मोदी-इमरान के बीच तीन सीट की दूरी क्या भारत-पाकिस्तान को करीब ला पाएगी?
नई दिल्ली। बिश्केक में आयोजित शंघाई सहयोग सम्मेलन (एससीओ) के दौरान भारत-पाकिस्तान कोई मुद्दा नहीं था, लेकिन यह सबकी निगाहों में रहा कि वहां क्या होने वाला है। ऐसा इसलिए कि इस सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भी उपस्थित रहे। स्वाभाविक रूप से पूरी दुनिया को यह अंदाजा रहा होगा कि जब दोनों देशों के प्रधानमंत्री एक जगह होंगे, तो क्या-क्या हो सकता है। यह सब तब जबकि भारत की ओर से पहले से ही तय कर दिया गया था कि दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच कोई बैठक नहीं होने जा रही है। ऐसे में बिश्केक में जिस तरह के दृश्य उपस्थित हुए, उसे सहज ही माना जा सकता है।
मोदी न केवल इमरान खान से तीन सीट दूर बैठे बल्कि उनकी ओर देखा तक नहीं
रिपोर्ट बताती हैं कि वहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न केवल इमरान खान से तीन सीट दूर बैठे बल्कि उनकी ओर देखा तक नहीं। उस समय न हाथ मिलाया और न कोई बात की। हालांकि समापन कार्यक्रम से पहले रस्म अदायगी के तौर पर एकदूसरे ने हाथ मिलायाएक तरह से उन्होंने भारत का सख्त रवैया जताया और इमरान को कड़ा संदेश दिया कि भारत आतंकवाद के मुद्दे काफी गंभीरता से ले रहा है। इस पर किसी तरह की रियायत पाकिस्तान को नहीं दी जा सकती। जब तक पाकिस्तान आतंकवाद रोकने के लिए प्रभावी कार्रवाई नहीं करता, तब तक उसके साथ किसी तरह की मुलाकात अथवा बातचीत की कोई गुंजाइश नहीं बनती है। इमरान खान के साथ इस तरह का उचित ही दोटूक व्यवहार तब किया गया, जब इसके पहले प्रधानमंत्री मोदी ने बीते वर्ष चीन में हुए सम्मेलन के दौरान उस समय के पाकिस्तान के राष्ट्रपति ममनून हुसैन से हाथ मिलाया था। यहां यह ध्यान में रखने की बात है कि बीते एक साल के दौरान पाकिस्तान ने भारत में लगातार आतंकी वारदातों को अंजाम दिया और संघर्ष विराम भी कई बार तोड़ा, जिसे भारत की ओर से कैसे बर्दाश्त किया जा सकता है। पाकिस्तान की ओर से यह सब तब किया जा रहा था जबकि यह कहा जा रहा था कि इमरान खान और उनकी सरकार आतंकवाद पर अंकुश लगाने की कोशिश करेगी। लेकिन वह भी पुरानी सरकारों की तरह ही साबित हुए।
पाकिस्तान को चेतावनी थी कि वह अपनी आदतों से बाज आए
इस सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई और इसके लिए वैश्विक सहयोग पर जोर दिया। इसके साथ ही पाकिस्तान को भी अलग-थलग करने के लिए चीन समेत अन्य देशों से एकजुटता की अपील भी की। मोदी ने भारत की इस राय को बहुत ही स्पष्ट तौर पर रखा कि आतंकवाद को बढ़ावा देने वालों को जिम्मेदार ठहराना और समर्थन करने वालों को बेनकाब करना वक्त की जरूरत है। आतंकवाद पूरी दुनिया के लिए गंभीर खतरा बन चुका है। उन्होंने श्रीलंका का भी उल्लेख किया जहां हाल में ही हुए आतंकवादी हमले में लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। उन्होंने न केवल एससीओ के नेताओं से इस मुद्दे पर समर्थन जुटाने के लिए बात की बल्कि यह भी कहा कि आतंकवाद के खात्मे के लिए पूरी दुनिया को एकजुट होना