साहू कहीं ना कहीं भाजपा से नाराज चल रही थीं।
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