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शबनम की दया याचिका खारिज होने पर खुश हुआ पूरा गांव, जानिए क्या कहा चाचा-चाची ने

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Shabnam And Saleem Shocking Story, लखनऊ। फांसी की सजा मुकर्रर होने के बाद शबनम और सलीम ने राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका लगाई थी, जिसे खारिज कर दिया गया है। हालांकि, शबनम और सलीम को किस दिन फांसी दी जाएगी इसकी तारीख अभी मुकर्रर नहीं हुई है। वहीं, शबनम की दया याचिका खारिज होने के बाद बावनखेड़ी गांव में खुशी का माहौल है। इस बीच शबनम की चाचा-चाची ने मीडिया से बात करते हुए कहा, 'अच्छा हुआ कि दया याचिका खारिज हो गई, इसे फांसी की सजा होना चाहिए।' डेडबॉडी लिए जाने के सवाल पर कहा कि, हम क्यों लेंगे, हम नहीं लेंगे।

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हम क्या करेंगे ऐसी लड़की की लाश लेकर?

हम क्या करेंगे ऐसी लड़की की लाश लेकर?

शबनम की चाची ने मीडिया कर्मियों से बात करते हुए कहा, 'उस समय अगर हम भी घर में होते तो उसने हमें भी मार डाला होता, लेकिन हम उस समय घर में नहीं थे।' हम तो आधी रात के बाद घर पहुंचे थे तो घर के बाहर भीड़ जमा थी। आज भी उसदिन के मनजर को याद कर रूह कांप जाती है। उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा कि याचिका खारिज हो गई, हम तो बहुत खुश हैं। अच्छा किया सरकार ने इसे फांसी होनी चाहिए। वहीं, चाचा ने मीडिया कर्मियों के सवाल का जवाब देते हुए कहा कि वहीं हम उसके शव को नहीं लेंगे, हम नहीं लेंगे। हम क्या करेंगे ऐसी लड़की की लाश लेकर?

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क्या था मामला

क्या था मामला

दरअसल, अमरोहा जिले से महज 20 किलोमीटर दूर हसनपुर थाना क्षेत्र इलाके में बावनखेड़ी गांव है। यहां 14/15 अप्रैल, 2008 की रात उस समय हडकंप मच गया था। जब एक ही परिवार के सात लोगों की गला रेत कर हत्या कर दी गई थी। घर में सिर्फ एक 25 वर्षीय लड़की बची, जिसका नाम शबनम था। इस वारदात के बाद खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती भी अगले दिन ही गांव पहुंच गई थी और जल्द खुलासे के निर्देश स्थानीय अधिकारीयों को दिए थे। वहीं, इस घटना को 13 साल बीत चुके है, लेकिन इस गांव के लोग आज भी शबनम के नाम से खौफ खाते है और उससे नफरत करते है।

शबनम और उसका बेटा बचा था जिंदा

शबनम और उसका बेटा बचा था जिंदा

शबनम और सलीम के बीच प्रेम संबंध थे। शबनम ने अंग्रेजी और भूगोल में एमए किया था। वह सूफी परिवार की थी। वहीं सलीम पांचवीं फेल था और पेशे से एक मजदूर था। इसलिए दोनों के संबंधों को लेकर परिजन विरोध कर रहे थे। 14-15 अप्रैल 2008 की काली रात को शबनम ने सलीम के साथ मिलकर अपने पूरे परिवार की हत्या कर दी। इस जघन्य हत्याकांड में शबनम के परिवार का कोई जिंदा बचा था तो वो खुद शबनम और उसके पेट में पल रहा दो माह का बेटा ही था।

खुद को बचाने के लिए शबनम ने रची थी कहानी

खुद को बचाने के लिए शबनम ने रची थी कहानी

शबनम ने शुरूआत में यह दलील देकर खुद को बचाने की कोशिश की थी कि लुटेरों ने उसके परिवार पर हमला कर दिया था और बाथरूम में होने की वजह से वह बच निकलने में कामयाब रही थी। लेकिन परिवार में चूंकि वही एकमात्र जिंदा बची थी, इसलिए पुलिस का शक उस पर गया और कॉल डिटेल खंगाली गई तो सच आखिर सामने आ गया था। जिसके बाद शबनम और सलीम को दो साल बाद अमरोहा की सत्र अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी। निचली अदालत के फैसले पर बाद में इलाहबाद हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगा दी।

राष्ट्रपति के यहां से भी खारिज हुई दया याचिका

राष्ट्रपति के यहां से भी खारिज हुई दया याचिका

पिछले साल शबनम ने फांसी पर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी। इस पुनर्विचार याचिका को सलीम और शबनम के वकील आंनद ग्रौवर ने दायर किया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की निचली अदालत ने फैसले को बरकरार रखा है। इसके बाद शबनम-सलीम ने राष्ट्रपति को दया याचिका भेजी थी, लेकिन राष्ट्रपति भवन से उनकी याचिका को खारिज कर दिया है। एक बार फिर से उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार दायर की है जिसकी सुनवाई इसी महीने होनी है, जिसके बाद फैसला होगा कि दोनों को फांसी दी जाएगी या नहीं। बता दें कि आजादी के बाद शबनम पहली महिला कैदी होगी जिसे फांसी दी जाएगी। फिलहाल शबनम बरेली तो सलीम आगरा जेल में बंद है।

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English summary
Amroha News: Shabnam's mercy petition rejected, villagers are happy
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