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मध्यप्रदेश में पार्षद ही चुनेंगे महापौर व नपाध्यक्ष ! शिवराज सरकार लाएगी नया प्रस्ताव

एमपी में नगरीय निकाय चुनाव को लेकर शिवराज सरकार एक बार फिर से बैकफुट पर है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद महापौर, नपा अध्यक्ष को सीधे जनता द्वारा चुने जाने के अध्यादेश को सरकार ने राज्यपाल के पास से वापस बुला लिया है।

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भोपाल, 20 मई। महापौर, नगर पालिका अध्यक्ष और नगर परिषद अध्यक्ष के सीधे चुनाव से जुड़े अध्यादेश ने भाजपा के भीतर उलझनें बढ़ा दी हैं। इस मामले में सीएमओ से जो अध्यादेश राजभवन भेजा गया था, उसे 1 दिन बाद बुधवार को सीएमओ ने वापस बुला लिया। अब भाजपा के वरिष्ठ नेता और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के बीच चर्चा के बाद फैसला लिया जाएगा कि चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से हो या अप्रत्यक्ष।

सूत्रों की माने तो भाजपा का एक तबका ये चुनाव अप्रत्यक्ष ही कराने पर राजी है। सत्तापक्ष से जुड़े कुछ नेता व अधिकारी भी अप्रत्यक्ष चुनाव की तरफ बढ़ने का इशारा कर रहे हैं। ऐसा होता है, तो मध्य प्रदेश में 22 साल बाद महापौर या पालिका अध्यक्ष को पार्षद चुनेंगे।

भाजपा के पुराने कार्यकर्ताओं के साथ सिंधिया खेमा भी सक्रिय

भाजपा के पुराने कार्यकर्ताओं के साथ सिंधिया खेमा भी सक्रिय

अप्रत्यक्ष चुनाव की वकालत करने वालों का तर्क है कि जिस तरह सांसद, विधायक अपनी दावेदारी महापौर के लिए रख रहे हैं। बेहतर है कि वे पहले पार्षद का चुनाव लड़े। इसके अलावा सीधे चुनाव की स्थिति में टिकटों के लिए खींचतान बढ़ सकती है, क्योंकि भाजपा के पुराने कार्यकर्ताओं के साथ सिंधिया खेमा भी सक्रिय रहेगा। पार्षद यदि महापौर चुनते हैं, तो सत्ता पक्ष के साथ निर्दलीय पार्षद खड़े हो सकते हैं।

मध्य प्रदेश में 1999 तक रही अप्रत्यक्ष प्रणाली व्यवस्था

मध्य प्रदेश में 1999 तक रही अप्रत्यक्ष प्रणाली व्यवस्था

मध्य प्रदेश में अप्रत्यक्ष प्रणाली से महापौर चयन प्रक्रिया 1999 के पहले तक रही। भोपाल में अप्रत्यक्ष प्रणाली के आखरी महापौर उमाशंकर गुप्ता थे। फिर इसके बाद प्रत्यक्ष प्रणाली की पहली महापौर कांग्रेस की विवाह पटेल रही। जिन्होंने भाजपा की राजो मालवीय को हराया था। 2004-05 में कांग्रेस के सुनील सूद ने भाजपा के भगवानदास सबनानी को हराया। 2009 में भाजपा से कृष्णा गौर और 2015 में आलोक शर्मा जीते।

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2019 में कमलनाथ की सरकार ने बदले थे नियम

2019 में कमलनाथ की सरकार ने बदले थे नियम

सत्ता में आते ही कमलनाथ सरकार ने अप्रत्यक्ष प्रणाली (पार्षदों को महापौर चुनने का अधिकार) से चुनाव कराने का निर्णय लिया था। लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस से बीजेपी में शामिल होने के बाद सरकार गिर गई और जैसे ही, शिवराज चौथी बार सत्ता में आए, तो उन्होंने कमलनाथ सरकार के फैसले को अध्यादेश के जरिए पलट दिया था, लेकिन इसे विधानसभा में डेढ़ साल तक पेश नहीं किया गया। इससे कमलनाथ सरकार के समय बनाई गई ये व्यवस्था आज भी प्रभावी है।

अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव कराने के लिए आयोग को भेजा पत्र

अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव कराने के लिए आयोग को भेजा पत्र

विपक्ष का कहना है कि अध्यादेश की अवधि समाप्त होने से पहले शिवराज सरकार ने मध्यप्रदेश नगर पालिका विधि (संशोधन) विधेयक 2021 को विधानसभा के बजट सत्र में पेश नहीं किया था, जबकि प्रस्तावित विधेयक को कैबिनेट से मंजूरी दे दी गई थी। पिछले साल आयोग को लिखे पत्र में सरकार ने इसका हवाला दिया था कि विधेयक को विधानसभा से मंजूरी नहीं मिलने के कारण अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव कराए जाएं।

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English summary
In Madhya Pradesh only councilors will choose the mayor! Shivraj government will bring new proposal
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