होगा। उन्होंने आतंकवाद के मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन बुलाने का आह्वान भी किया। उन्होंने अपनी यह राय भी सबके सामने रखी कि आतंकवाद के बड़े खतरे से पार पाने के लिए सभी मानवतावादी शक्कियों को अपने संकीर्ण दायरे से बाहर आकर एकजुटता के साथ मुकाबला करना होगा, तभी इस पर लगाम लगाई जा सकेगी। भारत की ओर से पहले से ही पाकिस्तान को यह साफ संदेश दे दिया गया था कि बिश्केक में उसके साथ क्या होने जा रहा है। तभी प्रधानमंत्री द्वारा पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल न करने का फैसला लिया गया था। दरअसल सीमापार से आतंकवाद पर मोदी और उनकी सरकार का शुरू से ही काफी सख्त रवैया रहा है। इसी का परिणाम था कि जब पाकिस्तान की ओर से पुलवामा में सुरक्षा बलों के काफिले पर आतंकवादी हमले को अंजाम दिया गया, तब बिना कोई देर किए भारत की ओर से बालाकोट पर जवाबी हमला किया गया और पाकिस्तान को करारा जवाब दे दिया गया। यह एक तरह से भारत की पाकिस्तान को चेतावनी थी कि वह अपनी आदतों से बाज आए अन्यथा उसके साथ कुछ भी किया जा सकता है।
भारत की ओर से हमेशा शांति बहाली के प्रयास किए गए
फिलहाल प्रधानमंत्री मोदी का दूसरा कार्यकाल है और इस बार वह ज्यादा समर्थन के साथ प्रधानमंत्री बने हैं। यह सम्मेलन भी उनके दूसरी बार सत्ता में आने के बाद हो रहा है। ऐसे में स्वाभाविक रूप से इसे पाकिस्तान को भी ध्यान में रखना होगा कि अब भारत सरकार उनसे कैसे निपटने के लिए तैयार है। हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल न करने और सम्मेलन के दौरान पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान को किनारे करने के पीछे प्रधानमंत्री मोदी का साफ संकेत है कि अब पाकिस्तान को समझ जाना चाहिए। लेकिन पाकिस्तान लगता नहीं कि कुछ भी सीखने-समझने को तैयार है और वह अपनी पुरानी गलतियां ही दोहरा रहा है। बिश्केक में भी इमरान खान ने प्रकारांतर से कश्मीर मुद्दे को उठाने और मध्यस्थता की बात करने की कोशिश की जो यह बताता है कि वह पाकिस्तान के पुराने एजेंडे पर ही कायम है। यह अलग बात है कि इमरान खान मानते हैं कि भारत पाकिस्तान के संबंध बहुत खराब दौर से गुजर रहे हैं, लेकिन इसे ठीक करने के बारे में उनकी ओर से कुछ नहीं किया गया। असल में इमरान खान की असफल कोशिश हमेशा यह रहती है कि वह कैसे दुनिया को यह संदेश दे सकें कि वह शांति के पक्ष में हैं न कि टकराव के। लेकिन उनकी और उनकी सरकार की ओर से आतंकवाद पर रोक लगाने का कोई उदाहरण सामने नहीं आता। ऐसे में समझा जा सकता है कि पाकिस्तान के साथ भारत का रवैया कैसा होना चाहिए। भारत की ओर से हमेशा शांति बहाली के प्रयास किए गए, लेकिन पाकिस्तान की ओर से इसमें हर बार अडंगा लगाया गया। इतना ही नहीं, पाकिस्तान लगातार भारत पर आतंकी हमले को अंजाम दे रहा है। ऐसे में भारत के प्रधानमंत्री की ओर से इमरान खान के साथ किया गया व्यवहार पूरी तौर पर उचित कहा जा सकता है। अब भी अगर पाकिस्तान को समझ में नहीं आता, तो आतंकवाद को बढ़ावा देने का खामियाजा भुगतने के लिए भी उसे तैयार रहना होगा।