डेथ वॉरंट से पहले आई शबनम की कोरोना वायरस रिपोर्ट, जानिए क्या निकला उसमें
बरेली। फांसी की सजा मुकर्रर होने के बाद शबनम बरेली जिला जेल में बंद है। यहां उसे क्वारंटीन में रखा गया है। हालांकि, शबनम की कोरोना वायरस रिपोर्ट निगेटिव आई हैं। बता दें कि शबनम का डेथ वॉरंट कभी भी जारी हो सकता है, इसलिए उल्टी गिनती शुरू हो गई है। दरअसल, शबनम ने दया याचिका राज्यपाल के यहां भेजी थी, जिस पर सुनवाई अभी लंबित हैं। बता दें, शबनम पर साल 2008 में अमरोहा के बामन खेड़ी गांव में प्रेमी संग मिलकर अपने माता-पिता समेत सात लोगों की हत्या करने का आरोप है।
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रामपुर
जेल
अधीक्षक
को
सौंपी
दया
याचिका
शबनम
के
दो
वकील
18
फरवरी
को
रामपुर
जिला
जेल
भेजा
था।
यहां
उन्होंने
जेल
अधीक्षक
से
मुलाकात
कर
उन्हें
शबनम
की
दया
याचिका,
जो
राज्यपाल
को
संबोधित
थी
वो
सौंपी
थी।
इस
याचिका
में
शबनम
को
फांसी
की
सजा
माफ
किए
जाने
की
मांग
की
गई
थी।
बताया
कि
राज्यपाल
से
दया
की
उम्मीद
का
शबनम
का
यह
दूसरा
प्रयास
है।
पूर्व
में
उसकी
दया
याचिका
राज्यपाल
के
स्तर
से
खारिज
हो
चुकी
है।
उधर,
बुलंदशहर
के
सुशीला
विहार
कॉलोनी
में
रहने
वाले
शबनम
के
13
साल
के
बेटे
ताज
ने
भी
राष्ट्रपति
को
पत्र
लिखकर
अपनी
मां
को
माफ
करने
की
गुहार
लगाई
थी।
अभी
जारी
नहीं
हुआ
है
डेथ
वारंट
रामपुर
के
जेलर
आरके
वर्मा
ने
मीडिया
को
बताया
कि
डेथ
वारंट
की
मांग
अमरोहा
के
जिला
जज
से
की
गई
है,
लेकिन
अभी
तक
डेथ
वारंट
नहीं
मिला
है।
डेथ
वारंट
जारी
होते
ही
शबनम
को
मथुरा
जेल
भेज
दिया
जाएगा।
क्योंकि,
यूपी
में
महिला
को
फांसी
की
व्यवस्था
मथुरा
में
ही
है।
उन्होंने
बताया
कि
फिलहाल
जेल
में
शबनम
का
व्यवहार
सामान्य
है।
शबनम
को
रामपुर
जेल
की
महिला
बैरिक
नंबर
14
में
रखा
गया
है।
जानिए
कौन
है
शबनम,
जिसे
आजाद
भारत
के
इतिहास
में
होगी
फांसी
शबनम
अली,
उत्तर
प्रदेश
के
अमरोहा
जिले
के
हसनपुर
थाना
क्षेत्र
के
बावनखेड़ी
गांव
की
रहने
वाली
है।
शबनम
के
पिता
शौकत
अली
शिक्षक
थे।
वो
उनकी
एकलौती
बेटी
थी
और
स्कूल
में
छोटे
बच्चों
को
पढ़ाती
थी।
शबनम
ने
अंग्रेजी
और
भूगोल
में
एमए
किया
था।
बच्चों
को
पढ़ाने
के
दौरान
शबनम
को
सलीम
से
प्यार
हो
गया।
लेकिन
सलीम
पांचवीं
फेल
था
और
पेशे
से
एक
मजदूर
था।
इसलिए
दोनों
के
संबंधों
को
लेकर
परिजन
विरोध
कर
रहे
थे।
14-15
अप्रैल
2008
की
काली
रात
को
शबनम
ने
सलीम
के
साथ
मिलकर
अपने
पूरे
परिवार
की
हत्या
कर
दी।
इस
जघन्य
हत्याकांड
में
शबनम
के
परिवार
का
कोई
जिंदा
बचा
था
तो
वो
खुद
शबनम
और
उसके
पेट
में
पल
रहा
दो
माह
का
बेटा
ही
था।
बता
दें
कि
शबनम
अली,
वो
महिला
कैदी
है
जिसे
आजाद
भारत
के
इतिहास
में
पहली
बार
फांसी
पर
लटकाया
जाएगा।