भीमा कोरेगांव मामले में सुधा भारद्वाज को बॉम्बे हाईकोर्ट ने दी डिफॉल्ट जमानत
भीमा कोरेगांव मामले में साल 2018 से जेल में बंद कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज को बुधवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने डिफॉल्ट जमानत दे दी।
भोपाल, 1 दिसंबर। भीमा कोरेगांव मामले में साल 2018 से जेल में बंद कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज को बुधवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने डिफॉल्ट जमानत दे दी। हालांकि अभी उन्हें रिहा नहीं किया जाएगा। उन्हें 8 दिसंबर को विशेष राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की अदालत में पेश किया जाएगा, जहां उनकी जमानत की शर्तों को तय किया जाएगा और उनकी रिहाई को अंतिम रूप दिया जाएगा। हालांकि कोर्ट ने इसी मामले में वर्नों गोंजाल्विस, अरुण फरेरा, रोना विल्सन, वरवर राव सहित आठ अन्य सह-आरोपियों की डिफॉल्ट जमानत याचिका को खारिज कर दिया।
2018
में
भीमा
कोरेगांव
में
हुई
थी
हिंसा
बता
दें
कि
1
जनवरी,
2018
को
भीमा-कोरेगांव
युद्ध
के
100
साल
पूरे
होने
के
उपलक्ष्य
में
आयोजित
कार्यक्रम
में
जमकर
हिंसा
हुई
थी,
जिसमें
एक
व्यक्ति
की
मौत
हो
गई
थी,
जबकि
कई
अन्य
घायल
हो
गए
थे।
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क्या
होती
है
डिफॉल्ट
जमानत
इलाहाबाद
आईकोर्ट
के
एक
फैसले
के
अनुसार
यदि
आरोपी
की
गिरफ्तारी
के
60,
90
या
180
दिन
की
तय
अवधि
में
अगर
आरोप
पत्र
दायर
नहीं
किया
गया
हो
तो
आरोपी
सीआरपीसी
की
धारा
167
(2)
के
तहत
जमानत
पाने
का
अधिकार
है।
न्यायमूर्ति
एस
एस
शिंदे
और
न्यायमूर्ति
एन
जे
जमादार
की
खंडपीठ
ने
4
अगस्त
को
सुधा
भारद्वाज
की
डिफॉल्ट
जमानत
याचिका
पर
सुनवाई
पूरी
की
और
फैसला
सुरक्षित
रख
लिया
था।
जबकि
एनआईए
ने
सुधा
भारद्वाज
की
जमानत
का
विरोध
किया
था।
अन्य
आरोपियों
की
जमानत
याचिका
खारिज
2018
के
भीमा
कोरेगांव
हिंसा
मामले
में
सुधा
भारद्वाज
के
अलावा
वरवर
राव,
सोमा
सेन,
सुधीर
धावले,
रोना
विल्सन,
एडवोकेट
सुरेंद्र
गाडलिंग,
महेश
राउत,
वरनॉन
गोंजाल्विस
और
अरुण
फरेरा
की
ओर
से
भी
ज़मानत
याचिका
दायर
की
की
गई
थी,
लेकिन
कोर्ट
ने
अन्य
लोगों
की
जमानत
खारिज
कर
दी।
कौन
हैं
सुधा
भारद्वाज
छत्तीसगढ़
की
सामाजिक
कार्यकर्ता
और
वकील
सुधा
भारद्वाज
छत्तीसगढ़
में
ट्रेड
यूनियन
के
आंदोलन
से
25
से
ज्यादा
वर्षों
तक
जुड़ी
रही
हैं।
सुधा
भारद्वाज
पीपुल्स
यूनियन
फॉर
सिविल
लिबर्टीज
(पीयूसीएल)
की
छत्तीसगढ़
इकाई
की
महासचिव
और
Women
against
Sexual
Violence
and
State
Repression
(WSS)
की
सदस्य
है।
आईआईटी कानपुर की पूर्व छात्रा और राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, दिल्ली की एक प्रोफेसर और सामाजिक कार्यकर्ता ने अमेरिका की अपनी नागरिकता छोड़कर छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के लिए संघर्ष करने का फैसला किया।