भोपाल में बंपर मतदान और कमलनाथ की कम सक्रियता के मायने?
भोपाल। मध्यप्रदेश में 12 मई को हुए 8 सीटों पर मतदान में नए-नए पहलू सामने आ रहे हैं। सबसे ज्यादा चर्चा भोपाल की है, जहां 62 वर्ष के इतिहास में सबसे ज्यादा मतदान हुआ। भोपाल में 65.69 प्रतिशत मतदान हुआ। जो 2014 में हुए चुनाव की तुलना में 7.58 प्रतिशत ज्यादा है। 2014 में भोपाल संसदीय क्षेत्र में 57.75 प्रतिशत वोट पड़े थे। इतने ज्यादा मतदान की उम्मीद किसी पार्टी को नहीं थी।
जो मतदाता अपने मतदान को लेकर बहुत सक्रिय नहीं रहते थे, वे भी मतदान के लिए आ गए। कुछ लोग इसे साध्वी फैक्टर बता रहे है, तो कुछ दिग्गी फैक्टर। मज़ेदार बात यह हुई कि अपने पक्ष में अधिकाधिक वोट डलवाने के फेर में खुद अपना वोट नहीं डाल पाए। दिग्विजय सिंह का नाम मतदाता सूची में राजगढ़ जिले में हैं, चुनाव के दिन वहां जाना उनके लिए संभव नहीं हुआ।
आरएसएस ने भोपाल में अपने प्रदेशभर के कार्यकर्ताओं को कई दिनों से बुला रखा था, जो चुनाव के पहले सक्रिय थे। मतदान के दो दिन पहले वे अपने-अपने क्षेत्रों में लौट गए और वहां से उन्होंने परिचितों को किसी मार्केटिंग कंपनी के कॉल सेंटर की तरह फोन कर-करके मतदान के लिए प्रेरित किया। आरएसएस के एक पदाधिकारी अनुसार नए मतदाताओं में साध्वी प्रज्ञा के प्रति विशेष उत्साह देखा गया और वे साध्वी प्रज्ञा को जीताने के लिए मतदान केन्द्रों तक गए। इससे भाजपा को काफी लाभ हुआ।
दिग्विजय सिंह ने अपने चुनाव क्षेत्र का महत्व समझते हुए पूरी शक्ति भोपाल में ही केन्द्रित रखी। उनके पक्ष में भोपाल के विधायक विशेष रूप से सक्रिय रहे। मंत्री आरिफ अकील विधायक आरिफ मसूद और पी.सी. शर्मा ने दिग्विजय के लिए मोर्चा संभाल रखा ता। दिग्विजय सिंह खुद अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में जाकर मतदान की स्थिति का जायजा लेते रहे। उन्हें विश्वास है कि भोपाल के उनके पुराने मतदाता पूरी वफादारी निभा रहे है।
भोपाल को समझने वाले लोगों का कहना है कि दिग्विजय सिंह के लिए भोपाल क्षेत्रcआसान नहीं रहा। दिग्विजय सिंह के पुराने कार्यकाल को लेकर भाजपा ने उन पर निशाना साधा। 2003 के बाद भोपाल का काफी विस्तार हुआ है। इन 16 सालों में दिग्विजय सिंह का संपर्क भोपाल से वैसा नहीं रहा, जैसी अपेक्षा थी। नए भोपाल में भले ही दिग्विजय का बोलबाला रहा हूं, लेकिन विस्तारित शहर में दिग्विजय सिंह का बोलबाला वैसा नहीं नजर आया।
कोलार क्षेत्र में भाजपा के कार्यकर्ता ज्यादा सक्रिय नज़र आए। इस इलाके की झोपड़पट्टियों में भाजपा का बड़ा वोट बैंक है, जिसकी तरफ कांग्रेस पूरा ध्यान नहीं दे पाई है। अब मतदान के बाद दोनों ही पार्टियां अपनी-अपनी जीत के दावे कर रही है। ये दावे जातीय समीकरण के आधार पर भी है। भोपाल लोकसभा क्षेत्र की विधानसभा सीटों में जातिगत संरचना स्पष्ट है। भोपाल मध्य विधानसभा क्षेत्र में करीब 45 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता है। इसके अलावा करीब 10 प्रतिशत अजा वर्ग के लोग रहते है। इस आधार पर कांग्रेस के नेता दावा कर रहे है कि यह सभी वोट तो दिग्विजय सिंह को मिलने वाले है ही। बाकि बचे सामान्य और ओबीसी वर्ग के मतदाताओं में से भी बड़ा वर्ग दिग्विजय सिंह के साथ हैं।
भोपाल के ही हुजूर विधानसभा क्षेत्र में सिंधी और मीणा समाज के लोग करीब 30 प्रतिशत है। इस इलाके में मुस्लिम मतदाता 7 प्रतिशत है। भाजपा का दावा है कि इस क्षेत्र में भाजपा को अच्छी बढ़त मिलेगी। बेरसिया, भोपाल उत्तर, नरेला, भोपाल दक्षिण, गोविंदपुरा और सिहोर विधानसभा क्षेत्र में भी इसी तरह की आंकड़ेबाजी चल रही है। भोपाल दक्षिण में आधे से अधिक मतदाता कर्मचारी वर्ग के है। यहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 4 प्रतिशत ही है। जाहिर है एक ही संसदीय क्षेत्र में किसी विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम आबादी 45 प्रतिशत है, तो किसी क्षेत्र में 4 प्रतिशत।
इसलिए पूरे संसदीय क्षेत्र में किसके पक्ष में मतदान हुआ होगा, यह नहीं कहा जा सकता। चुनाव के आंकड़ों का विश्लेषण करने वाले कह रहे है कि सीहोर में सबसे ज्यादा मतदान हुआ है, जो करीब 77 प्रतिशत रहा है। बेरसिया में इस बार जो मतदान हुआ है, वह करीब 18 प्रतिशत अधिक था। दिग्विजय सिंह ने अपने चुनाव मैनेजमेंट का पूरा-पूरा उपयोग भोपाल में किया। उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को मॉक वोटिंग का प्रशिक्षण दिया और कार्यकर्ताओं को बताया कि उन्हें कहां-कहां से सावधानी बरतने की जरूरत है।
इस लोकसभा चुनाव में भोपाल सीट सबसे ज्यादा हॉट मानी जा रही है। पूरे प्रदेश में उसी की चर्चा है। भोपाल में कमलनाथ की सक्रियता कम नजर आने के पीछे भी तरह-तरह की कहानियां चल रही है। दिग्विजय सिंह इन बातों से प्रभावित नहीं हो रहे है, वे कहते है कि जीत तो मेरी ही होनी है, लेकिन जो लोग पहले दिग्विजय सिंह की जीत के प्रति पूर्णत: आश्वस्त नजर आते थे, वे भी अब बयान देने से बच रहे है।