Flashback 2020: नदी, मजदूरों और किसानों को नया जीवन देने वाला वो काबिल कलेक्टर
बाराबंकी। 2020 की कुछ अच्छी यादें भी हैं। दुख में भी सुख के मौके छिपे होते हैं। बस इसको पहचानने की सलाहियत होनी चाहिए। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के कलेक्टर आदर्श सिंह की सूझबूझ और कर्मठता से सूख चुकी कल्याणी नदी का कायाकल्प हुआ। लॉकडाउन में गांव आये करीब आठ सौ प्रवासी मजदूरों को रोजगार मिला। नदी की खुदाई से तटबंध बना। वह गहरी हुई तो उसमें पानी आया। जो किसान 20 साल से धान की खेती नहीं कर पा रहे थे उनकी उम्मीदों की फसल लहलहा गयी। छह महीने की मेहनत का अब फल मिल रहा है। कई साल के बाद किसान धान बेचने की स्थिति में आये हैं। कलेक्टर आदर्श सिंह की इस प्रेरणादायी पहल की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी 'मन की बात' कार्यक्रम में तारीफ की थी।
कोरोना काल का संकटमोचक कलेक्टर
जून 2019 में डॉ. आदर्श सिंह बाराबंकी का कलेक्टर बने थे। कल्याणी नदी कभी बाराबंकी जिले में सिंचाई का मुख्य साधन हुआ करती थी। लेकिन धीरे धीरे गाद और गंदगी से नदी सूखती चली गयी। नदी भरते-भरते खेतों की सतह के बराबर हो गयी। बरसात में इसका पानी आसपास के खेतों में फैल जाता और करीब छह महीने तक जमा रहता। इससे धान की फसल नहीं लग पाती थी। जहां नदी की सतह ऊंची हो गयी थी वहां पानी ही नहीं आता। सिंचाई का साधन खत्म होने से भी धान की खेती मुश्किल थी। जिले के किसान बेहाल थे। वे कई साल से कल्याणी नदी की खुदाई की मांग कर रहे थे। 2019 में इसकी खुदाई शुरू हुई लेकिन मजदूरों की कमी से काम बीच में ही बंद हो गया। आदर्श सिंह सूझबूझ वाले अधिकारी थे। कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान बहुत से प्रवासी मजदूर बाराबंकी जिले में लौटे थे। उन्हें क्वारेंटाइन सेंटरों में रखा गया था। उनके लिए रोजी-रोटी का इंतजाम करना था। जिलाधिकारी होने की वजह से आदर्श सिंह पर इन प्रवासी मजदूरों के पुनर्वास की बड़ी जिम्मेवारी थी। तभी उन्हें कल्याणी नदी की अधूरी खुदाई की याद आयी। फिर फिर उन्होंने कुछ खास करने का फैसला किया।
सूख
चुकी
कल्याणी
नदी
हो
गयी
जिंदा
डीएम
आदर्श
सिंह
ने
अंचलाधिकारी
और
राजस्व
कर्मचारियों
और
अमीनों
के
साथ
बैठक
की।
कल्याणी
नदी
का
नक्शा
निकलवा
कर
उसके
सीमांकन
का
निर्देश
दिया।
फिर
नदी
की
खुदाई
मनरेगा
योजना
के
तहत
कराने
के
लिए
राज्य
मुख्यालय
को
प्रस्ताव
भेजा।
कल्याणी
नदी
पवैया
गांव
के
पास
करीब
ढाई
किलोमीटर
में
सूख
गयी
थी।
हैदरगढ़
के
पास
भी
नदी
का
करीब
1.5
किलोमीटर
का
हिस्सा
सुखा
हुआ
था।
नदी
की
खुदाई
के
लिए
पहले
चरण
में
59
लाख
रुपये
का
बजट
पास
हुआ।
कलेक्टर
आदर्श
सिंह
ने
क्वारेंटाइन
में
रह
रहे
करीब
800
मजदूरों
को
नदी
की
खुदाई
के
काम
लगा
दिया।
इतनी
बड़ी
मानव
शक्ति
के
श्रम
से
नदी
की
खुदाई
शुरू
हुई।
नदी
गहरी
होती
गयी
और
तटबंध
ऊंचे
होते
गये।
इतने
मजदूरों
को
काम
करता
देख
जिले
के
दूसरे
मजदूर
भी
वहां
पहुंच
गये।
बाहर
से
आये
लोगों
को
रोजगार
मिला
तो
उनकी
रोटी
की
चिंता
दूर
हो
गयी।
कल्याणी
नदी
का
कायाकल्प
हुआ
तो
उसमें
पानी
की
धार
चलने
लगी।
गांव
के
लोग
कहने
लगे,
बाहर
से
आये
मजदूर
कल्याणी
के
लिए
भगीरथ
बन
गये।
एक
सूखी
नदी
को
जिंदा
कर
देना
कोई
साधारण
बात
नहीं।
लहलहा
गयी
धान
की
फसल
बाराबंकी
के
मवैया
(फतेहपुर)
गांव
में
जिन
लोगों
के
खेत
नदी
के
किनारे
थे
वे
20
साल
से
धान
की
खेती
नहीं
कर
पा
रहे
थे।
नदी
और
खेत
की
सतह
एक
होने
से
करीब
चार
सौ
मीटर
की
परिधि
में
पानी
फैला
रहता
था।
नदी
पर
तटबंध
बन
गया
तो
पानी
रुक
गया।
किसानों
ने
इस
साल
धान
की
फसल
लगायी।
रोपनी
के
बाद
जब
खेत
में
पानी
कम
होता
तो
वे
नदी
में
पंपिंग
सेट
लगा
कर
पटवन
करते।
20
साल
बाद
जब
किसानों
ने
खेत
में
धान
की
लहलहाती
फसल
देखी
तो
उनकी
खुशियों
का
ठिकाना
नहीं
रहा।
प्रवासी
मजदूरों
के
पुरुषार्थ
से
एक
असंभव
काम
संभव
हो
गया।
बाराबंकी
में
कई
कलेक्टर
आये
लेकिन
वे
किसानों
की
वर्षों
पुरानी
मांग
को
पूरा
नहीं
कर
पाये।
जब
देश
में
अमन
चैन
और
सामान्य
स्थिति
थी
तब
भी
कल्याणी
नदी
अपने
उद्धार
की
राह
देखती
ही
रह
गयी
थी।
उसको
नया
जीवन
तब
मिला
जब
देश
एक
भयंकर
महामारी
के
चंगुल
में
फंसा
हुआ
था।
आदर्श
सिंह
की
सकारात्मक
सोच
ने
नदी,
मजदूरों
और
किसानों
को
एक
नया
जीवन
दिया।
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