कोयला- अंधकारमय भविष्य वाला जानलेवा निवेश
नई दिल्ली। अविश्वास के इस दौर में संतोष की एक वजह भी मौजूद है, और वह है कि स्वास्थ्य के पैरोकार समुदाय की आवाज का लगातार बुलन्द होना। लांसेट मेडिकल एकेडमिक जर्नल में आज प्रकाशित एक अनुसंधान रिपोर्ट यह दिखाती है कि जलवायु परिवर्तन के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों पर ध्यान दिये जाने की जरूरत है। जब यह कहा जाए, तब हमें ध्यान से सुनना चाहिये कि जलवायु परिवर्तन जितना जनस्वास्थ्य के लिये बड़ा मुद्दा है, उतना ही यह हमारी पृथ्वी के लिये भी महत्वपूर्ण है। अनुसंधान की रिपोर्ट यह दिखाती है कि कैसे कोयले पर हमारी निर्भरता वायु प्रदूषण के रूप में हमारे स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रही है, वहीं इससे जलवायु परिवर्तन भी हो रहा है, जो अनेक तरीकों से जनस्वास्थ्य के लिये नुकसानदेह साबित होगा। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि कोयले पर निर्भरता एक खराब परिणाम देने वाला जानलेवा निवेश है।
लांसेट काउंटडाउन ऑन हेल्थ एण्ड क्लाइमेट द्वारा किये गये अनुसंधान में शामिल विश्लेषण से पता चलता है कि कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के कारण होने वाले प्रदूषण से भारत में हर साल औसतन 81,286 लोगों की मौत होती है। ये आंकड़ा केवल कोयला जलने के कारण होने वाले प्रदूषण से जुड़े परिणाम का ही है। अन्य प्रकार के प्रदूषण से मरने वालों की तादाद इससे कहीं ज्यादा होगी। कम से कम मैं तो इस तरीके से अर्जित की गयी बिजली को सस्ती ऊर्जा नहीं कहूंगा।
वायु प्रदूषण फैलाने और उसके परिणामस्वरूप जनस्वास्थ्य पर पड़ने वाले व्यापक दुष्प्रभाव में भूमिका को देखते हुए वित्त क्षेत्र द्वारा कोयला उद्योग को बाहर करने की अब और चेतावनी दिये जाने की कोई जरूरत नहीं है। जब मेरा डॉक्टर मुझसे किसी नुकसानदेह चीज से बचने की बात कहता है तो मैं उसे सुनता हूं। अब यह समय की मांग है कि वित्त क्षेत्र एक सम्पूर्ण सेक्टर के बारे में दी जा रही चेतावनियों को सुने। औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला धुआं, अम्ल वर्षा, विषैला पारा और सूक्ष्म अणु हमारे फेफड़ों में गहरे तक समा जाते हैं और किसी भी तरह का निर्विषीकरण उन्हें साफ नहीं कर पाता है। इसी दौरान सौर तथा वायु बिजली परियोजनाएं वित्तीय रूप से लाभदायक होने के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिये नुकसानदेह भी नहीं हैं। इन परियोजनाओं में निवेश करने वालों को एक बंधा हुआ मुनाफा निरन्तर मिल रहा है।
लेकिन वर्ल्ड कोल एसोसिएशन इस बात की पुरजोर वकालत कर रहा है कि स्वच्छ कोयला संयंत्रों में ज्यादा से ज्यादा निवेश किया जाना चाहिये। यह एक बेवजह की बात है, खासकर तब जब अक्षय ऊर्जा के विकल्प हमारी बिजली सम्बन्धी जरूरतों को पूरा कर सकते हैं। अगर मान भी लिया जाए कि कोयला संयंत्रों को अपेक्षाकृत स्वच्छ बनाया जा सकता है, तो भी वे हमेशा मौत के कारखाने ही रहेंगे। कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्र हर साल आठ लाख से ज्यादा लोगों की मौत का कारण बनते हैं और भविष्य में लगने वाले कोयला संयंत्र प्रतिवर्ष 130000 अतिरिक्त लोगों की असमय मौत का कारण बनेंगे। कोयले की यह जानलेवा मार सीमाओं से पार यूरोप तथा अन्य स्थानों पर भी पड़ रही है।
यह सौभाग्य की बात है कि निवेशक और सम्बन्धित अन्य पक्ष अपनी पूंजी और पोर्टफोलियो को विशुद्ध रूप से सौर तथा वायु बिजली जैसी स्वच्छ ऊर्जा की तरफ ले जा रहे हैं। जैसा कि लांसेट की रिपोर्ट में दिखाया गया है, वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिये कोयला आधारित संयंत्रों को चरणबद्ध तरीके से बंद करना होगा, क्योंकि दुनिया भर में कार्बन डाइ ऑक्साइड के उत्सर्जन में 44 प्रतिशत योगदान इन कोयला आधारित संयंत्रों का है। हमने पहले ही देखा है कि खराब वित्तीय प्रदर्शन की वजह से संस्थागत निवेशकों द्वारा कोयले में निवेश में बड़े पैमाने पर कमी लायी जा रही है। साथ ही कोयले के कारण होने वाले प्रदूषण को देखते हुए भी इस कटौती का सिलसिला तेज हुआ है। जानलेवा सम्पत्तियों में निवेश कभी अच्छा नहीं होता। लांसेट काउंटडाउन की रिपोर्ट में विशेषज्ञों की उस राय को खास तवज्जो दी गयी है, जिसके मुताबिक कोयला उद्योग दीर्घकालिक ढांचागत गिरावट का सामना कर रहा है।
