मोबिलिटी इंडिया: वो जगह जहां भगवान को चैलेंज किया जाता है!
मयंक दीक्षित- हकीकत को प्रचार-प्रसार की ज़़रूरत नहीं होती। भावनाएं और हकीकत मिलकर अपना रास्ता खुद बना लेतीं हैं। ऐसा ही रास्ता बना लिया गया है बेंगलोर के जेपीनगर में मोबिलिटी इंडिया ने। ये वो जगह है जहां भगवान को चैलेंज किया जाता है''। कुदरत जिनके अंग उनसे छीन लेती है, जिन्हें गरीबी आगे बढ़ने से रोकती है, उनके लिए यह संस्था मंदिर की तरह है। आइए इसे जानें और महसूस करें-
'मोबिलिटी इंडिया' को कई उद्योगपतियाें का समूह मिलकर चलाता है। कहीं कोई प्रसार की 'लहर' नहीं चलती, कहीं पर दान-सेवा का ढिंढोरा नहीं पीटा जाता। शांति और सुकून के साथ खुशियां इतने सलीके से बांट दी जाती हैं कि बेंगलोर शहर अपनी ही धुन में खोया रहता है और यहां 'पटरी से उतरी जिंदगियों' के होंठों पर वापस मुस्कराहट तैर उठती है। आइए इस संस्था को महसूस करें-
मोबिलिटी इंडिया- यह संस्था मुख्य तौर पर आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए काम करती है। शिक्षा, स्वास्थ्य व सामाजिक जरूरतों को पूरा करने वाली कई गैर सरकारी संस्थाएं हैं पर उनसे मोबिलिटी इंडिया कुछ अलग है। यहां ऑर्थोटिक्स व प्रोस्थेटिक्स विषय में स्नातक कोर्स को बढ़ावा दिया जाता है। छात्रों से लेकर मरीजों तक को यहां के हॉस्टल विंग में रखा जाता है व उनकी जिंदगी रिहैबिटलाइज़ यानि कि नए सिरे से शुरु करने की पहल की जाती है।
ऑर्थोटिक्स व प्रोस्थेटिक्स का अर्थ- किसी दुर्घटना व प्राकृतिक तौर पर अपने अंग (हाथ, पैर आदि ) गंवा चुके मरीजों को प्लास्टिक व अन्य कृत्रिम अंग बनाकर दिए जाते हैं, व उनके चलने-फिरने से लेकर रोज़मर्रा के सारे कामों को आम व्यक्ति की तरह करने में मदद दी जाती है। इस तरह से बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग भी यहां अपना पंजीकरण करवाकर आर्टिफिशियल अंगों के सहारे नया जीवन शुरु करते हैं। इस काम में यहां के डॉक्टर्स, टीम, स्टाफ व विशेषज्ञ वॉलियंटियर्स भरपूर मदद करते हैं।
संस्थागत जानकारी- यह जानकारी आप गूगल कर प्राप्त कर सकते हैं। वनइंडिया टीम ने यहां लोगों की सेवा में व्यस्त एडमिनिस्ट्रेसन का ज्यादा वक्त नहीं लिया। हमने वहां की हर उस तस्वीर को महसूस करने की कोशिश की, जो इस तरह की संस्थाओं में देखने को मिलती है। यहां की वॉर्डन से जब बात की तो उन्होंने 'नाम' सामने ना लाने की शर्त पर बताया '' यहां मरीजों से लेकर स्कूली छात्रों तक को पनाह दी जाती है। ये छात्र कई दूसरे देश जैसे, बांग्लादेश, अरब देशों से भी यहां आते हैं। प्रोस्थेटिक्स व ऑर्थोटिक्स में अध्ययन कर वे ना सिर्फ अपना कॅरिअर बनाते हैं, साथ ही सामाजिक सेवा से भी जुड जाते हैं।''
किससे हुई मुलाकात- बांग्लादेश के ज़ुबेर अपना आइ-कार्ड दिखाते हुए हमसे मिलते हैं। वे बताते हैं कि यह संस्था में अपाहिज हुए व्यक्तियों को कृत्रिम अंग के सहारे जीवन जीने को प्रेरित करती है। हमारे शल्य विशेषज्ञ मरीजों को उनके मुताबिक सुविधाएं देने के साथ-साथ उनकी आगे की खुशहाल जिंदगी तक का प्रबंध करते हैं। यहां बच्चों से लेकर बुजुर्गों व महिलाओं तक के लिए सुविधाएं हैं।
अद्भुत है पहल- शिक्षा व विज्ञान का ऐसा संगम शायद ही किसी संस्था में उपलब्ध होगा। अरबी भाषा में बातचीत शुरु करने वाले फहीब से जब हमने अंग्रेजी में बोलने की गुजारिश की तो वे बोले ''मोबिलिटी इंडिया'' को अगर शुक्रिया अदा करना है तो इसकी मदद करने वाले कई ब्रांड्स का शुक्रिया अदा करना चाहिए। देश-विदेश की गैर सरकारी संस्थाओं से जुड़ी यह संस्था आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को शिक्षा व रहना-खाना व कृत्रिम अंगों की सुविधा निशुल्क देता है। फहीब ने बताया कि वे एक अरब देश से ताल्लुक रखते हैं व उन्हें एक संस्था ने यहां भेजा है, जिससे वे शल्य चिकित्सा में स्नातक कर दूसरों की मदद कर सकें।
सामाजिकता को सलाम- इस संस्था को जानने, प्रयोग में लाने के लिए आप इस वेबसाइट पर जा सकते हैं- http://mobility-india.org/ इंसानियत और प्रोफेशनिल्जम यहां मिलजुलकर काम करते हैं। कुदरत हममें से कइयों के साथ जो सामाजिक अन्याय करती है, उसकी भरपाई करने के लिए ऐसी संस्थाएं वाकई एक मिसाल हैं। लेख के साथ लगी तस्वीरों में यहां की सुविधाओं की एक झलक है। वाकई इसे मदद करने वाले लोग शुक्रिया के हकदार हैं। हम उन ब्रांड्स की तस्वीरें भी देे रहे हैं जो यहां अपना बहुत कुछ दान करते हैं, व प्रचार-प्रसार की इच्छा नहीं रखते। सलाम 'मोबिलिटइ इंडिया'।