वक्त की नजाकत को देखते हुए हमने वर्ष 2013 में अपने फंड्स को कोयला क्षेत्र से अलग करना शुरू कर दिया था। दो साल बाद नार्वेजी सरकार ने अपने कारोबार का 30 प्रतिशत हिस्सा कोयले से कमाने वाली कम्पनी के लिये कोयले पर निर्भरता छोड़ने पर एक ट्रिलियन डॉलर के गवर्नमेंट पेंशन फंड की घोषणा की थी। इस एलान ने दुनिया भर में सुर्खियां बटोरीं। उसके फौरन बाद दुनिया की सबसे बड़ी बीमा कम्पनी आलियांज ने भी इसे अपनाया। बीमा क्षेत्र की एक और बड़ी कम्पनी अक्सा ने भी कोयला क्षेत्र में निवेश को अलविदा कह दिया है। दुनिया की सबसे बड़ी बीमा कम्पनियों ने जब कोयला क्षेत्र से हटना शुरू किया है, ऐसे में कोयला उद्योग गम्भीर परेशानी में है। हमारे प्रबन्धन के अन्तर्गत आने वाला 80 अरब डॉलर उस 1.24 ट्रिलियन डॉलर निवेशक इक्विटी का एक छोटा सा हिस्सा है, जो जल्द ही इस नुकसानदेह ईंधन से मुंह मोड़ लेगा। बढ़ोत्तरी के इस सिलसिले में स्वास्थ्य क्षेत्र के फंड भी शामिल हैं, क्योंकि कोयला रूपी ईंधन से उनके सदस्यों को भी नुकसान पहुंचता है।
लांसेट ने रेखांकित किया है कि ऐसे में जब कोयले को ऊर्जा तंत्र, खासकर बिजली क्षेत्र से चरणबद्ध ढंग से बाहर किया जा रहा है, शून्य-कार्बन उत्सर्जन वाली ऊर्जा के उत्पादन में तीव्र वृद्धि और उसका इस्तेमाल बेहद महत्वपूर्ण होगा। इसके लिये अक्षय ऊर्जा स्रोत, जैसे कि सौर, वायु तथा पनबिजली उत्पादन जैसी प्रौद्योगिकियां खासी अहम होंगी। सौर ऊर्जा उत्पादन तो पूरी दुनिया में फल-फूल रहा है। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी ने भी हाल में कहा है कि ऊर्जा क्षेत्र में एक नये युग का सूत्रपात होने वाला है। लांसेट के अनुसार अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में तेजी से वृद्धि हो रही है, मुख्यत: सौर तथा वायु बिजली क्षेत्र में निवेश बढ़ रहा है। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि अमेरिका, चीन तथा यूरोप में ऐसे निवेश में वृद्धि हो रही है। भारत में भी एक सौर क्रांति आने ही वाली है।
दक्षिण कोरिया भी कोयला आधारित ऊर्जा से सौर तथा पन बिजली उत्पादित ऊर्जा पर निर्भरता बनाने वाला एक और नया उदाहरण है। दक्षिणी कोरियाई राष्ट्रपति मून जए-इन इस दिशा में एक कार्ययोजना का खाका तैयार कर रहे हैं, जिस पर अन्य एशियाई अर्थव्यवस्थाओं की बारीक नजर है। दक्षिण कोरिया की सरकार ने आसमान में छायी धुंध को साफ करने के लिये प्रदूषणकारी कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को बंद करने के साथ-साथ अन्य समझदारी भरे रास्ते भी अपनाये हैं। इससे अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलने की उम्मीद जागती है। एक ऐसी मजबूती जो स्वच्छ ऊर्जा ढांचे में घरेलू तथा विदेशी निवेश के बेहतर परिणाम देती है। अभी इस ढांचे में अरबों डॉलर का निवेश हो रहा है। इस वक्त एशिया से लेकर अमेरिका तक उम्मीद भरे संकेत मिल रहे हैं। स्वच्छ ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ाने से हम न सिर्फ लाखों जानें बचा सकते हैं, बल्कि मरते हुए उद्योगों से होने वाले वित्तीय नुकसानों को भी टाला जा सकता हैं।
(जान एरिक सॉगस्टैड स्टोरब्रैंड असेट मैनेजमेंट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं। स्टोरब्रैंड नार्वे की सबसे बड़ी निजी पेंशन कम्पनी है। यह 80 अरब डॉलर से ज्यादा की सम्पत्ति का प्रबन्धन करती है। नार्वेजी सरकार के एक ट्रिलियन डॉलर पेंशन फंड के बाद स्टौरब्रैंड का स्थान है। कम्पनी ने वर्ष 2016 में अपने प्लस फंड की परिकल्पना को पेश किया था और अप्रैल 2017 में उसने जीवाश्म ईंधन से मुक्त अपने नये फंड की शुरुआत की थी। इस वक्त स्टोरब्रैंड के पास जीवाश्म ईंधन से मुक्त कुल फंड वैल्यू 1.6 अरब डॉलर से अधिक है। इसमें अभी और बढ़ोत्तरी होगी। जीवाश्म ईंधन से मुक्त निवेश से 19 प्रतिशत वित्तीय लाभ हो रहा है।)